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कविता: हिंदी तुम प्रेम की भाषा

कविताओं में गूंजी

तो कभी गीतों में तैरी,

पाली की नगरी से

अपभ्रंश की देहरी।

 

प्रेमचंद का आल्हा

और सूर का था कान्हा

हृदय भाषा हो तुम

महात्मा ने माना।

(गांधी ने हिंदी को हृदय भाषा कहा था)

 

चंदर के रासो से

मधुशाला गुज़री

हरिवंश ने तुमसे

अग्निपथ सिखाया।

सलेटों के रास्ते देवनागरी

से गुज़री,

लंबा सफर रोमन तक

ले आया।

 

हिंदी तुम प्रेम की भाषा

प्रगति पथ तक साथ चलो,

टूटे विश्वास को जीतेंगे

तुम विजय विश्व संवाद बनो।

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