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JNU छात्रसंघ चुनाव की सभी सीटों पर लेफ्ट की जीत के रुझान

जेएनयू छात्रसंघ चुनाव के लिए पड़े वोट्स की काउंटिंग पूरी हो गई है लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने फिलहाल चुनाव के नतीजे घोषित करने पर 17 सितंबर तक रोक लगा दी है। अंतिम परिणाम 17 सिंतबर के बाद ही आएंगे।

फिलहाल रुझानों की बात करें तो जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में यूनाइटेड लेफ्ट चारों पदों पर आगे दिख रहा है। अभी तक के रुझान के अनुसार आईशी घोष 2313 वोटों के साथ अध्यक्ष पद की दावेदार दिख रही हैं। अध्यक्ष पद के लिए 1128 वोटों के साथ एबीवीपी के मनीष जांगिड़ दूसरे स्थान पर दिख रहे हैं, 1122 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर बापसा के जितेंद्र सूना हैं।

फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

उपाध्यक्ष पद के लिए यूनाइटेड लेफ्ट के साकेत मून 3365 वोटों के साथ लीड कर रहे हैं, 1335 वोटों के साथ एबीवीपी की श्रुति अग्निहोत्री दूसरे स्थान पर दिख रही हैं।

जनरल सेक्रेटरी पद के लिए यूनाइटेड लेफ्ट के सतीश यादव 2518 वोटों के साथ आगे चल रहे हैं, 1355 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर एबीवीपी से सबरीश पीए दिख रहे हैं, 1232 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर बापसा के वसीम आरएश फिलहाल नज़र आ रहे हैं।

ज्वाइंट सेक्रेटरी पद के लिए यूनाइटेड लेफ्ट के मो. दानिश 3295 वोटों के साथ आगे हैं, एबीवीपी की ओर से सुमंता साहू 1508 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर दिख रही हैं।

 लेफ्ट के लिए अस्मिता का सवाल था यह चुनाव

फोटो सोर्स- सोशल मीडिया

यह चुनाव लेफ्ट के लिए अस्मिता का सवाल बन चुका था, अंततः उन्हें गठबंधन करना पड़ा। अगर यह चुनाव लेफ्ट के छात्र संगठन बिना गठबंधन के लड़ते तो स्थिति गंभीर होती। यूनाइटेड लेफ्ट के प्रत्याशी अपने दूसरे स्थान के प्रतिद्वंद्वी से दोगुनी व उससे ज़्यादा बढ़त बनाए हुए हैं। यह कहना कि लेफ्ट जेएनयू छात्रसंघ में कमज़ोर हो गया है, यह वाज़िब नहीं होगा।

रुझानों के हिसाब से अध्यक्ष पद में मुख्य प्रतिद्वंद्वी एबीवीपी व बापसा दिख रहा है तो वहीं उपाध्यक्ष पद के लिए एबीवीपी दिख रहा है। जनरल सेक्रेटरी के लिए भी बापसा व एबीवीपी व ज्वाइंट सेक्रेटरी पद के में एबीवीपी टक्कर में दिख रहा है।

लेफ्ट समेत सभी संगठनों ने खूब भुनाया भाजपा-आरएसएस व एबीवीपी का “शट डाउन जेएनयू” कैम्पेन।

विगत वर्षों में जेएनयू में कथित देशविरोधी नारेबाज़ी के दौरान इस कैम्पेन को दक्षिणपंथियों द्वारा चलाया गया था। इसी के कारण इस छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी को काफी नुकसान उठाना पड़ा। इस कैम्पेन को एबीवीपी के विरोधियों द्वारा जेएनयू की अस्मिता से जोड़कर ज़ोर-शोर से प्रचारित किया गया।

इसके साथ ही बापसा जो कि लेफ्ट व एबीवीपी, लेफ्ट व एनएसयूआई के लिए कठिनाई बनता जा रहा था, परिमाण में भी यह साफ दिख रहा है। बापसा (बिरसा, अम्बेडकर, फूले स्टूडेंट असोसिएशन) जिससे जुड़े लोगों का मानना है कि उन्हें किसी भी संगठन में उचित स्थान नहीं दिया गया, वे जातिवाद के शिकार हुए, सामाजिक न्याय व समानता की विचारधारा के साथ उन्होंने यह चुनाव लड़ा। यह संगठन मज़बूत होकर उभरा है।

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