Site icon Youth Ki Awaaz

टू्रिज़्म के नाम पर प्राकृतिक सुंदरता का दोहन आपदाओं को न्यौता देना है

आज वर्ल्ड टूरिज्म डे है यानी कि दुनिया भर में आज एक ऐसे दिन को सेलिब्रेट किया जाता है जिससे विश्व भर में टूरिज़्म और देश की इकोनॉमी को बढ़ावा मिलता है। टूरिज़्म ही है जिससे किसी देश की संस्कृति, सभ्यता और लोक-परम्पराओं को दुनिया भर में जानने का मौका मिलता है।यह एक देश को आर्थिक और सामाजिक मज़बूती प्रदान करता है।

हर वर्ष 27 सितम्बर को वर्ल्ड टूरिज़्म डे मनाया जाता है। मेरा मानना है कि अगर किसी भी देश में टूरिज़्म को बढ़ावा मिलेगा और लोग एक देश से दूसरे देश में पर्यटन स्थलों को देखने जाएंगे, तो दोनों देशों के आपसी संबंध में सुधार तो आएगा ही, साथ ही साथ स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिलेगा।

उत्तराखंड का मसूरी शहर, फोटो साभार- ऋषभ भारद्वाज

उत्तराखंड में पर्यटन की स्थिति

कई देशों के लोग हैं जो पूरा साल बस टूरिस्ट सीज़न का इंतज़ार करते हैं। इसी सीज़न की वजह से उनकी साल भर की जीविका चलती है लेकिन यही टूरिस्ट सीज़न 2 या 3 महीने बाद ठप पड़ जाता है। ऐसे में यह कहना की टूरिस्ट और टूरिज़्म को बढ़ावा देने से स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा, यह सही साबित नहीं होता। खासकर उत्तराखंड के लिए तो बिलकुल भी नहीं।

वर्ल्ड टूरिज़्म डे को पूरी तरह बड़े-बड़े निवेशपति और बिजनेसमैन द्वारा ही ऑरगनाइज़ किया जाता है, जिसमे बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियां शामिल होती हैं। ऐसे में अगर आम आदमी और स्थानीय लोगों के रोज़गार की बात करें तो इसमें कोई दोराहे नहीं है कि उनका फायदा बहुत कम रहता है।

उत्तराखंड की केदारनाथ घाटी, फोटो साभार- प्रियंका

भारत के उत्तर में बसा उत्तराखंड भारत देश के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है और हमेशा से ही अपनी खूबसूरती से दुनिया भर के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता आया है। फिर चाहे खान-पान की दृष्टि से हो या फिर वेशभूषा, बोली-भाषा, लोक-परम्परा आदि।

जहां टूरिज़्म उत्तराखंड के लिए बहुत ज़रूरी है वहीं अधिक पर्यटकों का एक साथ एक निश्चित जगह पर होना भी इस राज्य को आपदाओं से घेरता आया है। प्रत्येक वर्ष टूरिस्ट स्पॉट की सड़कों की मरम्मत तो की जाती है मगर अगले सीज़न में फिर से सड़के क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिसकी वजह से आने वाले पर्यटकों को और स्थानीय लोगों को समस्या का सामना करना पड़ता है।

पहाड़ों में लगातार हो रही क्षति, फोटो साभार- ऋषभ भारद्वाज

पेड़ों की कटाई से पर्यावरण को नुकसान

उत्तराखंड में टूरिज़्म को बढ़ावा देने के लिए जंगलों की कटाई की जाती है और उस जगह पर अडवेंचरस स्पॉट बनाया जाता है, जिसकी वजह से प्रकृति अंसतुलित होती है और प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। उदाहरण के लिए टिहरी डैम का बनना जिसके लिए एक ऐतिहासिक शहर को डुबा दिया गया और हज़ारों लोगों को विस्थापित किया गया। आज वहां एक टूरिस्ट स्पॉट बन गया है।

लोग यहां बोटिंग करते हैं और अपनी छुट्टियों को एन्जॉय करते हैं। राज्य सरकार का कहना है कि पर्यटक स्थल के बनने से यहां हज़ारों लोगों को रोज़गार मिलेगा और पलायन की समस्या भी रुकेगी लेकिन हर वर्ष उत्तराखंड में आती प्राकृतिक आपदाएं, कई लोगों की जान ले लेती है। ये आपदाएं उन ही स्थानों पर ज़्यादा आती हैं, जिस जगह से मानवी छेड़छाड़ की जाती है। जैसे कि केदारनाथ में आई आपदा।

टूरिज़्म को बढावा देने के लिए केदारनाथ घाटी के पेड़ों को काट दिया गया था और बड़े-बड़े होटलों को बनाया गया था। पहाड़ों से पेड़ों की कटाई का होना प्राकृतिक आपदा जैसी घटनाओं को दावत देता है और जिस जगह से पेड़ों की कटाई की जाती है उस स्थान पर इसका अधिक प्रभाव देखने को मिलता है।

पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अभी ऑल वेदर रोड का निर्माण कार्य प्रगति पर है लेकिन इस परियोजना की वजह से कई पेड़ काटे जा रहे हैं जिसके आए दिन दुष्परिणाम देखने को मिल रहे हैं।

बात समझनी पड़ेगी पर्यटन या टूरिज़्म के महत्व को जानने से पहले यह समझना ज़रूरी होगा कि स्थानीय सुन्दरता को मानवीय सुन्दरता में ना बदला जाए और प्राकृतिक संसाधनों का भी हनन ना हो।

Exit mobile version