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कविता: आज़ादी एक जुनून है

आज़ादी एक कहर है,

आज़ादी एक नशा है,

फितूर है ज़ेहन का

बड़ी ही बेवफा है।

 

कब होते हैं आज़ाद हम,

पता ही नहीं चलता,

हर बार इसे खो देते हैं हम

और हर पल श्रम में जीते हैं हम।

 

फितूर सा चढ़ कर बोलता है हर वक्त,

चाहिए आज़ादी, चाहिए आज़ादी,

पर यह आज़ादी कमबख्त ठहरती नहीं।

 

आज़ादी एक जुनून है,

इसमें एक अलग ही मज़ा है।

आज़ादी पाना पूरी तरह,

थोड़ा नामुमकिन ज़रूर है।

 

कभी बस एक एहसास सी लगती है

कभी एक मीठा सा सपना,

तो कभी भ्रम में जीना सिखाती है।

 

कभी हंसाती है,

तो कभी रुलाती है

पर कभी किसी के पकड़ में ना आती है ।

आज़ादी तो आज़ादी है

कभी हाथ में आती नहीं ,

तो कभी जश्न मनवाती है।

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