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“फारूक अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर नेहरू वाली गलती तो नहीं दोहरा रहे मोदी?”

जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्र मंत्री और श्रीनगर से सांसद डॉ फारूक अब्दुल्ला को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत 12 दिनों के लिए गिरफ्तार कर लिया है। इससे पहले उनके इकलौते बेटे और उन्हीं की तरह कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी 5 अगस्त को नज़रबन्द कर दिया गया था और साथ महबूबा मुफ्ती को भी।

इसके बाद डॉ अब्दुल्ला के सदन में ना आने को लेकर राज्य सभा में गृह मंत्री अमित शाह का बयान भी आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि अब्दुल्ला साहब को गिरफ्तार नहीं किया गया। बाद में डॉ अब्दुल्ला का एक न्यूज़ चैनल पर बयान आया था,

मुझे कल से घर में बंद कर रखा है मुझे आने जाने इजाज़त नहीं है और देश का गृहमंत्री मुझे लेकर इतना बड़ा झूठ बोल रहा है।

क्या है पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA)

पब्लिक सेफ्टी एक्ट को कश्मीर में आतंक काबू करने के लिए लगाया गया है और पिछले कुछ सालों में हज़ारों लोगों को इसी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है, जो कि बाद में रिहा भी हुए।

इस कानून के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को माहौल बिगाड़ने के शक में गिरफ्तार कर सकती है और उसकी सज़ा कम से कम 3 महीने से 2 साल तक हो सकती है।

अगर 2 साल खत्म हो जाने के बाद वह सज़ा की अवधि बढ़ाना चाहें तो उन्हें कोर्ट में उचित वजह बतानी होगी वरना व्यक्ति रिहा हो जाएगा। हालांकि इस कानून को भारत के मौलिक अधिकारों के अनुच्छेद 20 और 22 का उल्लंघन बताया गया है।

ये दोनों ही अनुच्छेद गिरफ्तार हुए लोगों की कानूनी रक्षा के लिए वकालत करते हैं, जिसके ज़रिए सही कानूनी कार्रवाई  सबको मिल सके। हालांकि इस कानून से सिर्फ अलगवादियों को ही गिरफ्तार किया जाता था लेकिन आज एक पूर्व मुख्यमंत्री जिसने भारत के संविधान के नीचे शपथ ले कर बड़े औहदे संभाले वह भी गिरफ्तार हो गया है, जो कि दुख की बात है।

कौन है फारूक अब्दुल्ला?

डॉ फारूक अब्दुल्ला का जन्म कश्मीर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला और बेगम अकबर जहान अब्दुल्ला के घर हुआ था। जयपुर के सवाई मान सिंह कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद डॉ अब्दुल्लाह लंदन में अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस करते थे और वहीं उनकी मौली अब्दुल्ला से शादी हुई।

बाद में सारा पायलट और उमर अबदुल्ला का जन्म हुआ। फिर 1982 में अपने पिता शेख अब्दुल्ला साहब के इंतेकाल के बाद वे कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री बने। वे 3 बार इस पद पर रहे और पूरे कश्मीर राज्य के मुख्यमंत्री रहने का तमगा भी इन्हीं के नाम है।

आतंकवाद के खिलाफ डॉ फारूक अब्दुल्ला का काम

बात 1989 की है जब डॉ अब्दुल्ला के राजनैतिक विरोधी और उन्हीं की तरह कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती सईद साहब की बेटी रुबिया का अपहरण हो गया था। यह काम जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) ने करवाया था और इसके बदले कुछ आतंकवादियों की रिहाई मांगी थी।

इस मामले में केंद्र की वी पी सिंह सरकार तैयार हो गई थी लेकिन डॉ अब्दुल्ला ने मना कर दिया था। उन्होने कहा,

अगर आज हमने इन्हें छोड़ दिया तो कल ऐसे 100 काम और शुरू हो जाएंगे और हम इन आतंकियों के हाथ की कठपुतली बन जाएंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई उनकी बेटी सारा अब्दुल्ला को भी उठा लेता तो भी वे आतंकवादियों को रिहा नहीं करते। राज्य के मुख्यमंत्री डॉ अब्दुल्लाह की इजाज़त के बिना वे आतंकवादी रिहा हो भी नही सकते थे।

उसके बाद केंद्रीय मंत्री और आज के केरल के गवर्नर श्री आरिफ मुहम्मद खान साहब को डॉ अब्दुल्लाह को समझाने के लिए कश्मीर भेजा गया, जिसमें आरिफ साहब कामयाब हुए।

डॉ अब्दुल्लाह के ना चाहते हुए भी उन आतंकवादियों को छोड़ना पड़ा जिसके बाद डॉ अब्दुल्लाह की भविष्यवाणी सही साबित हुई और एयर इंडिया IC814 की हाईजैकिंग इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

एक कामयाब मुख्यमंत्री

1996-2002 तक डॉ अब्दुल्ला कश्मीर के मुख्यमंत्री बने और उनकी सबसे बड़ी कामयाबी यही थी कि वे आतंकवाद को काबू करने में कई हद तक कामयाब हुए और इसी की बदौलत 2002 के चुनाव में 1996 से कहीं ज़्यादा वोटिंग हुई। यही कामयाबी उनके बेटे उमर अब्दुल्लाह के नाम भी है जिन्होंने 2014 मे राज्य का मुख्यमंत्री रहते हुए आतंकवाद का फन कुचला था।

1999 के कारगिल युद्ध के समय डॉ अब्दुल्ला कारगिल गए थे, जहां पर एक बार वे एक मिलिट्री कैम्प में गए। जब वे हेलीकॉप्टर से वहां पर पहुंचे तो उस समय वहां पाकिस्तानी आर्टिलरी से ज़बरदस्त गोलीबारी हो रही थी।

कहते हैं डॉ अब्दुल्ला, गोलीबारी के बीच अपने हेलीकॉप्टर से निकल कर बंकर पहुंचे थे, जहां पर उन्होंने दिल्ली में बैठे प्रधानमंत्री वाजपयी के समर्थन से कारगिल युद्ध को जल्द खत्म करने में मदद की थी। यह बात खुद डॉ फारूक अब्दुल्लाह ने इंडिया टुडे के कॉन्क्लेव में बताया था।

क्या पंडित नेहरू की गलती तो नहीं दोहरा रहे हैं मोदी

बात 1953 की है जब पंडित नेहरू के आदेश पर डॉ अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला जो उस वक्त कश्मीर राज्य के प्रधानमंत्री के पद पर काम कर रहे थे उन्हें ओर उनके साथी मिर्ज़ा अफजल बैग को कश्मीर कॉन्सपिरेसी केस में गिरफ्तार कर लिया था।

इस केस के तहत उन दोनों पर भारत विरोधी गतिविधियों को करने के इल्ज़ाम लगे थे। यह केस चला और सज़ा के तौर पर पूरे 11 साल शेख साहब जेल में रहे। 1964 में पंडित नेहरू की मृत्यु से चंद महीने पहले ही उनकी रिहाई हुई थी। उस वक्त कश्मीर समस्या के कई जानकारों ने इसे पंडित नेहरू की सबसे बड़ी गलती कहा था।

अब यह खबरें भी आ रही हैं कि शायद डॉ अब्दुल्ला 2 साल जेल में रह सकते हैं। देखा जाए तो अभी भी मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री पहले ही नज़रबंद हैं और एक पूर्व मुख्यमंत्री यानी गुलाम नबी आज़ाद को हाल ही में कश्मीर जाने की इजाज़त मिली है। इस तरह से लग रहा है कि मोदी जी वही गलती दोहराएंगे जो पंडित नेहरू ने की थी।

डॉ अब्दुल्लाह का एक खराब रिकॉर्ड

1987 में जब कश्मीर राज्य में चुनाव हुए थे तो डॉ अब्दुल्ला और केंद्र की राजीव गांधी सरकार पर यह आरोप लगा था कि उन्होंने चुनाव में धांधली कर के सरकार बनाई है।

आरोप थे कि जनता उन्हें सत्ता नहीं देना चाहती थी। इसी सिलसिले में जब इंडिया टुडे के संपादक राजदीप सरदेसाई ने उनसे यह सवाल पूछा था तो डॉ अब्दुल्ला ने ये कहा था,

उन चुनावों में मेरा एक मंत्री भी हार गया था और अगर चुनाव में धांधली होती तो वह जीत ना जाता।

जब 1990 में कश्मीर जल रहा था और डॉ अब्दुल्ला की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया तब डॉ अब्दुल्ला अपने परिवार के साथ इंग्लैंड चले गए जबकि उन्हें वहां रह कर हालात को काबू में करना चाहिए था।

डॉ अब्दुल्ला के पिछले दिनों कई विवादित बयान आए जिसमें एक बार उन्होंने पत्थरबाज़ों को आज़ादी का सिपाही बताया और कई सभाओ में केंद्र सरकार की आलोचना की जिसे कई लोगों ने भारत विरोधी बताया था। हालांकि उनकी गिरफ्तारी कभी नहीं हुई।

इस वक़्त सरकार को चाहिए कि वह डॉ फारूक अब्दुल्ला, ओमर अब्दुल्लाह, महबूबा मुफ्ती को रिहा कर पूरे राज्य में चुनाव की घोषणा करे और हालात को काबू में लाने की कोशिश करे क्योंकि इस मामले में सियासी जमाते ही मदद कर सकती हैं।

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