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आपसी झगड़ों में जब तक ‘माँ-बहन’ आती रहेगी तब तक कैसा डॉटर्स डे

मुझे नहीं पता था कि कल ‘डॉटर्स डे’ था। फेसबुक की फीड और व्हाट्सएप की स्टोरीज़ देखकर पता चला कि आज ऐसा कुछ है। लोग अपनी अपनी बेटियों के साथ सेल्फी, फोटो पोस्ट कर रहे थे।

मेरी बेटी मेरा अभिमान, मेरी बेटी मेरी ताकत जैसे कैप्शन भी खूब दिखे। मैं पिता तो नहीं हूं लेकिन भतीजियां हैं, भांजियां हैं, बहनें हैं, भाभियां हैं, मौसियां हैं, चाचियां हैं, माँ है। वे सब भी बेटी हैं। मेरी तरफ से उन सभी को शुभकामनाएं लेकिन एक सवाल जो मेरे मन को कचोट रहा था, वह ये कि क्या ये खास दिन हर बेटी के लिए होता है?

किस बेटी के लिए है डॉटर्स डे?

क्या प्रदेश की, देश की हर बेटी के लिए ये दिन है? क्या उस अबोध के लिए भी है जिसे बेटे की आस में पेट में ही मार दिया जाता है? क्या 4 महीने की उस मासूम बच्ची के लिए है, जो अपनों से भी सुरक्षित नहीं है? क्या ढ़ाई साल की बिटिया के लिए है जिसका रेप करके उसकी आंखें निकाल कर उसका मर्डर कर दिया जाता है?

क्या 13 साल की उस बेटी के लिए भी है, जिसका स्कूल में टीचर यौन शोषण करता है? क्या 18 साल की उस लड़की के लिए भी है जो मनचलों के खौफ से अपनी पढ़ाई छोड़कर घर पर बैठने को मजबूर है? क्या उस शादीशुदा महिला के लिए भी है जिसे उसके ससुराल में दहेज के लिए फूंक दिया जाता है? क्या उस पत्नी के लिए भी है जिसे बेटे की आस पूरी ना होने पर उसका पति तलाक दे देता है ?

हो सकता है कि आप कहें हां सबके लिए है लेकिन इन बेटियों से जब आप इस बारे में पूछेंगे तो एक चुप्पी के सिवा आपको कुछ नहीं मिलेगा। क्यों यह डॉटर्स डे उस बेटी के लिए नहीं है जो इंसाफ की खातिर शक्तिशाली तथा कथित संत से टकरा रही है? क्यों उस बेटी के लिए नहीं है जिसने अपने पिता और चाची को खो दिया है और आज खुद एम्स में ज़िन्दगी और मौत से लड़ रही है?

नारी सम्मान के नारे सिर्फ भाषण सजाने के लिए

कहने को तो आप कहते रहिए कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’। आप कहते रहिए कि ‘एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है, बेजु़बान छत दीवारों को घर कर देता है’ या बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे नारे लगाईए लेकिन यह तमाम बातें मंचीय भाषणों के लिए बनी हैं।

यह बातें सिर्फ अपने भाषणों और आर्टिकल को सुनहरे शब्दों से सजाने के लिए हैं। ये बातें हकीकत की ज़मीन से कोसों दूर हैं।

ऐसा नहीं है कि बेटियों के लिए आपके दिल में इज़्ज़त नहीं है। है, बिल्कुल है लेकिन सारा सम्मान अपनी बेटी-अपनी बहन तक ही सीमित हो जाता है, दूसरों की बेटियों और बहनों के लिए हमारी नज़रों में कितना सम्मान है, वह बताने या लिखने की शायद ज़रूरत नहीं है।

जहां छोटी-छोटी लड़ाइयों में आपके शब्दों से महिलाओं की गरिमा तार-तार हो जाती हो, किसी को कोसते वक्त आप सीधे मां-बहन की धाराप्रवाह गालियां देते हों, सड़क पर निकलती किसी लड़की को देखकर आपकी आंखों का स्कैनर एक्टिव हो जाता हो,  उस देश में महिला सम्मान की इतनी बातें आपको खोखली नहीं लगती? नारी सुरक्षा के ये बड़े-बड़े दावे झूठे नहीं लगते?

समाज का नारी को लेकर दोगलापन

अब आप सोचिए जिस बेटी के साथ आप अपनी सेल्फी डाल रहे हैं, उसको अगर एक खरोंच आ जाए तो आपकी जान निकल जाती है लेकिन दूसरे की बेटी? वह भी तो एक बेटी है, उसकी भी आंखों में उम्मीदे हैं, वह भी तो उड़ना चाहती है, चहचहाना चाहती है।

उसके अरमानों को रौंदने वाले लोग समाज में खुलेआम घूम रहे हैं। तकलीफ नहीं होती आपको? ये वही समाज है ना जो बेटियों के चलने के तरीके से बता देता है कि फलां ऐसी है फलां वैसी है। यह कर चुकी है, वह कर चुकी है। उस वक्त आपको महिला सम्मान की बातें बेकार नहीं लगती?

एक तरफ मुंह पर दुपट्टा बांधकर चलने वाली हर लड़की को कैरेक्टर सर्टिफिकेट बांट दिया जाता है तो वहीं इसी देश में ‘नारी का सम्मान, मेरा भारत महान’ जैसे नारे लगते हैं।

डॉटर्स डे मना रहे हैं तो आपको बधाई और उम्मीद सिर्फ इतनी सी है कि इस मौके पर आप एक संकल्प ज़रूर लेंगे कि आपसी झगड़ों में कम से कम किसी की माँ बहन करने की आदत छोड़ देंगे या धीरे-धीरे छोड़ने की कोशिश करेंगे।

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