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“आज भी लड़के वाले दहेज की मांग ऐसे करते हैं जैसे यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो”

नेपाल के पूर्वी क्षेत्र मधेश को छोड़कर कहीं भी दहेज प्रथा नहीं है। जिस कारण यहां के माता-पिता को बेटियों का दहेज जुटाने या दहेज के कारण शादी टूटने की चिंता नहीं होती है। इसी कारण भ्रूण हत्या भी कम है और छिटपुट परिवार वालों के अलावा वहां बाल विवाह भी नहीं करवाया जाता है।

लड़का और लड़की दोनों के बीच भेदभाव भी बहुत कम है। नेपाल के पूर्वी क्षेत्र को छोड़कर दहेज की खातिर बहु-बेटियों को जलाने का कोई भय नहीं सताता है। महिलाएं भी अपने स्वतंत्रता से जी सकती हैं।

देश के लिए आतंकवाद है दहेज प्रथा

हमारा देश 73 वर्ष आज़ादी के होते हुए भी आज लड़कियां स्वतंत्र नहीं हैं और भेदभाव भी कायम है। इसका ज्वलंत उदाहरण दहेज प्रथा है, जो देश के लिए एक कलंक के रूप में किसी आतंकवाद से कम नहीं है।

21वीं सदी में विकासशील भारत के लिए दहेज प्रथा एक कोढ़ का काम कर रही है, जो कि दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसकी जड़ें इतनी मज़बूत हो गई है कि अमीर हो या गरीब इसने हर वर्ग के लोगों को जकड़ रखा है।

कानून का नहीं हो रहा कोई असर

दहेज प्रथा के खिलाफ भारत सरकार ने कई कानून भी बनाए हैं लेकिन उन कानूनों का हमारे रूढ़िवादी सोच वाले लोगों पर कोई असर नहीं होता। वह दहेज लेना एक अभिमान का विषय मानते है।

जिसको जितना ज़्यादा दहेज मिलता है, वह उतना ही गर्व करता है। वह सोचते हैं कि अगर हमने दहेज नहीं लिया तो समाज में हमारी कोई इज्ज़त नहीं रह जाएगी इसलिए लड़के वाले लड़कियों से जितनी ज्यादा हो सके उतनी दहेज की मांग करते हैं।

आखिर क्या है दहेज प्रथा?

जब वर पक्ष की ओर से वधू पक्ष को विवाह करने के लिए रुपये, गाड़ी, सामान या अन्य विलासता की वस्तुएं मांगी जाती हैं, वह दहेज प्रथा के अंतर्गत आती है। भारत में इसे दहेज या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नकद या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है।

दहेज प्रथा की उत्पत्ति

पुराने ज़माने में लड़की वालों की तरफ से लड़के वालों को उपहार स्वरूप कुछ वस्तुएं दी जाती थीं। जैसे- घोड़ा, बकरी और ऊंट आदि लेकिन फिर जैसे-जैसे भारत ने प्रगति की तो लोगों के सोचने विचारने की मानसिकता भी बदलती गई।

लड़के वालों को जो वस्तुएं उपहार स्वरूप मिलती थीं अब लड़की वालों पर उपहार देने के लिए विशेष मांग करने लगे है। जब से लड़के वालों की तरफ से यह  विशेष मांग होने लगी है तब से दहेज प्रथा की उत्पत्ति होने लगी थी।

कोई आवाज़ नहीं उठाना चाहता

इसके खिलाफ ना तो कोई बोलना चाहता है ना ही कोई सुनना चाहता है क्योंकि इसमें सब अपना-अपना स्वार्थ देखते हैं। दहेज प्रथा ने लोगों की सोच को इतना खोखला कर दिया है कि अगर उनको दहेज नहीं मिलता है, तो वह शादी करने से इनकार कर देते हैं। अगर कुछ लोग शादी कर भी लेते हैं, तो फिर दहेज के लिए दुल्हन पर अत्याचार करते हैं। जिस कारण उसके माँ-बाप मजबूर होकर दहेज देने को तैयार हो जाते हैं।

समाज के पढ़े-लिखे युवा भी इसके खिलाफ नहीं बोलते हैं क्योंकि उनको भी कहीं ना कहीं यह डर रहता है कि अगर उन्हें दहेज में कुछ नहीं मिला तो अपने परिवार वालों और दोस्तों में उनकी इज्ज़त घट जाएगी इसलिए वह भी दहेज की मांग करने लगे हैं। लड़के वाले दहेज लेना अपना अधिकार समझने लगे हैं, जिस कारण यह दहेज रूपी महामारी हर वर्ग में फैल गई है।

दहेज प्रथा का ज़हरीला दंश

दहेज प्रथा ने वर्तमान में एक महामारी का रुप ले लिया है। यह किसी आतंकवाद से कम नहीं है क्योंकि जब गरीब परिवार के माता-पिता अपनी बेटी की शादी करने जाते हैं तो उनसे दहेज की मांग की जाती है। वहीं जब वह दहेज देने में असमर्थ होते हैं तो वह आत्महत्या कर लेते हैं या फिर किसी ज़मींदार से दहेज के लिए रुपये उधार लेते हैं और ज़िंदगी भर उसका ब्याज चुकाते रहते हैं।

जब भी किसी परिवार में लड़की पैदा होती है तो लोग खुश होने की बजाय दुखी होते है क्योंकि लोग मानते हैं कि बेटियां पराई होती हैं। वह हमारे किसी भी प्रकार से काम नहीं आने वाली और उनकी शादी पर उनको दहेज भी देना पड़ेगा। इस बात की चिंता सताती है कि अब इसके विवाह के लिए दहेज कहां से लाएंगे इसलिए अब बेटियों को कोख में ही मारा जाने लगा है।

लड़कियों के साथ भेदभाव

दहेज प्रथा के कारण लड़कियों के साथ परिवार में ही भेदभाव किया जाता है क्योंकि लोग मानते हैं कि लड़कियां तो पराई होती है इसलिए वह उनको ना तो पढ़ाते और लिखाते हैं। उन्हें किसी प्रकार के कार्य करने की आज़ादी भी नहीं होती है।

दहेज प्रथा के कारण भारत के कई राज्य में लड़के और लड़कियों का लिंगानुपात भी बिगड़ गया है। जिस कारण कई लड़कों की शादी नहीं हो पाती है। वर्तमान समय में तो दहेज ना मिलने पर अपनी बहुओं को मारा-पीटा जाता है और अब तो ज़िंदा जलाकर मारा भी जाने लगा है।

पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को अधिकार नहीं

भारत में पुरुष प्रधान समाज होने के कारण महिलाओं को अपनी बात रखने का कोई अधिकार नहीं होता है। जिस कारण दहेज के लिए महिलाओं का शोषण होता है। उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है ताकि वह अपने घरवालों से दहेज लेकर आएं।

महिलाओं को बचपन से ही यह समझा दिया जात है कि पुरुषों की हर बात माननी चाहिए और उनका आदर सम्मान करना चाहिए। इसमें ही उनकी भलाई है और यही उनका कर्तव्य है। जिस कारण महिलाएं अपने आपको कमज़ोर समझने लगती हैं।

महात्मा गाँधी और दहेज

महात्मा गाँधी ने भी दहेज प्रथा को एक कलंक बताया है। उन्होंने अपनी एक पुस्तक में लिखा है कि

जो भी व्यक्ति दहेज को शादी की ज़रुरी शर्त बना देता है, वह अपने शिक्षा और अपने देश की बदनाम करता है और साथ ही पूरी महिला जात का भी अपमान करता है।

यह ऐसा कटु सत्य है, जिसको झुठलाया नहीं जा सकता है। 21वीं सदी के भारत में लोग अपने सभ्य होने का दावा करते हैं लेकिन जब उनको कहा जाता है कि दहेज ना लें तो वह अपनी सभ्यता भूल जाते हैं और दहेज की मांग ऐसे करते हैं जैसे यह उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो।

 महामारी बन रही दहेज प्रथा

इसके खिलाफ भारत सरकार ने कई कानून बनाए हैं लेकिन उनकी पालन सही प्रकार से नहीं होने के कारण लोगों का दहेज के प्रति आत्मविश्वास और बढ़ गया है और इस वजह से भारत में एक दहेज रूपी महामारी भी भयानक रूप ले रही है। अगर आप दहेज लेते या देते हैं और या फिर इसका समर्थन करते हैं तो आप भी कानून की नज़रों में गुनहगार हैं क्योंकि आप भी इसको बढ़ाने में सहयोग कर रहे है।

दहेज प्रथा को रोकना कोई बड़ा कार्य नहीं है क्योंकि अगर दहेज प्रथा के दो मुख्य किरदार लड़का और लड़की ही इसका विरोध करने लगेंगे तो इसकी कमर वही टूट जाएगी।

दहेज लेना और देना दोनों दंडकारी

वर्तमान में कुछ ऐसे कानून भी आए हैं, जो दहेज प्रथा को रोकने के लिए बनाए गए हैं। उनमें प्रमुख है दहेज प्रतिबंध अधिनियम 1961. जिसके अंतर्गत दहेज लेना और देना दोनों दंडकारी है।

हमें लोगों में जागरूकता फैलाने होगी कि लड़कियों को जितना हो सके उतना ज़्यादा पढ़ाया जाए। जिससे कि वह कोई भी कार्य करने में सक्षम हो और उनको शादी करने के लिए दहेज भी नहीं देना पड़े।

शिक्षा ही हर विनाशकारी बीमारी का तोड़ है। अब तो सरकार भी बेटियों को पढ़ाने के लिए नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था जारी कर चुकी है। बस लोगों को इस बारे में बताना है कि लड़कियां लड़कों से कम नहीं होती हैं।

लड़का और लड़की में भेदभाव बंद करना होगा

जब तक हम लड़की और लड़का में भेदभाव करते रहेंगे दहेज प्रथा को उतना ही अधिक बल मिलता रहेगा। यह आप सबकी ज़िम्मेदारी है कि आपको भी दहेज के लिए ना कहें क्योंकि आपके जीवन में भी कभी ना कभी यह पल ज़रूर आएगा।

            चल रही है ये तेज़ आंधियां गुज़र जाएंगी,

मत छूना इन चिरागों को वरना अंगुलियां जल जाएंगी,

मत जलाओ बेटियों को मान और दौलत के लिए,

वरना एक दिन आप की भी बेटियां जल जाएंगी।

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