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“क्या कश्मीरियों से भारत खुद को जोड़ पा रहा है?”

फोटो साभार- Twitter

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कश्मीर में सब सामान्य है। स्कूल, कॉलेज भी खुल गए हैं। कुछ जगहों पर लोगों के बात करने के लिए फोन लाइनें भी खोल दी गई हैं। हमारे टीवी स्क्रीन पर आप कोई भी न्यूज़ चैनल लगा लें, ज़्यादातर पर यही बताया जा रहा होगा कि कश्मीर शांत है लेकिन कश्मीर की तस्वीर कुछ और ही कह रही है। 

सूने रास्ते, खाली सड़कें, खाली स्कूल चीख-चीखकर कह रहे हैं कि उनकी आवाज़ को दबा दिया गया है। हमारी सरकार उस आवाज़ को सुन कर भी अनसुना कर रही है। कश्मीर की उस शांति से दूर बैठे हमने भी यह मान लिया है कि घाटी में सब सामान्य है। कुछ मीडिया संस्थान जो कश्मीर की आवाज़ हम तक पहुंचाने की कोशिश भी कर रहे हैं, उन्हें सरकार ने अपने हमले के शोर में कहीं दबा दिया है।

अमित शाह ने राहुल गाँधी को दिया जवाब

गृह मंत्री अमित शाह ने कुछ दिन पहले अपने एक भाषण में कहा कि कोई राहुल गाँधी को बताए कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में एक भी गोली नहीं चली है। राहुल गाँधी को कुछ बताने से पहले कोई अमित शाह को बताए कि गोली चलाने के लिए लोगों का बाहर सड़कों पर होना भी ज़रूरी है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटे हुए एक महीने से ज़्यादा समय हो गया है। घाटी के लोगों से उनका हक छिने हुए भी उतना ही समय बीत गया है।

अमित शाह। फोटो साभार- Getty Images

सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए फैसला तो ले लिया मगर लोगों से उसका विरोध या समर्थन करने का हक छीन लिया। गोली की आवाज़ तो तब सुनाई देगी ना जब आप वहां के लोगों के विरोध के स्वर सुनेंगे। शायद आपकी गोली से लोगों की जान नहीं गई है लेकिन हत्या तो हुई है, अभिव्यक्ति की आज़ादी की हत्या।

स्थिति को सामान्य बनाए रखने के लिए लगाई गई पाबंदी के बीच भी शायद कितने लोगों की जान गई होगी। वह अलग बात है कि आप इसे स्वीकार नहीं करेंगे, ताकि देश को यह बताया जा सके कि कश्मीर में सब ठीक है।

क्या लड़ाई सिर्फ ज़मीन के टुकड़े के लिए है?

कश्मीर शांत है, यह संदेश सिर्फ भारत के अंदर ही नहीं, बल्कि भारत के बाहर भी पहुंचाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत, कश्मीर की आवाज़ बना हुआ है लेकिन हकीकत में भारत कश्मीर की आवाज़ नहीं सुन पा रहा है।

भारत का मानना है कि कश्मीर उसका अंदरुनी मामला है और वहां सब सामान्य है। इन सब में सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के कश्मीर के लिए उठाए गए इस आवाज़ में ज़्यादा शोर ज़मीन के एक टुकड़े के लिए है, ना कि कश्मीरियों के हक के लिए। भारत, कश्मीर को तो अपना बनाना चाहता है लेकिन कश्मीरियों से खुद को नहीं जोड़ पा रहा है।

वक्त रहते सरकार को कश्मीर की आवाज़ सुननी पड़ेगी

सरकार देश की जनता और दूसरे देशों को यह तो बता रही है कि कश्मीर शांत है लेकिन यह नहीं बता रही है कि यह शांति आने वाले तूफान से पहले की है। आप किसी भी चीज़ को एक सीमा तक ही दबा सकते हैं। कोई भी आवाज़ लंबे समय के लिए दबी रहे तो वह बाद में गुस्सा और नफरत बनकर ही फूटती है। फिर उसे दबा या रोक पाना मुश्किल हो जाता है। तब अमित शाह शायद सही गोलियों का हिसाब दे पाएं।

फोटो साभार- सोशल मीडिया

सरकार के पास अभी भी इस तूफान को रोकने का समय है। समय रहते उन्हें कश्मीरियों की आवाज़ सुननी चाहिए और कश्मीर को सिर्फ ज़मीन के एक टुकड़े की तरह नहीं देखना चाहिए। जिस दिन कश्मीरियों की आवाज़ सुनने के लिए सरकार ने अपने कान खोल दिए, उस दिन उसे कश्मीर के लिए लड़ने की ज़रूरत नहीं होगी।

कश्मीर को अपना अभिन्न अंग बनाने से पहले भारत को कश्मीरियों को अपना अभिन्न अंग बनाना होगा। उसके बाद की राह आसान होगी लेकिन किसी भी आवाज़ को सुनने के लिए पहले उसे पाबंदियों की ज़ंजीरों से आज़ाद करना होगा। भारत, अभी भी समय है, सुनिए कश्मीर आप से कुछ कह रहा है।

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