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मिड डे मील में नमक-रोटी की गलती सरकार की और मुकदमा पत्रकार पर

पत्रकार का काम सिर्फ खबर छापना होता है। अपनी इमेज का ख्याल सरकार को रखना चाहिए। सरकार की बुराइयों पर उंगली उठाना ही अच्छी पत्रकारिता मानी जाती है। अगर मीडिया में सरकार के प्रति कोई नकारात्मक खबर आती है, तो उसका उद्देश्य सरकार अपने कार्य में सुधार करे, ऐसा ही होता है।

जॉर्ज ऑरवेलने ने कहा है,

सरकार जो नहीं चाहती उसे छापना पत्रकारिता है, बाकी सब जनसंपर्क (पब्लिक रिलेशन)।

इस बात को पत्रकार पवन जायसवाल के मामले में याद कर लेना चाहिए।

पवन जायसवाल। फोटो सोर्स- पवन

स्थानीय अखबार का एक पत्रकार मिड डे मील की खबर बनाता है और प्रशासन की लापरवाही सामने लाता है। ऐसे में सरकार का स्टैंड होना चाहिए कि योजना में सुधार लाया जाए। संबंधित अधिकारी और कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाए। पवन जायसवाल के मामले में इसके ठीक विपरीत देखा गया है।

पवन बताते हैं,

गॉंव के प्रधान प्रतिनिधि ने हमें इस बारे में जानकारी दी। पहले भी हमें वह छोटी-बड़ी खबरों के बारे में बताते रहे हैं।

पवन ने बताया,

जब वह खबर करने जा रहे थे, तब उन्होंने ABSA अधिकारी को इस बारे में फोन पर सूचित किया था। स्कूल में पहुंचने के बाद उन्होंने वीडियो बनाया।

अपने अखबार जनसंदेश टाइम्स में खबर को लगाया, वीडियो को अपने कुछ मीडिया के साथियों से साझा किया। सबने मिलकर वह वीडियो मिर्ज़ापुर के डीएम अनुराग पटेल को दिखाया। डीएम साहब ने SDM चिनार और तहसील चिनार को संबंधित घटना की जांच करने के लिए निर्देश दिए। जांच के बाद दो संबंधित शिक्षकों को निलंबित किया गया। 23 अगस्त को स्वयं डीएम साहब घटना की जांच करने पहुंच गएं। उन्हें वहां पर पता चला कि बच्चों को नमक चावल भी दिया गया।

मिड डे मील में नमक-रोटी खाते बच्चे। फोटो सोर्स- पवन जायसवाल

संबंधित अधिकारियों ने पवन को कहा कि जांच के लिए आपका बयान ज़रूरी है। इस घटना के बाद पवन को जानकारी देने वाले प्रधान प्रतिनिधि को पुलिस हिरासत में लिया गया है। पवन पर और प्रधान प्रतिनिधि के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी, 186, 193 और 420 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी इस मसले पर अपना बयान जारी करते हुए सरकार को मुकदमा वापस लेने को कहा है। बच्चों के लिए खाना बनाने वाली रसोइया रुक्मणी देवी ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि पत्रकार की कोई गलती नहीं थी, बहुत दिनों से यह चल रहा था।

डीएम साहब यह कहते हैं कि प्रिंट के पत्रकार को वीडियो नहीं बनाना चाहिए था। अब डीएम साहब किस आधार पर यह कहते हैं समझना मुश्किल है। पहले बयान में वह कहते हैं गलती हुई है और बाद में कहते हैं छल पूर्वक पत्रकार और प्रधान प्रतिनिधि द्वारा वीडियो बनाया गया।

अगर छल पूर्वक वीडियो बनाना होता तो पत्रकार खबर बनाने से पहले संबंधित अधिकारी को इसके बारे में सूचित नहीं करता। यह घटना पूरी तरह से प्रेस की आज़ादी के खिलाफ है। अगर पत्रकार सरकार की इमेज का ख्याल करने लगे, तो खबर बनाना ही मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में सही जानकारी पाठक और दर्शक तक कैसे पहुंचेगी?

पत्रकार पवन जायसवाल पर हमला अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन है और लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। पहले ही प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत का नंबर काफी गिर चुका है। क्या इस घटना के ज़रिए सरकार पत्रकारों को बताना चाहती है कि सरकार विरोधी खबरों को नज़रअंदाज नहीं किया जाएगा?

(यह स्टोरी पत्रकार पवन जायसवाल के साथ बातचीत पर आधारित है। मिर्ज़ापुर के डीएम अनुराग पटेल से बातचीत करने की कोशिश की गई लेकिन वह फोन पर नहीं आ सके।)

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