जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और उसके राज्य के दर्जे को खत्म करने के भारत सरकार के निर्णय के बाद जम्मू कश्मीर में जिस तरह की स्थिति बनी हुई है, वह बेहद दुखद है। बीबीसी और कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार वहां की स्थिति बेहद दर्दनाक है। एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने के नाते हम सरकार के अमानवीय और अलोकतांत्रिक तरीकों का विरोध करना वाजिब समझते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स बता रहे हैं कि वहां का जनजीवन अस्त-व्यस्त है। लोग डॉक्टर के पास भी जाने के लिए अधिकृत नहीं हैं। दवाइयों की भारी कमी है। बीमार लोग घर में ही अपने प्राणों की आहुति देने को मजबूर हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। हर तरफ अफरा-तफरी और अराजकता का माहौल है।
अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर से किया गया भारत का वादा है
पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने जम्मू-कश्मीर के नागरिकों से वादा किया था कि हम उनको विशेष राज्य का दर्जा देंगे और उनकी पहचान, उनकी संस्कृति, और उनके रहन-सहन की प्रवृत्ति की रक्षा के लिए संविधान में विशेष प्रावधान की व्यवस्था करेंगे। इन्हीं वादों के तहत अनुच्छेद 370 लागू हुआ था।
जम्मू कश्मीर से संबंधित विशेषज्ञों का मानना है कि अनुच्छेद 370 ने जम्मू कश्मीर को भारत के साथ एकीकृत करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इस अनुच्छेद के प्रावधानों को वर्तमान सरकार ने अपनी बहुमत का इस्तेमाल करके खत्म कर दिया है।
यहां गौर करने वाली एक बात यह है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए भारत सरकार को नोटिस जारी किया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तमाम याचिकाओं को संवैधानिक पीठ को भेज दिया है। तो क्या यह संभव है कि सुप्रीम कोर्ट सरकार के इस निर्णय को असंवैधानिक घोषित कर दे?
राजनाथ सिंह ने किया लद्दाख का दौरा
इन सबके बीच जम्मू-कश्मीर में सत्ताधारी दल के नेताओं और अधिकारियों का जाना लगातार जारी है। राजनाथ सिंह हाल ही में लेह-लद्दाख का दौरा करके आए हैं। उन्होंने वहां जाकर वहां के लोगों से कहा कि उन्होंने उनकी मांग को पूरा कर दिया है और अब लद्दाख और जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या सरकार के इस निर्णय से पहले जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं था? भारतीय संविधान और जम्मू-कश्मीर के संविधान, दोनों में यह बात विशेष तौर पर उल्लेखित है कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।
इसके बावजूद वर्तमान सरकार के गृह मंत्री और रक्षा मंत्री द्वारा यह कहना कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के हटने के बाद वह भारत का अभिन्न अंग बना है, उनकी अज्ञानता को दर्शाता है। जिस तरह के वक्तव्य सरकार के आला मंत्रियों द्वारा दिए जा रहे हैं, वह देश के संवैधानिक और संघीय ढांचे के खिलाफ है।
कश्मीर की आवाम परेशान
हमारे आंतरिक मामलों में निर्णय लेने की प्रक्रिया राज्यों और केंद्र सरकार के बीच में समन्वय करके लेने की है। वर्तमान केन्द्र सरकार ने इस प्रक्रिया का उल्लंघन किया है। इसलिए हम जम्मू कश्मीर के संदर्भ में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के हटाए जाने का विरोध करते हैं।
रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए उसे नसीहत दी कि वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मानवाधिकारों और सुरक्षा उपायों पर ध्यान केंद्रित करे और हम अपने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कृत संकल्पित हैं।
मैं रक्षा मंत्री जी के वक्तव्य के साथ हूं लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब जम्मू कश्मीर के नागरिक परेशान हैं, उनके अधिकारों का हनन हो रहा है, तब हम यह दावा कैसे कर सकते हैं कि हम जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा कर रहे हैं।
इसका नतीजा यह हुआ कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने हमारी छवि एक तानाशाह देश के रूप में पेश की। क्या अंतरराष्ट्रीय मीडिया का इस तरह का व्यवहार हमारे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक गणराज्य होने के तमगे पर कलंक नहीं है?