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नोएडा: पानी की किल्लत का विरोध करने पर सुपरटेक सोसायटी वालों पर केस दर्ज

उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़

हमें यकीं था हमारा कुसूर निकलेगा

कहते है कि राजा कब के चले गए, रियासत मालिक हो गई पर आज़ादी के 7 दशकों बाद भी राजा और रियासत की बुनियादी अवधारणा कम से कम उत्तर प्रदेश तो जी ही रहा है। जब रामराज्य दावों में तामील होता दिखता है, पर ज़मीन खाली नज़र आती है और निरंकुशता बढ़ती है तो ऐसे में कलम चलाना लाज़िमी हो जाता है।

विकास के नए प्रतिमान नोए़डा की सच्चाई

आईए आपको ले चलता हूं विकास के नए प्रतिमान नोएडा की ओर। जहां गगनचुंबी इमारतें विकास का नया प्रतिमान गढ़ते हुए जानी जाती है। सूरतेंहाल बाहर से देखने में जितना करिश्माई दिखाई देता है, अंदर उतना की दर्द है। बुनियादी मुद्दे हैं, जिनका ना जवाब है और ना जवाबदेही।

एक अदद घर की तलाश और लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित जनसाधारण एक नए मायाजाल का हिस्सा बन बैठा है। किसी हॉस्पिटल, किसी सड़क, किसी स्कूल को बनाने के लिए अधिग्रहित ज़मीनें जब रातोंरात रिहायशी इमारतों में तब्दील हुई, तब इस खेल में चन्द लोग बन गए और अधिसंख्य लोग पीड़ित हुए। लोगों के सपने और तमाम अधिकार बिल्डरों की तिजोरी और कागज़ातों में कैद हो गए।

कुछ ही दिनों पहले की तो बात है। सुपरटेक नाम का बिल्डर जो ज़मीनों को कंक्रीट का जंगल बनाने के लिए जाना जाता है, उसके द्वारा निर्मित एक सोसायटी में पिछले 72 घंटो से वह पानी की आपूर्ति नहीं कर पा रहा है। बिजली की हालत भी खराब है। निवासियों से जो बिल प्रीपेड़ मीटर द्वारा लिया जाता है, वह बिल्डर जमा नहीं करता।

इन हालातों से तंग आकर लोगों ने प्राधिकरण में शिकायत करी। प्रशासन को अवगत कराया और जाहिराना तौर पर बिल्डर द्वारा नियुक्त लोगों को भी। पर नतीजा ढाक के तीन पात। जब किसी ने ना सुनी तो निवासियों ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा और लिंक रोड को ब्लॉक कर दिया। पुलिस से हील हुज्जत हुई। घंटो लगा जाम खुला। पर समस्या का निवारण नहीं हुआ।

अखबार में प्रकाशित खबर

शिकायत का परिणाम

अगली सुबह लोकल कोतवाल ने उन्हीं पीड़ित निवासियों पर प्राथमिकी दर्ज करवा दी जो अपने हक के लिए सिलसिलेवार लड़ रहे थे।  माने प्राधिकरण, प्रशासन को शिकायत की तो कुछ नहीं हुआ तो सड़क पर उतरना लाज़िमी था। पर नोएडा के बिल्डर लखनऊ की चाय पीते हैं, तो पीड़ित ही मुलज़िम हुआ। किसी शायर ने लिखा है,

अभी पीड़ितों की मातमपुर्सी करने तमाम आयेंगे नतीजा सिफ़र ही होगा।

पूरे प्रकरण में यह समझ लेना ज़रूरी हो जाता है कि जो लोग बिल्डर्ज़ की बनायी बिल्डिंग में कैद हैं, वहां उनके अधिकार सलीब पर हैं। जब तक कोई बड़ी घटना ना हो प्रशासन की तंद्रा भंग नहीं होती। शनिवार, इतवार हर छुट्टी के दिन बिल्डर के प्रतिनिधियों से निवासियों का संघर्ष चलता है।

समस्या भी कोई एक या दो नहीं बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी हुई। जैसे-

हद तब होती है जब कोतवाल पीड़ित पर मुकदमा लिखता है। ऐसी सत्ता के सत्ताधीश को निरंकुश कहा जाता है। बुनियादी समस्या उठाते पत्रकार पर सरकारी कहर हो या हक की बात करते लोगों पर पुलिसिया रौब हो, इन सबको लोकतन्त्र में निरंकुशता कहा जाता है।

कौन देगा जवाब?

लोगों को जेल में डालना दम्भ है, अहंकार है, रामराज्य नहीं। सरकार और सत्ताधीश बुनियादी हक के मुद्दों पर कभी जवाब नहीं देते। पर क्या आप में हिम्मत है जवाब देने की?  है तो बताईए कि

  1. लिफ़्ट में कोई घटना हो जाने पर प्राथमिकी किसके खिलाफ दर्ज होनी चाहिए? क्या उत्तरप्रदेश में लिफ्ट आपार्टमेंट ऐक्ट तामील है?
  2.  बिजली का बिल जब उपभोक्ता प्री-पेड भर रहा है तब बिजली मिलती है। बिल्डर बिल ना जमा करे तो लोगों की बिजली क्यों कटे? पीड़ित को सज़ा क्यों देते है।
  3.  बिल्डिंग की ढाँचागत समस्याओं का ऑडिट क्यों नहीं होता? घर गिरने तक का इंतज़ार क्यों किया जाता है
  4. बिजली वितरण का ऑडिट क्यों नहीं होता? क्यों लोगों द्वारा भेजे गए शिकायती पत्र ठण्डे बस्ते में डाल दिए जाते है?
  5.  मेंट्नेन्स के ऊपर जो GST ली जाती है। उस पर कोई SLA और SOP क्यों नहीं है?
  6.  सार्वजनिक जगहों पर पार्किंग काट कर बेची जाती तो किसके पास शिकायत की जाए? प्राधिकरण बहरा है सुनता नहीं। जनसुनवाई महज़ औपचारिकता है। ऐसे में क्या करें?
  7. प्राधिकरण NOC बांट देता है पर बिल्डिंग में फायर अलार्म सिस्टम काम नहीं करता, किसके पास शिकायत करें?
  8. फ़्लैट का जो क्षेत्रफल बेचा जाता है उस पर रेजिस्ट्री कराई जाती है, वो मानकों से कम है। कहां शिकायत करें कौन करेगा सुनवाई?
  9. सोसाइटी के बाहर और उसके लिये जो इन्फ़्रास्ट्रक्चर देना है वह किसकी ज़िम्मेदारी है? जब बिल्डर बिल्डिंग बनवाता है। आपको ज़मीन पर टैक्स देता है। जब खरीददार रेजिस्ट्री करवाता है आपको रेजिस्ट्री के लिए बड़ा अमाउंट देता है। तो क्या आपके प्रशासन को पता नहीं लगता की रेजिस्ट्री हुई है लोग रहने आएंगे। मूलभूत इन्फ़्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत होगी?  सड़क पर लाइट, सप्लाई के ट्यूबवेल चाहिए होंगे, दुरुस्त सड़के चाहिए होंगी। पता लगने के बाद भी कोई काम क्यों नहीं होता? पुलिस की ज़रूरत होगी आपको पता क्यों पता नहीं लगता?
  10. जो सुविधाएं निवासियों को आपके प्रशासन को मुहैय्या कराई जानी चाहिए। वह नोयडा में लोग खुद के पैसे से मैनेज करते हैं। जैसे सोसाइटी के भीतर लाइट, पानी, सुरक्षा इत्यादि। इनमें समस्या होने पर निवारण क्या आपकी ज़िम्मेदारी नहीं है?

मौलिक अधिकारों का अनवरत होता हनन निरंकुशता को पुख्ता करता है। सवाल पूछने और गाँधीवादी तौर तरीकों से संघर्ष करने पर मुकदमे चलाए जाते हैं। आप जवाब नहीं देते चूँकि आप राजा है। हम चिल्लाते रहते है चूंकि हम रियासत हैं। लोकतंत्र सलीब पर है और आप सियासी सफर में।

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