भारत की मौजूदा सरकार के पास लोकसभा में मज़बूत बहुमत के साथ राज्यसभा में विपक्ष के टोकन उम्मीदवार हैं, जिनको मौजूदा सरकार से अलग रखना मेरे लिए मुश्किल की बात होगी। पिछली सरकारों के पास भी लोकसभा और राज्यसभा में मज़बूत बहुमत रहा है लेकिन इस सरकार में बहुत कुछ नया है।
सभी सरकारी संस्थानों, चुनाव आयोग और भारतीय मीडिया पर सरकार का कब्ज़ा हो चुका है जिसमें न्यायालय भी आते हैं। साल भर पहले सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और अभी पटना हाई कोर्ट के एक न्यायधीश, देश की जनता को यह बात बार-बार महसूस कराते रहते हैं।
भारत में पत्रकारों को अपना काम सही से करने का इनाम गौरी लंकेश की हत्या के रूप में, रवीश कुमार को गालियों और धमकियों के रूप में, मिड डे मील में बच्चो को रोटी नमक परोसे जाने वाली खबर को बाहर लाने वाले पत्रकार पर एफआईआर के रूप में, सागरिका घोष और बहुत से पत्रकारों को अर्बन नक्सल, टुकड़े-टुकड़े गैंग और देशद्रोही जैसे तमगों के रूप में दिया जाता है।
भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपना काम नहीं करने दिया जा रहा है। उन पर पुलिस और स्पेशल ब्रांच के अफसरों द्वारा नज़र रखवाई जाती है। सरकार उन्हें आए दिन घरों में बंदी बना लेती है या जेलों में डाल देती है, जैसे कि अघोषित आपातकाल हो। भारत में जिन्होंने आपातकाल देखा है, वे यह भी कहते हैं मौजूदा दौर आपातकाल से भी ज़्यादा खराब है।
बेरोज़गारी पर कोई सवाल नहीं
भारत में बढ़ती बेरोज़गारी चरम पर है। आए दिन प्राइवेट सेक्टर्स में सैकड़ों-हज़ारों लोग नौकरियों से निकाल दिए जा रहे हैं। सरकारी नौकरियां भी नहीं हैं। इसमें सबसे ज़्यादा डराने वाली बात यह है कि करोड़ों की संख्या में बेरोज़गार, रोज़गार नहीं मांग रहे हैं। क्या राष्ट्रवाद और धर्म भूखे की भूख मिटा सकता है?
भारत में जो कानून जनता के फायदों के लिए सामाजिक, राजनीतिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के संघर्षों के बाद बनाए गए हैं, उनमें बदलाव इस प्रकार किए जा रहे हैं कि आगे जनता को फायदा ना होकर सिर्फ सत्ता को हो।
कुछ कानून ऐसे भी हैं, जिनका दुरुपयोग बड़े स्तर पर प्रशासन द्वारा हुआ है। उनमें भी बदलाव किए गए हैं लेकिन बदलाव इस प्रकार किए गए हैं कि अब सिर्फ दुरुपयोग ही होगा।
भारत के राज्य असम में एनआरसी द्वारा 19 लाख लोगों को भारत की नागरिकता से बाहर कर दिया गया है। इनके लिए जर्मनी की हिटलर नाज़ी सरकार की तरह डिटेंशन कैंप बनाए गए हैं, जिनमे मालूम हुआ है लगभग 25 लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है। राज्य सरकार ने भारत सरकार से नाराज़गी जताई है क्योंकि भारत की नागरिकता से बाहर होने वालों में बड़ी संख्या भारत के हिंदुओं की भी है।
कश्मीरियों के अधिकारों का हनन
भारत सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक फैसला कश्मीरियों पर थोप दिया गया है और कश्मीर के लगभग 70 लाख नागरिकों को एक महीने से कैद में रखा हुआ है, जिनमें सामाजिक, राजनीतिक, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सभी राजनीतिक दलों के नेता भी हैं।
कश्मीरी नागरिक परेशान हैं, क्योंकि उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं। अस्पतालों और दवाई की दुकानों पर दवाईयां नहीं हैं। इस फैसले से कश्मीर के लोगों के रोज़गार पर बड़ा असर हुआ है। लोग बेरोज़गार हो गए हैं, जिसके कारण कश्मीर से बाहर पढ़ने वाले कश्मीरी बच्चे कॉलेजों या विश्वविद्यालयों की फीस भरने में असमर्थ हैं।
भारत सरकार द्वारा कश्मीर के इस फैसले पर दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग करने वाले नेता अरविंद केजरीवाल ने समर्थन किया है। बसपा सुप्रीमो मायावती और काँग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित बहुत से नेताओं ने इस अलोकतांत्रिक असंवैधानिक फैसले का समर्थन किया है। हां, यह बात अलग है कि ये अपने आपको लोकतंत्र और संविधान को बचाने की लड़ाई के योद्धा समझते हैं।
रविदास मंदिर प्रकरण
भारत सरकार और दिल्ली सरकार के खिलाफ रविदास मंदिर तोड़े जाने पर हज़ारों की संख्या में सड़कों पर दलित इकट्ठा होते हैं। जिस गैरकानूनी तरीके से बाबरी मस्जिद को तोड़ा गया था, यह मंदिर उस तरीके से बिल्कुल नहीं तोड़ा गया। हमें समझना होगा कि रविदाव मंदिर तोड़े जाने का न्यायालय का आदेश था।
दलित नेता भीम आर्मी चीफ कहते हैं कि आस्था से बड़ा कुछ नहीं है। खैर, यह हमने भाजपा और संघ से ही सीखा है कि मंदिर चाहिए तो चाहिए। मेरी नज़र में यह बयान आरएसएस को राम मंदिर के मुद्दे पर मज़बूत करता है, क्योंकि हिंदुओं की बड़ी आबादी की आस्था राम मंदिर के लिए है।
मैं चंद्रशेखर से पूछना चाहूंगा आस्थाओं को सामने रखते हुए क्या अब राम मंदिर बनवा दिया जाए? अगर हां, तो मुसलमानो की आस्था का क्या होगा?
चिदंबरम सलाखों के पीछे
विपक्षी राजनीतिक दल के नेता शांत हैं। पी. चिदंबरम को जेल भेज दिया गया है। पी. चिदंबरम जिस वक्त गृह मंत्री थे, उस वक्त अमित शाह शहाबुद्दीन एनकाउंटर केस में जेल गए थे और गुजरात से तड़ीपार भी किए गए थे।
इस लोकसभा चुनाव से पहले मैंने मौजूदा भारत और सरकार की तुलना जर्मनी, इटली, इराक और स्पेन जैसे देशों में आए फासीवाद तानाशाही से की थी और डॉक्टर लॉरेंस ब्रिट द्वारा बनाई गई फासीवाद की 14 निशानियों में से भारत में नज़र आई 6 निशानियों को नज़र में रखकर लेख लिखा था।
कुछ वक्त पहले टीएमसी की नेता महुआ मोइत्रा ने भी ब्रिट द्वारा बनाई गई फासीवाद की निशानियों का इस्तेमाल करते हुए लोकसभा में अपनी बात रखी और दुनिया भर में चर्चित हुईं मगर मैं अब महसूस करता हूं कि गाँधी के भारत में फासीवाद आ गया है और वह इन सभी देशों से ज़्यादा खतरनाक होगा। वे 14 निशानियां तो अलग-अलग देशों से ली हुई हैं और यहां तो ज़्यादातर पाई जा रही हैं।
ऐसा नहीं है कि आरएसएस की 100 साल की मेहनत सिर्फ 10 साल तक ही असर दिखाए। यह उन सभी देशों से लंबा चलने वाला है, जिनका नाम फासीवाद में सबसे आगे आता है। मैं आपको डराना नहीं चाहता और ना ही मायूस करना चाहता हूं मगर हां यह ज़रूर कहना चाहूंगा कि लड़ते रहिए। मैं भी लड़ रहा हूं भारत के विचारों के लिए गाँधी के भारत के लिए।