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“झारखंड के दुमका में पुलिस ने चालान ना काटकर मुझसे 500 रुपये मांगे”

पुलिस

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‘मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019’ का यूं तो मैं तहे दिल से स्वागत करता हूं मगर इस संदर्भ में मेरी कई चिंताएं हैं। मैं झारखंड राज्य के दुमका ज़िले के मसलिया प्रखंड से हूं, जहां से ज़िले की दूरी लगभग 22 किलोमीटर है। कई दफा ज़रूरी कामों के लिए मुझे शहर आना पड़ता है लेकिन मैं हमेशा इस बात का ध्यान रखता हूं कि गाड़ी से संबंधित सारे कागज़ात ठीक हों।

सबसे पहले आपको एक किस्सा सुनाता हूं। साल 2018 की बात है, जब दुर्गा पूजा के दौरान मैं अपने एक मित्र के साथ दुमका आया था। गाड़ी के सारे कागज़ात पूरे थे मगर मैंने हेलमेट नहीं पहन रखा था। टीन बाज़ार चौक पर काफी संख्या में मौजूद सुरक्षाबलों ने मुझे इस कदर घेरकर पकड़ा जैसे मैं कोई नक्सली या आतंकवादी हूं।

खैर, मेरे पास हेलमेट नहीं था तो वे उसी स्थान पर चालान काट सकते थे, जिसके लिए मैं तैयार भी था मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। मुझे गंदी-गंदी गालियां दी गई और मेरे हाथ से बाइक की चाबी छीनकर उन तमाम सुरक्षाकर्मियों में से एक सुरक्षाकर्मी बाइक स्टार्ट करते हुए मुझे नगर थाना ले गए। इस दौरान उन्होंने हेलमेट नहीं पहन रखा था।

वहां जाने के बाद मुझे 2 घंटे से भी अधिक वक्त के लिए बैठा दिया गया। मैं क्या कहना चाह रहा था, यह सुनने वाला कोई नहीं था। इन्हीं चीज़ों की वजह से पुलिसवालों के प्रति मेरे ज़हन में नकारात्मक तस्वीर बनी है। घंटों बैठने के बाद ऑफसर इंचार्ज ने हवलदार के ज़रिये मुझसे कहा कि मैं 500 रुपये दे दूं नहीं तो गाड़ी थाने में पड़ी रहेगी।

अब अनुमान लगाया जा सकता है कि मुझ जैसे स्टूडेंट से जब कोई पुलिसवाला रिश्वत की मांग कर सकता है फिर तो गरीबों के साथ वे क्या ही नहीं करते होंगे।

वे अंत तक माने नहीं और मुझे 200 रुपये देने ही पड़े फिर जाकर मैं गाड़ी की चाभी लेते हुए वहां से निकला। आज हर तरफ ‘मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019’ की तारीफ हो रही है। कहा जा रहा है कि इससे सड़क हादसे कम होंगे और लोगों में भय का माहौल बनेगा। मैं कहता हूं, हां लोगों में ज़रूर होगा भय का माहौल, क्योंकि पुलिसवाले ही जब क्रूर बन जाएंगे तो लोग उनके पास न्याय की फरियाद ना ले जाकर चुप्पी साधना ही बेहतर समझेंगे।

यह बहुत सही फैसला है कि आपने विभिन्न चालानों की सर्वाधिक राशि 10 गुना तक बढ़ा दी है मगर पुलिसवाले इसका दुरुपयोग कर रहे हैं या नहीं, इसका पता लगाने के लिए क्या आपके पास कोई एक्शन प्लान है? अरे रहने दीजिए साहब! मैंने अपने शहर में पुलिसवालों को ट्रक ड्राइवरों से 20-20 रुपये में बिकते देखा है। मैं पूछता हूं कि इसकी जानकारी मुख्यमंत्री को क्यों नहीं होती है? ज़िले के कमिश्नर के पास इसकी सूचना क्यों नहीं होती है?

मैं जब सड़कों पर बाइक चला रहा होता हूं, तब वर्दी मे मौजूद पुलिसवाले मुझे क्रूर शासक की तरह लगते हैं। ‘मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019’ के लागू हो जाने के बाद से ज़मीनी स्तर पर काफी दिक्कतें हो रही हैं। मेरे गाँव का गरीब किसान अब दुमका जाकर हाट में खाद या सब्ज़ी बेचने से डरता है, क्योंकि उसके गाड़ी के कागज़ात सही नहीं होते हैं।

मेरे गाँव के गरीब लोग जब गाड़ी से संबंधित कोई काम करवाने दुमका आरटीओ ऑफिस जाते हैं, तब वहां मौजूद कंप्यूटर ऑपरेटर्स और क्लर्क अपने खास लोगों के ज़रिये उनसे पैसों की मांग करते हैं।

मैं झारखंड और केन्द्र सरकार से एक सवाल पूछना चाहता हूं, वो यह कि ‘मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019’ लागू हो जाने के बाद से ज़मीनी स्तर पर जो परेशानियां आ रही हैं, उनका हल कैसे निकाला जाए? दुमका ज़िले के आरटीओ ऑफिस से भ्रष्टाचार खत्म करने की ज़रूरत है ताकि गरीब किसान और मज़दूर लोग उचित पैसा देकर अपनी गाड़ी के कागज़ात बनवा पाएं।

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