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“मैं भगवान को नहीं मानता हूं इसलिए मेरे दोस्त मुझे हिन्दू विरोधी कहते हैं”

प्रतीकात्मक

प्रतीकात्मक

हां, मैं हूंं नास्तिक! भगवान पर आस्था नहीं है मेरा। तो क्या इसका मतलब यह कि मैं पापी हूं? फिर तो मैं यह कहूंगा कि मुझे नास्तिक होने पर पापी कहने वाले तमाम लोग डर की वजह से भगवान की पूजा करते हैं। इस समाज से और ट्रेन के उन यात्रियों से मुझे नफरत है, जो भक्ति के मुद्दे पर बात करते हुए मुझे घेरते हैं, क्योंकि मैं नास्तिक हूं।

इस समाज का तानाबाना ही कुछ ऐसा है कि उन्हें मेरा नास्तिक होना ही दिखाई पड़ता है मगर मेरा टैलेंट और एक अच्छा इंसान होना नहीं। अगर मैं बाइक चलाते वक्त मंदिर के सामने हाथ नहीं जोड़ता हूं, तो धर्म के तथाकथित रक्षक लोगों को मुझसे चिढ़ होने लगती है। मेरे कई दोस्त तो मुझे नास्तिक कहने लगते हैं।

मेरा यह मानना है कि हमारे समाज में ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है, जो मेहनत ना करके भगवान भरोसे ही सब कुछ हासिल कर लेना चाहते हैं। आप भगवान की पूजा करिए, इससे मुझे कोई तकलीफ नहीं है मगर मैं जब इंसानियत को किसी भी मज़हब से बड़ा कहता हूं, तब धार्मिक आडंबरों के आधार पर मुझे घेरना बंद करिए।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

जब भी मैं अपने दोस्तों से कहता हूं कि भगवान को क्या किसी ने देखा है, तब वे मुझे हिन्दू विरोधी कहने लगते हैं। मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो मंदिर के सामने हाथ भी जोड़ते हैं और बस में किसी लड़की के साथ गलत व्यवहार भी करते हैं। एक तरफ आप महिलाओं को देवी का अवतार बताते हैं और दूसरी तरफ उन्हीं देवियों के साथ गलत बर्ताव करते हैं। मैं तर्क के आधार पर बात करता हूं तो समाज को बर्दाश्त नहीं होता है।

मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो मंदिर में भगवान के दर्शन करने के दौरान महिलाओं को गलत तरीके से छूते हैं, फिर तो वही बात हुई ना कि हम धर्म का चोला ओढ़कर केवल ढोंग कर रहे हैं।

मैं यह नहीं कहता कि सिर्फ हिन्दू धर्म में ही ऐसी चीज़ें होती हैं। मैंने बाकी धर्म के बारे में ना तो सुना है और ना ही देखा है मगर हां, यदि वहां भी ऐसी चीज़ें होती हैं तो मैं उसका समर्थन कतई नहीं करता हूं।

इस लेख के ज़रिये मैं उन तमाम लोगों से यह कहना चाहता हूं कि धर्म के नाम पर मुझे घेरने से पहले ज़रा सोचकर देखिए कि आपके समुदाय से ही कुछ लोग मंदिर में प्रणाम करने के बाद जब बसों में लड़कियों को गलत तरीके से छूते हैं, तब आपका ज्ञान कहां चला जाता है?

हां, मैं नास्तिक हूं। मैं पूजा-पाठ में विश्वास नहीं करता हूं मगर सड़क पर अगर कोई प्यासा व्यक्ति दिख जाता है, तो मेरा धर्म मुझे कहता है कि मैं उसे पहले पानी पिलाऊं। उसकी दुआएं मेरे लिए धर्म के आडंबरों से कहीं  बढ़कर हैं।

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