जल संकट अब हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या है। गंगा के मैदान के तराई इलाके भी सूखने लगे हैं। पिछले दिनों गोमती नदी के दोनों ओर बसे लखनऊ में विधानसभा के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने आदेश जारी किया कि सभी कार्यालयों और कैंटीनों में आधा ग्लास पानी दिया जाए।
यह आदेश जल की समस्या और उसके उपाय दोनों ओर इशारा करता है। इस तरह के छोटे प्रयास भी मायने रखते हैं। देश में ऐसे दर्ज़नों छोटे प्रयास हो रहे हैं, जिनका अनुकरण किया जाना चाहिए लेकिन अभी भी सरकारी मशीनरी पानी बचाने को लेकर उतनी गंभीर नहीं है, जितनी जनता है।
प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता लगातार घट रही है
बुंदेलखंड में परमार्थ समाज सेवी द्वारा “जन जल जोड़ो अभियान” जल संकट को कम करने का ऐसा ही एक गंभीर प्रयास है। देश की नौंवी जनगणना 1951 में हुई थी। इसमें प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता को भी रिकॉर्ड किया गया था।
उस समय प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता 5,177 घन मीटर थी, जो सन् 2011 में घटकर मात्र 1,545 घन मीटर रह गई है। सरकार का आंकलन है कि वर्ष 2025 तक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता घटकर 1,341 घन मीटर रह जाएगी और वर्ष 2050 तक इसकी मात्रा 1,140 घन मीटर या इससे भी कम हो जाएगी।
ऐसे हालात तब पैदा हुए हैं, जब नदियों को हमारे समाज में माँ का दर्ज़ा दिया गया है। देश में दस हज़ार से ज़्यादा नदियां हैं। तालाब, पोखर, बावड़ी और कुएं आदि प्राकृतिक जल स्रोतों की संख्या लाखों में है। देश में हर साल करीब 4 हज़ार अरब घन मीटर तक वर्षा होती है लेकिन वर्षा जल संचयन की संस्कृति हमने विकसित नहीं की है, जिस कारण 85% से अधिक जल व्यर्थ बह जाता है।
पानी की उपलब्धता कम होने की सबसे बड़ी वजह विकास के नाम पर नदी, तालाबों और कुओं को तबाह कर रिहायशी इलाके बना देना है। शहरों में जिस तरह से तालाब और झील गायब हो रहे हैं, उससे भी संकट बढ़ा है। वॉटर रिचार्ज नहीं हो रहा है, जबकि दूसरी ओर हम पानी का अधिक से अधिक उपयोग कर रहे हैं।
भू-जल स्तर लगातार नीचे जाता हुआ
चेन्नई और मुंबई जैसे समुद्र के किनारे बसे शहरों की हालत देखिए। एक ही बारिश में वे जलमग्न हो जाते हैं क्योंकि हर प्रकार के जल स्रोतों को पाट दिया गया है, जिससे ना पानी रिचार्ज होता है और ना ही बहकर समुद्र में जा पाता है। सूखते तालाब और नदियों के कारण जल संकट बढ़ा तो बोरवेल व नल आदि से भूजल का दोहन शुरू हो गया।
इससे देश में औसतन हर साल भू-जल स्तर 0.3 मीटर नीचे जा रहा है। घरेलू उपयोग में भी हम करीब 80% पानी की बर्बादी कर देते हैं, जबकि थोड़ी सी जानकारी व व्यवहार संबंधी आदतों में बदलाव करके हम बर्बाद होने वाले पानी को बचा सकते हैं।
नदियों में बढ़ता प्रदूषण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के हाल के आंकलन के अनुसार देश में 351 नदियां प्रदूषित हैं। इनमें भी 45 प्रमुख नदियां बुरी तरह से प्रदूषित हैं, जो आने वाले सालों में नालों में तब्दील हो जाएंगी। केंद्रीय जल शक्ति मिशन के अनुसार अकेले दिल्ली में 1.1 बिलियन करोड़ लीटर पानी सीवेज बन जाता है।
देश में दुनिया की आबादी का 18% पानी है और हम केवल 4% पानी को ही पीने के लायक बना पाते हैं। घरेलू कामों में जल का उपयोग केवल 6% होता है और उद्योगों को 5% पानी की ज़रूरत होती है, जबकि 89% पानी का उपयोग कृषि द्वारा किया जाता है। हम कृषि में पानी की खपत को रातों-रात तो कम नहीं कर सकते हैं।
जल संरक्षण दूरगामी आवश्यकता है
जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह कहते हैं कि नदियां हमारी संस्कृति हैं और हमें छोटी-बड़ी हर प्रकार की नदियों को बचाने का प्रयास करना चाहिए। बुंदेलखंड में जल संरक्षण का अनुठा प्रयोग हुआ है। क्षेत्र में परमार्थ समाज सेवी संस्था ने नदियों को पुर्नजीवित करने के लिए नदी यात्रा का आयोजन किया।
इसकी सबसे खास बात यह थी कि इसमें छोटी नदियों को चुना गया, जिनका कोई पुरसाहाल नहीं है। नदी यात्रा के दौरान चुनी गई नदियों के किनारे बसे गाँवों में जल यात्रा निकालने वाले वाॅलिंटियर जाकर गाँव वालों को नदी की महत्ता बताते हैं। साथ ही उन्हें नदी व जल से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी देते हैं, जिनसे वे नदी को लेकर गंभीर हो।
गाँव में कार्यकर्ता बैठक करते हैं, पर्चे बांटते हैं, गोष्ठी करते हैं और वाॅल पेंटिंग करके गाँव वालों के साथ नदी को बचाने का संकल्प लेते हैं। यह यात्रा बुंदेलखंड की नदियों के किनारे कई दिनों तक चली। जल संरक्षण ना सिर्फ हमारी तात्कालिक ज़रूरत है, बल्कि दूरगामी आवश्यकता भी है।