आइए महसूस करिए ज़िन्दगी की ताप को
मैं चमारों की गली तक ले चलूंगा आपको।
अदम गोंडवी द्वारा लिखी गई, ये महज़ “दो “लाइनें नहीं हैं, बल्कि इन दो लाइनों में ही उन्होंने अपनी पूरी कविता लिख दी है। वैसे आज फुरसत किसे है, कविता और कहानियों की दुनिया में झांकने की। इन दो लाइनों का बेहतर तरीके से वर्णन किया है,आर्टिकल 15 फिल्म ने। निर्देशक और लेखक ने बेजोड़ तरीके से इस फिल्म के एक-एक दृश्य को पर्दे पर उतारा है। फिल्म के किरदारों की तो बात ही मत कीजिये।
आर्टिकल 15 है क्या?
सरकार या राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। इस पूरे कथन को फिल्म में पुलिस ऑफिस में चिपकाया भी जाता है, ताकि लोगों को याद रहे।
सर्वप्रथम यह फिल्म सत्य घटना पर आधारित है और समाज के लोगों की सोच को चोट पहुंचाने के लिए कुछ बेहतरीन डायलॉग डाले गए हैं।इस फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे आज भी जातिगत भेद-भाव प्रचलन में है और हम इसे नॉर्मल मान लेते हैं।
कहानी यह है कि दो लड़कियों की गैंगरेप करके हत्या कर दी जाती है और इसे छुपाने के लिए उसे फांसी पर लटका दिया जाता है। पुलिस यह झूठा हल्ला कर देती है कि दोनों लड़कियों के बीच कुछ ऐसे-वैसे संबंध थे, जिसे बाप ने देख लिया और फांसी पर लटका दिया।
लेकिन जब यह बात आईपीएस अफसर को पता चलती है और वह मामलों की तफ्तीश करते हैं, तो गैंगरेप की बात सामने आती है। इसमें कई पुलिस वाले भी शामिल हैं। बात यह है कि ऐसा होता क्यों है? चूंकि लड़कियां दलित थीं और उसके साथ-साथ उनका यह दोष भी था कि वे मज़दूर थीं।
वे अपने मालिक से अपने दिहाड़ी में तीन रुपये की वृद्धि चाहती थी लेकिन मालिक ने साफ-साफ इंकार कर दिया तो मज़दूर काम छोड़कर जाने लगे। मालिक ने सबक सीखाने के लिए उन लड़कियों का गैंग रेप कर दिया। बाद में फिल्म में यह एक डायलॉग भी है, जो आईपीएस, सीबीआई चीफ से बोलता है
सर, वो लड़कियां सिर्फ अपनी दिहाड़ी में तीन रुपये एक्स्ट्रा मांग रही थी, सिर्फ तीन रुपये। जो मिनरल वॉटर आप पी रहे हैं, उसके दो या तीन घुट के बराबर। उन लड़कियों को मारकर खेतों में फेंका जा सकता था लेकिन नुमाइश बनाकर पेड़ पर टांग दिया गया ताकि पूरी जात को उसकी औकात याद रहे।
उन लड़कियों में से एक लड़की मौके से भाग निकलने में कामयाब होती है, जिसे पुलिस पूरी फिल्म में ढूंढती है।
फिल्म में सियासत के लोगों का दोहरापन भी दिखाया गया है कि कैसे वे “मुंह में राम, बगल में छुरी” वाला खेल खेलते हैं। और भी बहुत ऐसी चीज़ें दिखाई गई हैं, जो आपको झकझोर देने का काम करेंगी।
फिल्म का एक किरदार ‘निषाद’ जो भीम सेना का सदस्य होता है, उसका भूमिका भी अहम है। निषाद के कहने पर ही दलित लोग अपने काम पर जाना छोड़ देते हैं, जिसके कारण पुलिस ऑफिस में गंदा पानी पहुंच जाता है।
हमारे देश की विडम्बना यह भी है कि सभी दलित गटर साफ करने वाला नहीं होता है लेकिन जितने भी गटर साफ करने वाले लोग होते हैं वे दलित ही होते हैं।
मुझे निषाद का किरदार व्यक्तिगत रूप से बेहतर लगा। उसकी कुछ बातें जो ध्यान देने लायक है।
जब आईपीएस ऑफिसर उससे मदद की अपील करता है, तो वह बोलता है,
ये आपका चलने ही नहीं देंगे, सर। ये उस किताब (संविधान) की चलने नहीं देते हैं, जिसकी ये शपथ लेते हैं।
बाबा साहेब यह भी कह के गए थे,
अगर संविधान का मिसयूज़ हुआ, तो मैं पहला आदमी होऊंगा जो इस किताब को जला दूंगा।
जितने लोग बॉर्डर पर शहीद होते हैं, उससे ज़्यादा गटर साफ करते हुए हो जाते हैं पर उनके लिए तो कोई मौन तक नहीं रखता है।
जिस दिन हम हिंसा के रास्ते पर चलें, इनके लिए हमें मारना और भी आसान हो जाएगा।
वैसे भी जो आवाज़ उठाता है, उसे देश की सुरक्षा के लिए खतरा बता दिया जाता है। फिर खत्म कर दिया जाता है। पाश ने कहा था ना, दरअसल हम सबको देश की ऐसी सुरक्षा से खतरा है।
निषाद अपने एनकाउंटर से पहले अपने दोस्त से बोलता है,
हम आखिरी थोड़े ना हैं और भी बहुत हैं।
दरअसल, हमारे समाज में यह जातिगत भावनाएं फैलाते कौन हैं, वे लोग जिन्हें आप सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। हाल ही में लोकसभा के स्पीकर ने ब्राह्मणों को समाज में श्रेष्ठ बताते हुए कहा कि यह स्थान उन्हें त्याग और तपस्या के चलते मिला है। यही वजह है कि ब्राह्मण समाज हमेशा मार्गदर्शक की भूमिका में रहा।
यह हाल है उनका जिन्हें आपने श्रेष्ठ मानकर लोकसभा तक भेजा है, तो आम लोग तो आम ही हैं। अंत में मैं इतना ही कहूंगा कि लिखने वाले लोग जब बेहतर लिखने की कोशिश करते हैं, तब आर्टिकल 15 जैसी मूवी लिख पाते हैं।