आज पूरी दुनिया गाँधी जी की 150वीं जयंती मना रही है। वे दुनिया के एकमात्र नेता हैं जिनका जन्मदिन संयुक्त राष्ट्र संघ के 142 सदस्य देश मनाते हैं। वे 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के तौर पर मनाते हैं।
वे अहिंसा दिवस इसलिए नहीं मनाते हैं कि वे महात्मा गांधी और उनकी अहिंसा में भरोसा करते हैं बल्कि वे इसलिए अहिंसा दिवस मनाते हैं कि वे अंधकार में डूबे हुए हैं। उन्हें सूझ ही नहीं रहा है कि इस अंधकार से बाहर कैसे निकलें।
गाँधी हैं आखिरी उम्मीद
बम-बंदूक के रास्ते शांति का रास्ता खोजते-खोजते, शांति बम-बंदूकों के ढे़र पर जा बैठी है। किसी सरफिरे के हाथ सत्ता या अवसर आ जाए तो ना वह बचेगा ना हम। इसलिए गाँधी याद आते हैं। वे आखिरी उम्मीद हैं।
गाँधी जी ने कहा था,
आपकी हिंसा अंतत: आपको ही खा जाएगी।
गांधीजी ने कहा था,
हिंसा या क्रोध या घृणा की लाचारी यह है कि उसकी उम्र बहुत कम होती है। आप कितने वक्त नाराज़गी या घृणा को पाले रख सकते हैं? आप पूरा ज़ोर लगा लें तो भी यह दम तोड़ने लगती है।
आप इसके जाल से निकलना चाहते हैं लेकिन हिम्मत नहीं होती है। हिंसा की ताकत सबसे पहले हिंसक व्यक्ति को ही कायर बना देती है। अहिंसा कहो कि शांति कहो, यह हमें आज़ाद करती है, आदमी बनाती है और सबको इंसान मानने का सामर्थ्य देती है।
हिंसा बदला लेने का सुख देती है, वो वक्त जीत का अहसास भी कराता है लेकिन वह सुख टिकता नहीं है। महाभारत को याद करें तो पाएंगे कि वहां भी सबका नाश हुआ यहां तक की भगवान कृष्ण का भी।
गांधी को बदनाम करने का अभियान
अपने देश को ही देख लीजिए क्या आपको नहीं लगता है कि पिछले दिनों में देश का माहौल बदल गया है ? सभी डरे हुए हैं, एक-दूसरे को शक की नज़रों से देखते हैं? हम एक-दूसरे का भरोसा खो रहे हैं। मोबाइल से बातें कम हो रही हैं, नफरत ज़्यादा फैलाई जा रही है।
महात्मा गाँधी को बदनाम करने का यह अभियान सोशल मीडिया पर क्यों छिड़ा हुआ है? हिंसा के पैरोकारों को गांधी के नाम से इतना डर क्यों लगता है? नफरत के जिस रास्ते चल कर पाकिस्तान बना और पामाल हुआ, क्या हम भी उसी रास्ते पर नहीं चल पड़े हैं ?
कितने तो सवाल हैं सामने, जवाब एक भी नहीं है। इसलिए पुलिस, कानून, दमन का सहारा ही बचा है हमारे पास।
गाँधी के पास चलते हैं तो क्या मिलता है ? रास्ते मिलते हैं, हमारी उलझनों का जवाब मिलता है, हमें नए विकल्प मिलते हैं। पर्यावरण का संकट है, सूखा, बाढ़ और प्रदूषण समाज को तहस-नहस कर रहे हैं।
गांधी कहते हैं,
घबराओ नहीं, जीने का तरीका बदलो ! सादगी से भरा, आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाने वाला सामाजिक प्रयास ही सारे संकटों से बचा सकता है।
गांधी कहते हैं,
सबको साथ लेकर चलना, सबके साथ प्रयास व प्रयोग करने का नाम ही समाज है। पृथ्वी चाहे जितनी छोटी हो, रेगिस्तान-बंजर हो लेकिन मनुष्तमात्र के रहने का एकमात्र घर यही है।
चाहे हम जितने मंगलयान-चंद्रयान बनाएं, अगर साथ रहने का रास्ता नहीं बना सके तो यहां भी दुखी हैं, वहां भी दुखी होंगे।
गांधी का रास्ता
हमारा भारत अनोखा देश है। इस देश जैसा दुनिया में दूसरा है नहीं। आस्तिक भी,नास्तिक भी, राम भी, रहीम भी, यीशु भी, वाहे गुरु भी; अनगिनत धर्म भी, जातियां भी, संप्रदाय-भाषा-भूषा भी, परंपराएं भी और संस्कृतियां भी। हज़ारों साल से इन सबको संभाले हुए यह देश चलता आ रहा है। इसे इसी रास्ते चलना है यदि इसे एक रहना है।
आप पूछते हैं, सभी पूछते हैं कि रास्ता क्या है ? हमें तो भाई यही रास्ता सूझता है- गांधी का रास्ता। इसका माहौल बनाएं हम और जो जहां है, वहीं से अपना काम शुरू कर दे। क्या करना है ? बस इतना-
- सबसे पहली बात: एक है धरती, एक हैं लोग। हम सब भारत माँ की संतान हैं। कोई भारत से छोटी पहचान से हमें जोड़ने आए तो उसे मना कर दें। कोई धर्म-जाति का नाम ले कर हमें लड़ाने की कोशिश करे, तो ऐसे लोगों, संगठनों, संस्थाओं और विचारों से अपना नाता तोड़ लें – फिर वह चाहे कोई भी हो।
- हम हिंसा की किसी वारदात में सम्मिलत नहीं होंगे, ना साथ देंगे और ना उसके दर्शक बने रहेंगे। हम विरोध करेंगे, हम आवाज़ लगाएंगे और हम जो जानते हैं, देखते हैं, वह सबको बताएंगे, यह बात डंके के चोट पर कह दें।
- हम जहां तक संभव हो अपने गांँव, घर, मुहल्ले में बनी चीज़ों का इस्तेमाल शुरू करें। साबुन, तेल, मंजन, कपड़ा- इनके लिए हम बड़ी कंपनियों के पास ना जा कर, पास के कारीगर के पास जाएं। अपने रोज़गार के लिए सरकार पर निर्भर ना रहें। जो बन सके वह गाँव में बनाएं, गांव का उत्पादन खरीदें और दूसरों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करें।
बिहार के दशरथ मांझी ने 22 साल के अथक परिश्रम से पहाड़ खोद कर रास्ता बना दिया है। असम के जादव पयांग ने 30 साल के अकेले परिश्रम से 550 एकड़ का नया जंगल खड़ा कर दिया। अगर हम सब मिल जाएं तो क्या अपना गाँँव नहीं खड़ा कर सकते ?
हम अपने गांव के जल, ज़मीन और जंगल की रखवाली और संवर्धन खुद करेंगे, यह संकल्प कितनी बड़ी ताकत बन सकता है।
हमारी यात्रा किसी दूसरे से नहीं, आपसे ही यह कहने आई है कि आओ, हम साथ मिलें, साथ सोचें और साथ आगे चलें। यह दोस्ती के लिए दोस्ती की यात्रा है।____________________________________________________________________
राष्ट्रीय युवा संगठन, खुदाई खिदमतगार, लोक समिति व म.प्र. सर्योदय मंडल के संयुक्त प्रयास से एक हैं धरती, एक हैं लोग। शांति, सद्भावना यात्रा 11 सितंबर 2019 विनोबा भावे जयंती के अवसर मे अनुपपुर से 02 अक्टूबर 2020 महात्मा गांधी जयंती, भोपाल तक।