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“एकता और अखंडता के सपने दिखाकर देश में हिंदी को बढ़ावा दिया जा रहा है”

फोटो साभार- Twitter

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“देखो मिट्टी की मूरत के पीछे भागे जा रहे हैं। यह है इंसान की आस्था, जिसने बनाया उसको देखा? मगर पत्थर में भगवान ढूंढ रहे हैं, यह है इंसान का जीवन। बीएमसी ने कहा कि अगर भगवान की मूर्ति घर पर रखी है तो ठीक, नहीं तो सड़क पर बिना लाइसेंस के रखेंगे तो बीएमसी अपनी गाड़ी में उठाकर ले जाएगी। यह है आज का कानून। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा जो भी हो, भगवान का राशन कार्ड ज़रूरी है।” हम हंसते हुए कह दिए, “भैया लिखा करिए।”

आखिर कौन हैं हिंदी भाषी?

जब मुंबई शहर में परदेसी होने का एहसास कराया जाता है, तो हम टैक्सी वालों से बात करके सुकून पा लेते हैं। अपनी हिंदी भी सुधार लेते हैं और खुद को ही अपनी जगह याद दिला देते हैं। इस बात पर कोई चर्चा नहीं होती कि कोई भी राज्य पूर्ण रूप से हिन्दी नहीं है।

हमें समझना होगा कि यह देश कभी पूर्ण रूप से हिंदी भाषी ना था और ना होगा, क्योंकि हर राज्य में कई बोलियां हैं। हर क्षेत्र की अपनी अलग बोली है। हर क्षेत्र की अपनी अलग पहचान है।

पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में हिंदी को लेकर बहुत विवाद है मगर हिंदुत्व को लेकर कोई विवाद नहीं है। जबकि हिंदी, हिंदुओं की भाषा नहीं है। हिंदी, हिंद की भाषा भी नहीं है। हिंदी शायद पढ़े लिखे लोगों का कोई जाली इतिहास है, जो विकास के नाम पर आगे चला जा रहा है। एकता और अखंडता के सपने दिखाकर पूरे देश में हिंदी को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

इस बात पर कोई चर्चा नहीं करता कि हिंदी और गरीबी का पुराना ताल्लुक है। जिस प्रदेश से हम आए हैं, वहां कभी हिंदी, कभी उर्दू, कभी भोजपुरी और कभी इलाहाबादी ज़ुबान से निकल आती है। बस वही भाषा कहलाती है। टैक्सी वालों से बातचीत के दौरान वहां के लोग कहतेे हैं कि मौसम, मिजाज़ और मजबूरी व्यक्त करने के लिए जो भी शब्द मिल जाएं, काफी हैं। बाकी भाषा और भगवान तो पढ़े-लिखे अमीरों का खेल है।

क्या है एक हिंदी भाषी का वर्ग?

इस दुनिया में हर एक व्यक्ति अपने हालातों में फंसा हुआ है। हर इंसान अपने हालातों से जूझ रहा है। जब हालात इच्छा अनुसार हो तो इंसान अपने आप को आज़ाद समझता है। आज़ादी और अमीरी का भी पुराना ताल्लुक है। इंसान को सुखी जीवन का एक फॉर्मूला बताया गया है, जिसमें पूरे परिवार के लिए एक सुंदर घर हो, खाने में कुछ कमी ना हो और पहना बस वही जाए कि देख कर ही सब जल जाएं।

खैर, सच्चाई की कोई अलग भाषा नहीं होती, कोई राज़ नहीं होता, कोई देश नहीं होता। हर इंसान के लिए सच्चाई एक ही है और वह है अपने हालातों से मुक्त हो कर खुशी ढूंढ़ना ताकि वह अपने और अपने चाहने वालों के सपने साकार कर सके।

राष्ट्र-प्रेम का मतलब राष्ट्र-धर्म नहीं है

एक यह भी राष्ट्रवाद है जो अपने देश से प्यार करने के लिए जाति का सर्टिफिकेट नहीं मांगता। चाहे पश्चिमी देश हो या हमारा हिंदुस्तान, सोशलिज्म और कम्युनिज्म के नाम पर बहुत डराया जाता है क्योंकि सत्य यह है कि ना भाषा और ना ही भगवान इस देश में कहीं भी समान हैं। गरीबी और आर्थिक असमानता ज़रूर हर जगह एक है। गरीबों के देश में शासन वही करता है जो प्रशासन कर पाता है। यहां शासन उसी के हाथ में है जो भाषा और भगवान का खेल अच्छे से खेल पाया है।

समय आ गया है कि जनता यह स्वीकार कर ले कि यह देश पढ़े-लिखे अमीरों का देश बन चुका है। यहां सामान्य इंसान के लिए जगह नहीं है। गरीबी का अस्तित्व मिटाने में शासन को ज़्यादा समय नहीं लगता। कुछ आंकड़ों का ही तो खेल है। आखिर शासन समझता है कि उसके पास पूरा अधिकार है जनता पर प्रशासन करने का। ट्रैफिक में फंसा इंसान चाहे जितना विचार कर ले, विरोध नामुमकिन है। एक नहीं, कई कवि हैं क्रांति की आशा में खोए हुए पर निराशा से भरे जीवन में इंसान एक मिट्टी की मूरत लेकर घर पहुंच जाए, यही काफी है।

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