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लाखों लोगों की नौकरियां है खतरे में लेकिन हम पाकिस्तान की धमकियों में उलझे हैं

The youth of the country remains unemployed/Representational image.

भारत एक ऐसा देश है जो अपनी आर्थिक बदहाली का इलाज ना ढूंढकर पाकिस्तान नाम की बीमारी की देखरेख में लगा हुआ है। भारत, पाकिस्तान द्वारा दी गईं फर्ज़ी धमकी, फूहड़ गीदड़-भभकी और झूठे बयान के पीछे अपना स्वर्णिम समय गंवा रहा है।

हम सब इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि अगर पाकिस्तान से निपटने की नौबत आई भी, तो हमारे पास इतनी सैन्य क्षमता है कि आराम से उनका सामना कर सकते हैं जैसा कि 1965, 1971 और 1999 में किया था।

फिर क्यों पूरा हिंदुस्तान अपनी आर्थिक विफलताओं से मुंह चुराकर पाकिस्तान जैसे मुल्क की, जिसकी दुनिया में आज कोई सुध लेने वाला नहीं है,उसके हरेक ऐरे-गैरे बयान को गंभीरता से लेता है?

सोचिए, जिस कश्मीर के मसले पर समूची दुनिया ने पाकिस्तान की एक भी तथ्यहीन दलील नहीं सुनी, उन्हीं तथ्यहीन दलीलों से हम चिंतित होकर डिबेट की थाली सजाते हैं। ताकि हम अपने आर्थिक संकट से मुंह छुपा सकें। आखिर हम कब तक तथाकथित कश्मीर सफलता पर थिरकेंगे और आर्थिक मोर्चे पर असफलताओं को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे?

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान, फोटो – Getty Images

गिरती हुई जीडीपी

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने 30 अगस्त को जीडीपी के आंकड़े जारी किए। आंकड़ों के आने के साथ ही यह तय हो गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट विकराल रूप धारण कर चुका है।

आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून की तिमाही में आर्थिक विकास की दर पिछले तिमाही के 5.8% से घटकर 5% पर आ गई है। जीडीपी पिछले साढ़े 6 सालों में सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुकी है। जनवरी-मार्च तिमाही में अर्थव्यवस्था 5.8% की दर से आगे बढ़ी थी।

अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टर्स की हालत

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर- अगर सबसे ज्यादा दुर्गति किसी सेक्टर की हुई है तो वह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ही है। पिछले वित्त वर्ष (2018-19) में मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ 12.1% थी। वहीं वर्तमान वित्त वर्ष (2019-20) में  मैन्युफैक्चरिंग ग्रोथ में 0.6% दर की गिरावट दर्ज़ हुई है। इससे नौकरियां जाने का खतरा और बढ़ गया है। जबकि इस सेक्टर में पहले ही लाखों नौकरियां जा चुकी है।

कृषि सेक्टर- कृषि-आंकड़े बताते हैं कि कृषि सेक्टर की तरक्की की रफ्तार धीमी पड़ रही है। यहां ग्रोथ रेट सिर्फ 2% ही रहा जबकि पिछले वित्त वर्ष की इसी समयावधि में यह आंकड़ा 5.1% था। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि कृषि सेक्टर का हाल भी बेहाल ही है।

फोटो क्रेडिट – Getty Images

कंस्ट्रक्शन और माइनिंग- रोज़गार पैदा करने वाले कंस्ट्रक्शन और माइनिंग सेक्टर की विकास दर 5.7% और 2.7% रही। पिछले साल इसी समयावधि में यह आंकड़ा क्रमशः 7.1% और 4.2% रहा था। इससे अनुमान है कि इन सेक्टर्स में आने वाले दिनों में छंटनी तय है और रोज़गार का संकट और गहराएगा।

फॉरेस्ट्री तथा फिशिंग सेक्टर- इन सेक्टर्स की भी हालत नाज़ुक ही है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 5.1% की तुलना में यह सेक्टर 2% की दर से ही आगे बढ़ा है।

ट्रेड, होटल्स, ट्रांसपोर्ट, कम्युनिकेशन तथा सर्विसेज- इन सेक्टर्स में भी गिरावट ही दर्ज़ की गई है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 7.8% की तुलना में यह सेक्टर 7.1% की दर से आगे बढ़ा है।

फाइनैन्शियल, रियल एस्टेट तथा प्रोफेशनल सर्विसेज- आंकड़े बता रहे हैं कि थोड़ी ही सही पर यहां भी गिरावट दर्ज़ की गई है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 6.5% की तुलना में यह सेक्टर 5.9% की दर से आगे बढ़ा है.

इलेक्ट्रिसिटी, गैस, वाटर सप्लाई तथा अन्य यूटिलिटी सेक्टर– केवल इन सेक्टर्स में ही वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 6.7% की तुलना में यह सेक्टर 8.6% की दर से आगे बढ़ा है।

ऑटो सेक्टर की हालत खस्ता

ऑटो सेक्टर की हालत तो और भी बदतर है। ऑटो सेक्टर में मांग ना होने की वजह से प्रोडक्शन बन्द कर दी गई है जिससे लाखों की संख्या में कर्मियों की छंटनी हुई है।

ऑटो सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पूरी जीडीपी का 7.50% है और मैन्युफैक्चरिंग में 49% हिस्सा रखता है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि ऑटो सेक्टर अगर ऐसे ही बदहाल रहा तो आने वाले दिनों में तकरीबन 10 लाख लोगों को रोजी-रोटी की समस्या से जूझना पड़ सकता है।

फोटो – Getty images

अर्थव्यवस्था मंदी की ओर अग्रसर

देश का ऑटो सेक्टर उल्टी दिशा में चल रहा है। ऑटो इंडस्ट्री में लगातार 9 महीने से, बिक्री में गिरावट दर्ज़ हो रही है। जुलाई में वाहनों की बिक्री में 31% की गिरावट आई है जिसके कारण ऑटो सेक्टर से जुड़े साढ़े 3 लाख से ज़्यादा कर्मचारियों की नौकरी चली गई है और तकरीबन 10 लाख नौकरियां खतरे में है।

कृषि क्षेत्र के बाद सबसे ज़्यादा दस करोड़ लोगों को रोजी-रोटी देने वाले टेक्सटाइल सेक्टर की भी तबीयत नाज़ुक ही है।

Northern India Textile Mills Association ने तो बकायदा अखबारों में विज्ञापन लगवा कर ऐलान करवा दिया है कि देश के कपड़ा उद्योग में 34.6% की गिरावट आई है। इस कारण 25 से 30 लाख लोगों के नौकरी पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

कुछ ऐसी ही दुर्दशा रियल एस्टेट सेक्टर में है, जहां मार्च 2019 तक भारत के 30 बड़े शहरों में 12 लाख 76 हज़ार आशियाने बनकर तैयार हैं, मगर उनको खरीदने वाला कोई नहीं है। मतलब मकान तो धड़ल्ले से बनकर तैयार हो रहे हैं मगर उनके खरीदार दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे।

फोटो – Getty images

आरबीआई ने हाल ही में आंकड़े जारी किए थे, जिसके अनुसार बैंकों द्वारा उद्योगों को दिए जाने वाले कर्ज में कमी आई है।पेट्रोलियम,खनन,टेक्सटाइल, फ़र्टिलाइज़र और टेलीकॉम सरीखे नामी सेक्टर्स कर्ज़ लेने से पहले दस बार सोच रहे हैं।

इसे मंदी का असर ही कहेंगे कि अप्रैल से जून 2019 की तिमाही में सोना,चांदी के आयात में 5.3% की कमी आई है, जबकि इसी दौरान पिछले साल इसमें 6.3% की बढ़ोतरी देखी गई थी। निवेश और औद्योगिक उत्पादन के घटने से भारतीय शेयर में भी सुस्ती देखने को मिल रही है।

अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों का हाल जानने के बाद यह साफ ज़ाहिर हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ना केवल भयंकर संकट से जूझ रही है अपितु मंदी की चपेट में आ चुकी है लेकिन हम हैं कि अर्थव्यवस्था की चिंता से मुक्त कश्मीर की कथित जश्न में सराबोर हैं।

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नोट- आंकड़े CSO और मीडिया रिपोर्ट्स से लिए गए हैं।

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