बीआरडी मेडिकल कॉलेज से दो साल पहले निलंबित हुए डॉक्टर कफील खान को सारे आरोपों से मुक्त कर दिया गया है। उन पर भ्रष्टाचार, चिकित्सीय लापरवाही और हादसे के दिन अपना कार्य ठीक से नहीं निभाने के आरोप थे।
इन आरोपों के कारण डॉक्टर कफील ने 9 महीने जेल में बिताए थे। जमानत के बाद बाहर आने के बावजूद भी वह कई समय से लगातार निलंबित रहे। हालांकि अब फैसला आने के बाद उन्होंने सीबीआई जांच की मांग भी की है।
रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टर कफील ने बच्चों की जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास किए थे और उन्होंने किसी प्रकार की असावधानी या लापरवाही नहीं की थी।
अप्रैल महीने में ही सौंप दी गई थी जांच की रिपोर्ट
यूपी के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने मामले की जांच रिपोर्ट हिमांशु कुमार, प्रमुख सचिव (टिकट और पंजीकरण विभाग) को 18 अप्रैल को ही सौंप दी थी। इस रिपोर्ट में यह साफ लिखा गया है कि उस रात डॉक्टर कफील ने हालत को सुधारने के पूरे प्रयास किए थे और उन्होंने कोई लापरवाही नहीं की थी।
Those parents who lost their infants are still waiting for the justice.I demand that government should apologize and give compensation to the victim families.@PTI_News @TimesNow @myogiadityanath @narendramodi @ndtv @ravishndtv @abhisar_sharma @yadavakhilesh @RahulGandhi @UN pic.twitter.com/WaTwQSCUuZ
— Dr kafeel khan (@drkafeelkhan) September 27, 2019
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि डॉक्टर कफील ने अपने सीनियर अधिकारियों को ऑक्सीजन की कमी की बात बता दी थी और इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि डॉक्टर कफील उस वक्त इंसेफेलाइटिस वॉर्ड के नोएल मेडिकल ऑफिसर इनचार्ज नहीं थे।
क्या था मामला?
- 22 अगस्त 2017 को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी से गोरखपुर में हुई 60 बच्चों की मौत के कारण उन पर लापरवाही और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे।
- अखबारों, विभिन्न सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर उन्हें हीरो के रूप में दर्शाया गया कि उन्होंने बाहर से ऑक्सीजन सिलिंडर मंगाकर बच्चों की जान बचाई, जिसके बाद 22 अगस्त 2017 को उन्हें तरह-तरह के आरोपों में लपेटते हुए निलंबित कर दिया गया।
- 2 सितम्बर 2017 को उन्हें जेल भेज दिया गया।
- 8 महीने बाद 25 अप्रैल 2018 को उन्हें जमानत मिल गई।
- मार्च 2019 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि डॉक्टर कफील की जांच पूरी होने के बाद 90 दिन के अंदर उन्हें रिपोर्ट सौंपी जाए।
- यह जांच रिर्पोट 18 अप्रैल को ही आ गई थी लेकिन डॉक्टर कफील को यह 26 सितंबर को सौंपी गई।
अब आगे यह देखना होगा कि सीबीआई जांच में यह केस कहां तक आगे बढ़ता है? हालांकि यह फैसला डॉक्टर कफील के लिए राहत की खबर है मगर मौजूदा वक्त में यह भी सोचना ज़रूरी है कि हमारी सरकारी व्यवस्था इस तरीके से बगैर तथ्यों के किसी को जेल में कैसे डाल सकती है?
डॉक्टर कफील खान भले ही फर्ज़ी आरोपों में जेल गए और तमाम तरह की मानसिक यातनाएं उन्हें झेलनी पड़ी मगर एक अच्छी बात यह है कि वह टूटे नहीं। चाहे बारिश में भीगते हुए किसी कैंप में मरीज़ों की सेवा करने की बात हो या मुज़फ्फरपुर चमकी बुखार के दौरान लोगों को जागरुक करने की बात हो, डॉक्टर कफील प्रशंसा के पात्र तो हैं।