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संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव की उपस्थिति में जलवायु परिवर्तन पर हुई चर्चा

फोटो साभार- Youth KI Awaaz

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संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव, अमीना जे. मोहम्मद की मौजूदगी में रविवार को दिल्ली के चिन्मय केन्द्र में ‘डेस्टिनेशन क्लाइमेट एक्शन समिट’ का आयोजन किया गया। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव के पद पर नियुक्त होने से पहले अमीना, नाइज़ीरिया संघीय गणराज्य की पर्यावरण मंत्री भी रही हैं।

Youth Ki Awaaz के फाउंडर अंशुल तिवारी के संबोधन से साथ कार्यक्रम का आगाज़ हुआ। Youth Ki Awaaz और यूनाइटेड नेशन्स की साझेदारी में आयोजित इस कार्यक्रम में अंशुल ने कहा कि मैंने एक ऐसी पीढ़ी में जन्म लिया है, जो क्लाइमेट एक्शन के महत्व को सुनते हुए बड़ी हुई है। हमें यह संघर्ष विरासत में मिला है, क्योंकि हम एक बीमार ग्रह में जी रहे हैं।

उन्होंने कहा, “इस मंच को हम वैसा ना बनाएं जहां पर्यावरण संबंधित चर्चा को सुनकर सहमत होने के बाद कल से हमें कोई फर्क ही ना पड़े। हम इस बात को सुनिश्चित करें कि भविष्य में होने वाले बदलावों का नेतृत्व भी हम ही करेंगे।”

अमीना जे. मोहम्मद।

संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव, अमीना जे. मोहम्मद ने जलवायु परिवर्तन पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि इसे रोकने के लिए युवाओं को सामने आना होगा। उन्होंने चिन्मय केन्द्र में आयोजित ‘डेस्टिनेशन क्लाइमेट एक्शन समिट’ की सराहना करते हुए कहा कि युवा नेतृत्व का यह शानदार उदाहरण है।

उन्होंने कहा, “पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर जिस तरीके से खुलकर युवा वर्ग सामने आ रहे हैं, हमने इससे पहले नहीं देखा है। यह एक शुभ संकेत है। भारत में युवा नेतृत्व की यह जो नई पीढ़ी है, वह ‘Agents of Change’ है।”

अमीना जे. मोहम्मद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए युवा वर्ग खुलकर सामने आ रहे हैं मगर उनकी  बातों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इन चीज़ों को बल देने के लिए यूएन मदद करना चाहती है। अमीना युवाओं को संबोधित करते हुए कहती हैं कि पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर एक्शन लेने के लिए इंतज़ार ना करके इसपर काम करने की ज़रूरत है।

कैनवा फाइवर लैब्स की को-फाउंडर और को-सीईओ शिखा शाह

कैनवा फाइवर लैब्स की को-फाउंडर और को-सीईओ शिखा शाह ने रोज़मर्रा के जीवन में उपयोग किए जाने वाले कपड़ों से बनी हुई चीज़ों, का ज़िक्र करते हुए कहा, “क्या हमने कभी इसके इकॉलोजिकल इम्पैक्ट के बारे में सोचा है?”

उन्होंने कहा कि इनमें 75 प्रतिशत कपड़े या तो पॉलिएस्टर होते हैं या कॉटन। एक कॉटन की टी-शर्ट बनाने में 2750 लीटर पानी की खपत होती है। हमलोग एग्रीकल्चर वेस्ट को टेक्सटाइल फिट फाइबर्स में बदल देते हैं, जिससे आपके जूतों से लकर आपकी टोपी तक बनाई जा सकती है।

हमारी संस्था द्वारा जिन प्रोडक्ट्स का निर्माण किया जाता है, वे पर्यावरण की दृष्टिकोण से टिकाऊ होते हैं। उदाहरण के तौर पर इन प्रोडक्ट्स में टेक्सटाइल प्रोडक्ट्स की तुलना में 7000 लीटर कम पानी की खपत होती है। ये प्रोडक्ट्स एंटी बैक्टीरियल और एंटी यूवी होते हैं।

साथी पैड्स के को-फाउंडर और सीटीओ, तरुन बोथरा

केले के रेशे के ज़रिये पैड्स का निर्माण करने वाली कंपनी ‘साथी पैड्स’ के को-फाउंडर और सीटीओ तरुन बोथरा ने कहा, “हमने मेंस्ट्रुअल वेस्ट के बारे में काफी सुना है, जो जटिल समस्या बनती जा रही है। आज पूरे विश्व में 7 बिलियन लोग रहते हैं, जिनमें लगभग आधी आबादी महिलाओं की है। उनके द्वारा लगभग 150 हज़ार टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट प्रकृति को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचा रही है।”

यदि आप बायोडिग्रेडेबल पैड्स का प्रयोग करना शुरू करेंगे, तो पाएंगे कि इनकी कीमत बाज़ार में बिकने वाले पैड्स की कीमत से दो गुना कम होगी।

बकौल तरुन, “हम महिलाओं के साथ काम करते हैं ताकि वे खुद से भी पैड्स बना पाएं। हम उन तमाम महिलाओं और पुरुषों का ख्याल रखते हैं, जो हमारी संस्था से जुड़कर किसी भी रूप में इस काम में अपनी भागीदारी दे रहे हैं। हमने झारखंड के 40 गाँवों में बिना पैसे लिए 1 मिलियन बायोडिग्रेडेबल पैड्स बांटे हैं। हमलोग किसानों के सााथ काम करते हैं ताकि उनकी कमाई का साधन भी बढ़े। उनके एग्रीकल्चर वेस्ट को खरीदकर हम उन्हें बल प्रदान करते हैं। इस प्रोग्राम में हर कोई अपने आप में उद्यमी है।”

अपनी बात समाप्त करते हुए वह कहते हैं कि मैं हर रोज़ अपने ऑफिस जाकर सूर्योदय और सूर्यास्त की तस्वीर लेता हूं। मुझे यह देखकर खुशी मिलती है कि हमारे पास कितनी खूबसूरत प्रकृति है। यदि आज हमने इसपर काम नहीं किया तो आने वाले वक्त में मुश्किलें देखने को मिल सकती हैं।

‘Environmentalist Foundation of India’ के फाउंडर अरुण कृष्णमूर्ति

‘Environmentalist Foundation of India’ के फाउंडर अरुण कृष्णमूर्ति ने कार्यक्रम में शामिल होने आए लोगों से पूछा कि आपमें से कितने लोगों ने आखिरी दफा अपने घर के पास वाले किसी झील के पानी का स्वाद चखा है? आपमें से कितने लोगों ने आस-पास के तालाबों में तैराकी की है? और उन्होंने यहां तक कहा कि आपमें से कितने लोगों ने उन झील वाले इलाकों के पास बैठकर समय बिताया है?

उन्होंने कहा, “आज आलम यह है कि सॉलिड और लिक्विड वेस्ट को झीलों में फेंक दिया जाता है। यहां बैठे लोग अगर मिनरल वॉटर की बोतल में पानी पीते हैं, तो यह ज़रूर ध्यान रखिए कि उसे क्रश करके किसी झील में ना फेंका जाए।”

अरुण बताते हैं कि लिक्विड वेस्ट कई प्रकार के होते हैं। जैसे- शैंपू वॉश, कार वॉश और नालियों के गंदे पानी का इन झीलों में जाना। यहां तक कि इन झीलों पर कई लोगों ने अवैध कब्ज़ा भी कर लिया है। इसके लिए हमसब को मिलकर पहल करने की ज़रूरत है। आपमें से बहुत सारे लोगों को जब मैं कहूंगा कि स्केच पेन से कुछ ड्रॉ करिए, तब आपलोग प्रकृति की सुन्दर-सुन्दर आकृतियां बनाएंगे मगर आपमें से कितने लोगों ने वास्तव में इन आकृतियों को आपके आस-पास देखा है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली के संजय झील को ही देख लीजिए जिसकी हालत किसी से छिपी नहीं है।

अगर मयूर विहार के पास आपमें से कोई रहते होंगे, तो आपको अंदाज़ा होगा कि हम और आप मिलकर ही संजय झील को प्रदूषित कर रहे हैं। मुझे पता है कि आपलोगों को जब मैं कहूंगा कि इन चीज़ों को ठीक करने के लिए क्या आप हमारे साथ आएंगे, तो आपका  जवाब हां होगा और हमें इसी की ज़रूरत है।

अरुण कहते हैं, “चेन्नई के एक एक्सप्रेस-वे में एक झील की हालत काफी खराब थी मगर लोगों की साझी पहल से हमने फिर से उसे पुनर्जीवित कर दिया।”

स्मिता सिंघल

कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव को और भी दिलचस्प बनाने के लिए स्मिता सिंघल मंच पर आईं। गौरतलब है कि स्मिता ने साल 2013 में जल प्रबंधन संस्था के तौर पर ‘Absolute Water’ की शुरुआत की थी। स्मिता की संस्था कीड़ों की मदद से सीवेज के अपशिष्ट पदार्थों को अलग कर पानी को पीने योग्य बनाती है।

उन्होंने मौजूदा परिस्थितियों की बात करते हुए कहा कि यदि आने वाले वक्त में भी हालात ठीक नहीं हुए, तो शायद ही पीने लायक शुद्ध पानी हमें मिल पाए। हमें अभी से ही इन तकनीकों के ज़रिये वॉटर प्यूरिफिकेशन पर ज़ोर देना होगा।

कई देशों में जल को पीने लायक बनाने के लिए क्लोरीन का इस्लेतमाल किया जाता है लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि हम यदि इनका ज़्यादा इस्तेमाल करेंगे तो हमारी सेहत भी खराब हो सकती है।

उन्होंने कहा हम एक ऐसे भारत की कल्पना कर रहे हैं, जहां बगैर सोचे हम नल के ज़रिये पानी पी पाएं।

‘Trashcon Labs’ की फाउंडर और सीईओ निवेदिता की कहानी उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणादायक है, जिन्हें जटिल कामों को करना चुनौतीपूर्ण लगता है। हम सभी इस चीज़ को भली भांति जानते हैं कि आज की तारीख में वेस्ट मैनेजमेंट कितनी बड़ी चुनौती बनी हुई है और इसी चुनौती को मुमकिन कर दिखाया निवेदिता और उनके कुछ इंजीनियर दोस्तों ने।

निवेदिता ने कहा कि बायोडिग्रेडेबल और नॉन बायोडिग्रेडेबल कूड़ों को अलग करने की कोई तकनीक तलाशने के लिए मैं अपने दोस्तों के साथ दो सालों तक घंटों डंप साइट्स पर खड़ी रहती थी। ज़हन में यही बात होती थी कि अगर यह काम मुश्किल है, तो हममें से ही किसी को यह काम करना है।

‘Trashcon Labs’ की फाउंडर और सीईओ निवेदिता

उन्होंने कहा, “एक दिन हमने मशीन के ज़रिये बायोडिग्रेडेबल और नॉन बायोडिग्रेडेबल कूड़ों को अलग करने की तकनीक का पता लगा लिया। इस तकनीक के ज़रिये बायोडिग्रेडेबल पदार्थों को हम किसानों को दे देते हैं ताकि वे उनका प्रयोग खाद और बायो गैस के लिए करें।

उन्होंने कहा कि म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के 2 लाख टन कूड़ों का 95 प्रतिशत हिस्सा नदियों और नहरों में बहा दिया जाता है या किसी डंप साइट्स पर उन्हें जला दिया जाता है।

अंत में सवाल-जवाब का सत्र रखा गया जिसमें संयुक्त राष्ट्र उप महासचिव, अमीना जे. मोहम्मद और हीता लखानी ने ट्विटर के ज़रिये पूछे गए सवालों का जवाब दिया। हीता ने पूछे गए सवालों में से एक सावल का जवाब देते हुए कहा कि पर्यावरण संबंधित समस्याओं का हल बातचीत के ज़रिये संभव है। हमें अपने आस-पास के लोगों से बात करनी होगी ताकि वे भी इसी प्रकार से लोगों के साथ बातचीत के ज़रिये इन मुद्दों के हल पर विचार करें।

वहीं अमीना जे मोहम्मद कहती हैं कि आज जिस तरीके से पर्यावरण संबंधित मुद्दों पर खुलकर हमारे युवा सोच रहे हैं, वह मेरे लिए सुखद है।

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