मुझे नहीं रहना उस धर्म में
जहां ईश्वर और अल्लाह के नाम लेकर कत्ल होते हैं।
पूजा और यग के नाम पर
बाबाओं का गोरख धंधा चलता है,
झूठी शान के लिए तलवारें खिंच जाती हैं
और बात जब बहनों और माताओं के सम्मान की हो,
तब ज़बानें कट जाती हैं।
मुझे नहीं रहना उस धर्म में
जहां हज़रत के नाम से कत्लेआम हो,
तो कहीं जय श्री राम कहकर लाठियां बरसाता हो।
मुझे नहीं रहना उस धर्म में
जहां सभ्यता अपनी ही जातियों के जाल में फंस कर,
दम तोड़ देती हैं
जहां इंसानियत चीख रही हो और लोग
मंदिर-मस्जिद का राग अलाप रहे हों।
मुझे नहीं रहना उस धर्म में
जहां धर्म के नाम पर
बंदूकें और तलवारें लहराए जा रहे हों,
तो कहीं संदूकें भरी जा रही हों
जो दो हाथ मिले थे करने को नेक काम,
आज उन्हें बंदूकें और शराब थमाई जा रही हैं।
आओ सब मिलकर
पूजा और अज़ान से आगे बढ़कर,
तिलक लगाने और सर झुकाने से ऊपर बढ़कर
अमन-चैन कायम रखें
जो संख्या में दो हैं,
उन्हें भी उनका हक दिलाएं।
पाखंड और आडंबर से परे होकर
उनकी पूजा करें,
जिन्होंने हमारे हक और मूल्यों के लिए लड़े हैं
और उनकी भी, जो जाति और धर्म से आगे बढ़कर,
हमें इंसानियत सिखाई है।