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आर्थिक आज़ादी की ओर बढ़ती महिलाओं के लिए कितना सपोर्टिव है हमारा समाज

आज हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं, जो यह मानता है कि मर्द और औरत में कोई भेद नहीं है लेकिन जब यही सोच अपने घर-परिवार में लागू करने की बात होती है तो यह सोच बदल जाती है। यानि समाज मर्द और औरत को समान समझने का सिर्फ ढोंग करता है।

आज हम हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को देख सकते हैं, चाहे वह कोई भी व्यवसाय ही क्यों ना हो, हम हर क्षेत्र में उनके द्वारा किए जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यों को रेखांकित कर सकते हैं।

आज वह समय है जहां हर कोई अच्छी शिक्षा ग्रहण करके अच्छी नौकरी और व्यवसाय करना चाहता है। आज लड़की हो या लड़का दोनों की यही सोच रहती है कि वह पढ़ लिखकर अपना और अपने माँ-बाप का सपना पूरा करे। इस तरह परिवार भी यही चाहता है कि उनके बच्चे कुछ नाम कमा सकें या जो गरीब वर्ग से हैं, उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो सके। इस तरह हर कोई अपने करियर को लेकर अडिग है।

परन्तु अगर हम यही सोच एक लड़का और एक लड़की के बीच में रखें तो हमें उनके करियर के बीच काफी असमानताएं और भेद का पता चलता है। एक लड़का इस सोच के साथ चलता है कि उसे जल्द-से-जल्द आत्मनिर्भर बनना है, जिससे वह अपना परिवार देख सके और आगे चलकर उसकी शादी होगी। अपनी खुद की, फैमिली की आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति को उचित ढंग से पूर्ण कर सके।

अब बात करते हैं लड़कियों की, जिन्हें बहुत लम्बे संघर्षों के बाद ही शिक्षा का अधिकार और कुछ हद तक आज़ादी ज़रूर मिल गई है लेकिन उन्हें अभी भी समाज की कुछ बेड़ियों ने जकड़ा हुआ है। इन सबमें से मुख्य कारक है “शादी”। यह इतनी ज़रूरी चीज़ है कि जहां लड़कियों का ज़िक्र हो और वहां शादी शब्द का व्याख्यान ज़रूर होता है। 

आज के समय में हर कोई लड़कियों को पढ़ाने की तत्पर इच्छा रखने लगा है और इन सबसे एक अच्छा सन्देश उन लोगों को भी मिल रहा है जो लड़कियों को शिक्षा ना प्रदान करके उनको घर की चारदीवारों में ही कैद रखते हैं।

अक्सर यह माना जाता है कि हमारे समाज में जितनी इज्ज़त और मान सम्मान लड़कों का होता है और महिलाओं को जिस तरह दोयम दर्जे के रूप में देखा जाता रहा है वहीं परंपरा आगे जाकर भी बनी रहे।

लेकिन आज हर लड़की शिक्षा ग्रहण करने की और उन्मुख हो रही है और मेहनत करके अपना मुकाम हासिल करना ही अब उनका लक्ष्य बन गया है। हर एक लड़की पढ़-लिखकर अपना और अपने परिवार का नाम रोशन करना चाहती है और कई ऐसी लड़कियां हैं, जिन्होंने यह कारनामा करके दिखाया है। उन बुलंदियों को छुआ है, जो पहले के दौर में एक कोरी कल्पना समझी जाती थी।

आज के समाज में लड़कियों को शिक्षा के लिए तो प्रोत्साहित किया जाता है लेकिन दूसरी ओर उनकी पढ़ाई पूरी होने से पहले ही उनकी शादी को लेकर चर्चाएं गर्म होने लगती हैं। जैसे ही उनकी उम्र 20-22 के बीच आती है, माँ-बाप को टेंशन होने लगती है और वे लग जाते हैं, रिश्ते ढूंढने।

जैसे ही उनको कोई सही लड़का मिल जाता है बस “चट मंगनी पट ब्याह” कर दिया जाता है। यह सब इतनी जल्दी हो जाता है कि लड़की को भी समझ नहीं आता कि अभी वह पढ़-लिखकर एक आत्मनिर्भर लड़की बनना चाहती थी, वहीं वह आज अपने पति के ऊपर निर्भर हो गई है और इसी तरह वह अपने आपको उस नए परिवेश में ढाल लेती है।

आखिर वह समय कब आएगा जब हम लड़कियों को भी आत्मनिर्भर बनने का पूर्ण अवसर मिल सकेगा। उन्हें भी शादी के पहले अपनी इच्छानुसार व्यवसाय चुनने को कहा जायेगा और वह भी एक अच्छी नौकरी का चयन कर सकेंगी। यानी वह भी शादी के पहले आर्थिक रूप से सशक्त हो सकेंगी, फिर चाहे वह शादी उन्होंने स्वयं की इच्छा से ही क्यों ना की हो।

इस प्रकार वह समय भी आएगा लड़कियों को भी अपने करियर को प्राप्त करके ही शादी जैसी बड़ी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करना हासिल हो सकेगा। इस तरह लड़कों और लड़कियों में आपसी समझ और घर की ज़िम्मेदारियों का दायित्व एक दूसरे के समर्थन से परिपूर्ण साबित होगा।

हर एक लड़की चाहती है कि वह शिक्षा ग्रहण करे और अपने पैरों पर खड़ी हो सके, जिससे वह एक स्वतंत्र जीवनशैली को अपना सके और आर्थिक रूप से सक्षम बन सके। यह सोच उनके आर्थिक रूप से मज़बूत बनने का समर्थन करती है।

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