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सेक्शन 375: “रेप के आरोप और न्याय के बीच की जद्दोजहद है यह फिल्म”

केस जीतने के बाद सर्वाइवर अपने वकील से कहती है,

मैम, सर सही कह रहे थे, वह रेप नहीं था मगर रेप से कम भी नहीं था।

सर्वाइवर की वकील बचाव पक्ष के वकील के घर जाती है और कहती है,

मुझे लगता है जस्टिस नहीं हुआ है।

बचाव पक्ष के वकील कहते हैं

We are not in the business of justice, we are in the business of law.

उपरोक्त संवाद फिल्म ‘सेक्शन 375’ के आखिरी संवाद हैं। इसी आखिरी संवाद की प्रासंगिकता पर आधारित है, यह पूरी फिल्म। जिसकी कहानी की शुरुआत कुछ यूं होती है।

फिल्म निर्देशक रोहन खुराना (राहुल भट्ट) पर उनकी असिस्टेंट कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर अंजली डांगले (मीरा चोपड़ा) रेप का एफआईआर दर्ज करवाती है। नतीजतन पुलिस रोहन खुराना को गिरफ्तार कर आनन-फानन में सेशन कोर्ट में पेश करती है, जहां विक्टिम का बयान सुनकर कोर्ट रोहन खुराना को रेप का दोषी मानकर 10 साल के लिए सलाखों के पीछे भेज देती है।

अब शुरू होती है असली फिल्म। रोहन खुराना एक हाई-प्रोफाइल क्रिमिनल वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) को अपना वकील बनाते हैं और सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील करते हैं। दूसरी ओर तरुण सलूजा का सामना होता है वकील हिरल गॉंधी (ऋचा चड्ढा) से, जो अंजली डांगले की तरफ से पेश होती है। हिरल गॉंधी महिला सुरक्षा के लिए बहुत चिंतित रहती है और तरुण सलूजा के साथ काम कर चुकी है।

शुरुआत से ही यह केस सर्वाइवर की तरफ झुका रहता है, क्योंकि डीएनए रिपोर्ट से यह साबित हो चुका होता है कि रोहन खुराना और अंजली डांगले के बीच सेक्स हुआ था। भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 375 के अनुसार सर्वाइवर यदि कोर्ट के सामने यह बयान दे देती है कि सेक्स उसकी मर्ज़ी और सहमति के बिना किया गया था, तो वह रेप माना जाएगा। कोर्ट के अंदर वकीलों के बीच केवल इस बात की लड़ाई होती है कि अंजली डांगले के साथ जो सेक्स हुआ था, वह मर्ज़ी थी या ज़बरदस्ती?

लेकिन तरुण सलूजा इस विश्वास से इस केस को लड़ते हैं, मानो रोहन खुराना पर लगे रेप के आरोप गलत हैं और वह यह साबित भी कर देंगे। एक कोर्टरूम ड्रामा फिल्म में जो होना चाहिए वैसा ही होता है।

दोनों पक्षों की ओर से खूब ज़ोरदार दलीलें दी जाती हैं। कभी लगता है सर्वाइवर गलत है, तो कभी लगता है आरोपी गलत है। तरुण सलूजा यह साबित करने पर तुले होते हैं कि जो कुछ भी अंजली डांगले और रोहन खुराना के बीच हुआ था, वह दोनों की सहमति से हुआ था।

तरुण सलूजा जिस ऊर्जा और विश्वास के साथ दलीलें पेश करते हैं, वह उनको फिल्म की धुरी बना देता है। फिल्म की धुरी होने के नाते वह कहीं भी स्क्रीन को लूज़ नहीं पड़ने देते। वह एक-एक सीन को जकड़कर रखते हैं। वहीं हिरल गॉंधी ठीक इसके उलट यह साबित करना चाहती हैं कि जो कुछ अंजली डांगले के साथ हुआ वह उनकी मर्ज़ी और सहमति के खिलाफ था।

हिरल गॉंधी इस बेबाकी और हिम्मत से सर्वाइवर के लिए लड़ती नज़र आती हैं, मानो एक ही सुनवाई में आरोपी पर आरोप साबित कर देना चाहती हो। हिरल गॉंधी के अंदर सर्वाइवर और औरतों के लिए लड़ने का भूख हर दृश्य में साफ-साफ दिखाई देता है।

किन्तु सुनवाई जैसे-जैसे आगे बढ़ती है तरुण सलूजा अपने दमदार दलीलों और खोजी सबूतों के आधार पर केस को सर्वाइवर पक्ष से दूर ले जाते नज़र आते हैं। वह सवालों की इतनी बौछार करते हैं कि फैसला देते समय खुद जज भी द्वंद्व में पड़ जाते हैं कि इसे रेप माने या नहीं। अब जब जज ही इतने हाई-प्रोफाइल केस में कंफ्यूज़ हो जाए तो आप समझ सकते हैं कि कोर्टरूम में क्या-क्या घटित हुआ होगा।

चूंकि दोनों जज कंफ्यूज़न के कारण अपने अनुसार फैसले लेने में खुद को असमर्थ पाते हैं, इसलिए जज सिर्फ और सिर्फ कानून और अंजली डांगले के बयान के आधार पर ही फैसला सर्वाइवर के पक्ष में दे देते हैं या यूं कहें कि देना पड़ता है।

राहुल खुराना को 10 साल की सज़ा होती है। यहां यह ज्ञात हो कि भारतीय दंड संहिता का सेक्शन 375 यह कहता है,

यदि सेक्स सर्वाइवर की मर्ज़ी के खिलाफ किया गया हो तो वह रेप माना जाएगा।

अंजली डांगले ने कोर्ट में यह बयान भी दिया था कि उसकी मर्ज़ी के बिना सेक्स किया गया था।

फिल्म के आखिरी के कुछ संवाद फिल्म को एक अलग ही रूप दे देते हैं, जैसे अंजली डांगले अपने वकील से कहती है,

सर सही कह रह थे यह रेप नहीं था मगर रेप से कम भी नहीं था।

इतना सुनते ही सर्वाइवर की वकील हिरल गॉंधी भौचक्का हो जाती है। रोहन खुराना और अंजली डांगले के बीच जो सेक्स हुआ था वह रेप नहीं था। किंतु जिन दृश्यों, घटनाओं और परिस्थितियों का वर्णन फिल्म में किया गया है, उससे दर्शकों के बीच यह बात करीब-करीब स्थापित हो जाती है कि वह रेप से कम भी नहीं था।

लेकिन यहीं फिल्म छोड़ जाती है कुछ यक्ष और गहरा प्रश्न कि

यह जीत अंजली डांगले की नहीं थी और ना ही रोहन खुराना हारा था, अंजली डांगले से। बल्कि रोहन खुराना उस कानून से हार गया था, जो कानून अंजली डांगले सरीखे तमाम महिलाओं को रेप से बचाने के लिए बनाया गया था। जी वह कानून सेक्शन 375 है। जिसके बारे में चर्चा दोनों वकीलों के बीच फिल्म के अंत में होती है। जहां हिरल गॉंधी, तरुण सलूजा से कहती है

मुझे लगता है जस्टिस नहीं हुआ।

तो तरुण सलूजा कहते हैं

we are not in the business of justice,we are in the business of law

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