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पर्सन विथ डिसेबिलिटी के लिए आज भी आसान नहीं होता है ट्रेन का सफर

लखनऊ से कानपुर जाने वाली सुबह 9 बजे की मेमू में किसी को भी ठीक से बैठने की जगह नहीं मिल पाती है, ऐसे में एक टांग वाले रामस्वरूप की स्थिति क्या होती होगी, हम इसकी कल्पना ही कर सकते हैं।

लखनऊ से कानपुर का लगभग दो घंटे का सफर रामस्वरूप के लिए एक चुनौती से कम नहीं होता होगा, जब उसे पूरा सफर अपनी एक टांग के बल पर खड़े-खड़े पूरा करना पड़ता होगा। लेकिन पेट की भूख और अपनों की परवाह क्या ना करवाए। सूट-बूट पहने पढ़े-लिखे नौजवान बेशर्मी के साथ उसे खड़े देखते रहते हैं पर कोई उसे बैठने की जगह नहीं देता है।

सरकार ने पर्सन विथ डिसेबिलिटी के लिए हर ट्रेन में बैठने के लिए सीट का बंदोबस्त तो किया है मगर अत्यधिक भीड़ होने के कारण उन्हें कहीं बैठने की जगह नहीं मिलती है। पर्सन विथ डिसेबिलिटी की सीटों पर हट्टे-कट्टे स्वस्थ लोग बैठकर अपनी संवेदना का गला घोंटते हुए रामस्वरूप को खड़ा देखकर मुंह फेर लेते थे।

फोटो प्रतीकात्मक है। सोर्स- Twitter

वैसे तो हर किसी को रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा मगर ट्रेनों में सीटों की चुनौतियों एक बड़ी समस्या है। रामस्वरूप तो बस एक छोटा सा उदहारण है, ना जाने कितने लोगों को इसी परेशानी से होकर गुज़रना पड़ता है।

हाल ही में मैंने ट्रेन से सफर कर रहे एक सज्जन से यूं ही प्रश्न किया कि क्या आप किसी पर्सन विथ डिसेबिलिटी, महिला या बुज़ुर्ग को अपने स्थान पर बैठने देंगे, तो वह गुर्राते हुए बोले,

अरे! ऐसे-कैसे दे दें? टिकट तो हमने भी ली है तो बैठने का हक हमारा भी तो होगा ना और रही बात औरों की तो कहीं और बैठ जाए।

उनका यह उत्तर सुनकर मैं दंग रह गया। शायद यह दौड़-भाग भरी ज़िन्दगी, आगे बढ़ने की चाहत ही संवेदनाओं का गला घोंट रही है। ऐसा कई बार हुआ है कि चलती ट्रेन से धक्का-मुक्की और अत्यधिक भीड़ के कारण कोई व्यक्ति दुर्घटना का शिकार हो गया।

भारतीय रेलवे पर्सन विथ डिसेबिलिटी को ट्रेन में सफर के लिए तमाम सुविधाएं देती है, जिनमें टिकट में छूट से लेकर ऑनलाइन बुकिंग तक शामिल है लेकिन सरकार को यह भी ध्यान देना चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति पैरों से चलने से सक्षम नहीं है तो हर स्टेशन में कम-से-कम एक व्हीलचेयर रैंप का निर्माण कराना चाहिए, बड़े स्टेशनों पर तो यह पहले से ही मौजूद है पर छोटे स्टेशनों पर रैंप के साथ ही प्लैटफॉर्म की ऊंचाई बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

व्हीलचेयर रैंप ओर ऊंचे प्लैटफॉर्म से उनकी हर समस्या का समाधान तो नहीं होगा मगर जैसे डूबते हुए को कश्ती का किनारा मिलने पर जो राहत होती है वैसे ही इन्हें भी सहारा मिल जायेगा।

हम आए दिन देखते हैं ट्रेनों में पर्सन विथ डिसेबिलिटी के लिए बनाए गए अलग कोच औेर सीटों पर आम यात्री बैठ जाते हैं। उन्हीं के सामने खड़े हुए पर्सन विथ डिसेबिलिटी को देखकर भी उन्हें उन्हीं की सीट देने में शर्म महसूस होती है।

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