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“BHU में प्रोफेसरों द्वारा हड़ताल पर बैठे स्टूडेंट्स को हड़काया जा रहा है”

बीएचयू फोटो

बीएचयू फोटो

अपने को सर्व विद्या की राजधानी से विभूषित करने वाले और 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में स्थित बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स, ‘भगत सिंह छात्र मोर्चा’ के बैनर तले पिछले 24 सितंबर 2019 से भूख हड़ताल पर बैठने को मजबूर हैं।

हड़तालियों ने मेडिकल जांच भी करवाने से मना कर दिया है। इधर बीच में तीन दिन की लगातार बारिश और स्टूडेंट्स की गिरती सेहत के बीच विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उनकी सेहत का हवाला देकर हड़ताल खत्म करवाने की अपील को स्टूडेंट्स द्वारा ठुकरा दिया गया है।

कुछ और लिखने-कहने से पहले एक बार स्टूडेंट्स की मांगों को देख लेते हैं-

पहले और सातवें प्वाइंटर को छोड़कर ये सब ऐसी मांगें हैं, जिनके लिए ना तो किसी जांच की ज़रूरत है और ना ही किसी कमेटी के बनाए जाने की। इन्हें तत्काल लागू किया जाना वक्त की नज़ाकत है। जबकि 28 सितंबर को स्टूडेंट्स द्वारा दिए गए अपीलीय पत्र के बाद भी प्रशासन का गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया ही सामने आया है।

इस बीच भूख हड़ताल पर बैठे स्टूडेंट्स को देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों के छात्र संगठनों और छात्र संघों का समर्थन मिल चुका है। उन्हें बाकी  संस्थानों से भी लगातार समर्थन मिल रहे हैं।

आइए अब हम बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की संरचना एवं यहां के पेशेवर बुद्धिजीवियों के हालात पर बात करते हैं। 2014 से लगातार कैंपस के पठन-पाठन, शोध एवं सुरक्षा के माहौल में नकारात्मकता बढ़ी है। इस बढ़ती हुई या यूं कहें कि जान-बूझकर अराजक बनाए जाते माहौल के पीछे वर्तमान सरकार और राज्य सरकार की शिक्षा और शिक्षण को तबाह करने की प्राथमिकता है।

अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर बैठे स्टूडेंट्स। फोटो साभार- विकाश आनंद।

इसके पीछे कहीं ना कहीं यूनिवर्सिटी में बैठे प्रोफेसर कम भाजपा के कार्यकर्त्ता और आरएसएस के दंडधारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के हिंसक लोगों का भी हाथ है। ऐसे प्रोफेसर्स और स्टूडेंट्स की जमात को बढ़ावा दिया जाता है, जो खुद को स्टूडेंट कम और पार्टी का कार्यकर्ता अधिक मानते हैं।

यूनिवर्सिटी में साथ-साथ बैठे या घूम रहे लड़के-लड़कियों को मारना-पीटना, अश्लील गालियां देना और प्रॉक्टर टीम द्वारा मामले को रफा- दफा कर देने जैसी घटनाएं कोई नई नहीं हैं। लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार तो आम बात है।

यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर, खुद को भाजपा कार्यकर्ता ही समझते हैं। बच्चों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा है, “जिनके पास पैसे हों, वे पढ़ें। शिक्षा सबके लिए नहीं है।” अब ऐसी मानसिकता वाले कुलपति और उनके प्रशासन की प्राथमिकता का अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं है।

कई दिनों बाद आज यूनिवर्सिटी खुलने के बाद क्लासरूम में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसरों ने भूख हड़ताल पर बैठे स्टूडेंट्स और उनके साथियों को यूनिवर्सिटी से बर्खास्त करने की धमकी दी है। स्टूडेंट्स को हड़काने वाले पहले व्यक्ति पूर्व विभागाध्यक्ष और दूसरे वर्तमान डीन हैं। प्रथम दृष्टया में डराने-धमकाने के मामले से हम यह समझ सकते हैं कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि बाकी स्टूडेंट्स इस प्रदर्शन में शामिल ना हों।

हड़ताल पर बैठे स्टूडेंट्स। फोटो साभार- विकाश आनंद।

इन सबके बीच कई प्रोफेसर और स्टूडेंट (विशेष तौर पर महिला स्टूडेंट) व्यक्तिगत स्तर पर इन मांगों के समर्थन में हैं, किन्तु सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने से बच रहे हैं। इसका कारण उनके अंदर बैठा हुआ डर ही है, जिससे ये लोग पार नहीं पा रहे हैं।

यूनिवर्सिटी का यह भी प्रमुख उद्देश्य होता है कि वह अपने स्टूडेंट्स के अंदर का डर दूर भगाते हुए उन्हें निर्भीक बनाएं लेकिन जब कट्टर तौर पर जातिवादी, रूढ़िवादी मूल्यों और संकीर्णताओं के जन्मदाता ही प्रोफेसर और कुलपति जैसे पदों पर कब्ज़ा जमाए हों, तब सिवाय दब्बू और कमज़ोर नागरिकों को पैदा करने के अलावा और भला क्या हासिल होने वाला है?

नोट: YKA यूज़र विकाश आनंद, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में शोधार्थी हैं।

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