31 अगस्त को लखनऊ के गोमती नगर स्थित उर्दू अकादमी में सामाजिक न्याय के पुरोधा बीपी मंडल की जयंती पर बदलते सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य में ‘सामाजिक न्याय की प्रसंगिकता’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर शरद यादव मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने की। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता दिल्ली से आए प्रोफेसर सूरज मंडल, प्रोफेसर रतन लाल, अनिल जय हिंद एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत रहे। कार्यक्रम का संचालन छबीलाल अंबेडकर ने किया।
विदित हो कि सामाजिक चेतना फाउंडेशन द्वारा (जिसके अध्यक्ष महेंद्र यादव हैं) लगातार कई वर्षों से ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन होता रहा है।कार्यक्रम के वक्ता सूरज मंडल, जो बीपी मंडल के पोते हैं, उन्होंने विस्तार से मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बारे में बताया।
उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर एसोसिएशन के चुनाव को लेकर मीडिया पर हमला किया और आरोप लगाया कि इस चुनाव में भाजपा से संबंधित प्रत्याशी की बुरी हार हुई, जो मीडिया नहीं दिखा रहा और यह महत्वपूर्ण इसलिए भी था, क्योंकि यह चुनाव बैलेट पेपर से हुआ है। आगे उन्होंने सामाजिक न्याय की पक्षधर पार्टियों के खत्म होने का कारण ईवीएम को बताया।
बहुसंख्यक समाज को झकझोरने का प्रयास हुआ
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रविकांत ने बड़े ही संक्षिप्त तरीके से बहुसंख्यक समाज को झकझोरने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि इतने बड़े समाज को लोकशाही में भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। डॉक्टर संदीप ने अपने नेताओं को कटघरे में खड़ा करते हुए दुर्गति की सारी ज़िम्मेदारी उनके माथे मढ़ दिया।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल ने काशीराम को याद करते हुए आज के बहुजन नेताओं को आड़े हाथ लिया और साथ ही बहुसंख्यक समाज को सड़क पर उतरकर अपने अधिकार सुनिश्चित करवाने पर ज़ोर दिया।
उन्होंने नेता पैदा करने की भी बात की। जिसके लिए ”बहुजन स्कूल ऑफ थॉट एंड पॉलिटिकल लीडर जैसे विचार का भी प्रतिपादन किया और अंत में सामाजिक न्याय के साथ सेक्युलरिज़्म पर भी काम करने की हिदायत दी।
कार्यक्रम की हुई सराहना
दिल्ली से चलकर आए अनिल जय हिंद ने इसे सामाजिक न्याय की लड़ाई का सबसे बुरा दिन बताया और ऐसे कार्यक्रम की सराहना की। इसके साथ ही मंडल कमीशन को लागू कराने में शरद यादव के दांव पेंच को भी को विस्तार से बताया।
जस्टिस राजाराम ने अपने आपको बोलने के बजाय सुनने का आदी बताया, बिसवा के पूर्व विधायक रामपाल यादव ने कहा कि आज कमंडल, मंडल पर भारी हो गया है, जिसके लिए उन्होंने संघर्ष को एकमात्र रास्ता बताया।
जातियों के बिखरने से लड़ाई कठिन हो गई
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि शरद यादव ने प्रमुखता से कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं। उन्होंने कहा-
- हमारे लोग जातियों में बंट गए, जो सामाजिक न्याय के लिए सबसे खतरनाक साबित हुआ। उन्होंने कहा कि हमने देशभर में घुमकर जातियों को जोड़कर जमात बनाई थी, जो अब बिल्कुल बिखर गई है इसलिए लड़ाई बहुत कठिन हो गई है।
- इस मौके पर उन्होंने तमाम महापुरुषों का नाम लेकर कहा कि सब लड़ते-लड़ते हार गए लेकिन समाज में बहुत बदलाव नहीं आया। उन्होंने सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए उत्तर भारत को उपयुक्त मानते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार ही इन्हें चुनौती दे सकता है।
- उन्होंने चुनाव में हुए पराजय के लिए अपने नेताओं को ज़िम्मेदार ठहराया कि यही लोग समाज को जोड़ने में असफल रहे। उन्होंने कहा हमने 3 प्रधानमंत्री बनाएं, 6 से ज़्यादा मुख्यमंत्री बनाएं और हज़ारों विधायक सांसद बनाएं लेकिन सब ”घर चंगा करने में लग गए” जिसका परिणाम सबके सामने है।
- उन्होंने देश में हो रहे माॅब लिंचिंग और गाय के नाम पर लोगों को मार डालने का ज़िक्र करते हुए सरकार पर करारा हमला बोला और कहा कि देश का मुसलमान डरा हुआ है।
- साथ ही साथ उन्होंने कहा कि 30 साल सामाजिक न्याय की पक्षधर पार्टियां सत्ता में रही, जिसमें अहम भूमिका मुसलमानों की रही इसलिए ऐसे वक्त में मुसलमानों के साथ खड़ा होने की ज़रूरत है।
- उन्होंने पाखंड पर जोरदार हमला बोलते हुए बुद्ध के दर्शन को उपयुक्त बताया। साथ ही इंसान की पूजा को सबसे बड़ा धर्म बताया।
- उन्होंने हर कार्यक्रम में बहन-बेटियों तथा दलितों को अधिक से अधिक संख्या में बुलाने पर भी ज़ोर दिया।
- उन्होंने चौधरी चरण सिंह को याद करते हुए मीडिया पर भी हमला किया।
- अंत में उन्होंने वयस्क मताधिकार को सबसे बड़ा अधिकार बताते हुए कहा कि हमारे लोग इसे चंद पैसों में में बेच देते हैं, जिसकी असली कीमत 24.5 लाख करोड़ है।
- साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए कहा कि एक योगी को यह बात समझ में आती है लेकिन हमारे लोगों को नहीं आती।
आगे उन्होंने मजा़किया अंदाज़ में कहा,
“जिसे घंटा बजाना और प्रवचन करना था, वह राज कर रहे हैं और हम यहां प्रवचन कर रहे हैं। यह सामाजिक न्याय की हार नहीं है तो और है क्या है?”
उन्होंने अपने ज़माने के दिनों को याद करते हुए कहा कि कभी शरद यादव चलता था तो तूफान आता था और कल 100 से ज़्यादा मीडिया चैनल वाले आए थे कॉन्फ्रेंस में लेकिन कहीं ज़िक्र ही नहीं किया।
आगे उन्होंने मौजूदा समय को सामाजिक न्याय के लिए मुश्किलों का दौर बताते हुए संभावनाएं तलाशने को कहा और ऐसे कार्यक्रमों की सराहना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह ने न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व के सवाल को महत्वपूर्ण बताया और साथ ही साथ ऐसे कार्यक्रमों के लिए आशीर्वाद दिया।
नोट: YKA यूज़र अमित मंडल लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के स्टूडेंट हैं।