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कविता: “आसान नहीं होता, बेटियों के मन को जानना”

आसान नहीं होता

बेटियों के मन को जानना!

 

आप कहेंगे, इसमें क्या है

बहुत आसान है यह काम

थोड़ा दुलराओ थोड़ा फुसलाओ

हो सके तो थोड़ा आंख ही दिखलाओ फिर तो

बेटियां अपने आप खुलने लगेंगी

खुलने लगता है जैसे स्वेटर

जिसका कोई एक सिरा हाथ लगते ही

आसान हो जाता है पूरे स्वेटर को उधेड़ना

 

पर आप गलत हैं

बेटियां स्वेटर हरगिज़ नहीं होतीं

वे तो होती हैं क्रोशिया

जो उधड़े ऊन से पुनः बुन देती हैं

एक और ही नये आकार का स्वेटर-आपके लिए

आप विस्मित इस करामात पर

विवश हो जाते हैं बेटियों पर

हज़ार-हज़ार बार लुटाने को-अपना मन!

 

आसान नहीं होता

बेटियों के मन को जानना!

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