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JNU के G4S गार्ड्स को हटाकर नए सिक्योरिटी गार्ड्स की हुई नियुक्ति

सिक्योरिटी गार्ड्स की तस्वीर

सिक्योरिटी गार्ड्स की तस्वीर

[एडिटर्स नोट: हमने खबर की पुष्टि के लिए जब G4S कंपनी से बात की, तब उन्होंने यह कहते हुए कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया कि प्रेस रिलीज़ के ज़रिये आपको जानकारी मिल जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि हम इस विषय पर अभी कुछ बात नहीं करना चाहते हैं।]


देश के सबसे विख्यात विश्वविद्यालयों में से एक जेएनयू इन दिनों फिर से चर्चा में है। छात्र संघ चुनाव परिणाम पर स्टे लगने और हटने के बाद अब यहां G4S गार्ड्स का मुद्दा चर्चा में है। चर्चा इस बात की है कि यहां सालों से अपनी नौकरी कर रहे G4S गार्ड्स की अब छुट्टी कर दी गई है।

विदेश की एक कंपनी G4S को यह कॉन्ट्रैक्ट मिला हुआ था, जो JNU को सिक्योरिटी गार्ड्स की सुविधा प्रदान करती थी लेकिन यह मामला तूल इसलिए पकड़ता जा रहा है, क्योंकि यहां पर काम कर रहे 450 से भी ज़्यादा गार्ड्स अब बेरोज़गार हो चुके हैं।

नई कंपनी, जिसे अब यह कॉन्ट्रैक्ट मिला है उसका नाम CSS है। चर्चा यह भी थी कि इस कंपनी के लोग एक्स सर्विसमैन होंगे यानि कि रिटायर्ड आर्मी के जवान। हमने जब अपने स्तर से यह जानने की कोशिश की, तब नए गार्ड्स ने बताया कि वे रिटायर्ड आर्मी के ही जवान हैं।

इस कंपनी को दिए गए टेंडर पर भी यहां के छात्र संघ एवं स्टूडेंट्स सवाल उठा रहे हैं और यह भी आरोप लगा रहे हैं कि ये चीज़ें लागू कर जेएनयू को बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है।

स्टूडेंट्स भी बेबस नज़र आ रहे हैं

नाम ना छापने की शर्त पर कई G4S गार्ड्स ने हमें जाते-जाते यह बताया था कि अब तक उन्हें किसी दूसरी जगह नौकरी पर लगाने की कोई बात कंपनी से नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि 25-30 लोगों को कहीं मॉल में शिफ्ट कर दिया गया है लेकिन बाकियों का होगा भी या नहीं, इसकी कोई जानकारी उन्हें अब तक नहीं दी गई है।

फोटो साभार- ऋषिकेश शर्मा

उन्हें इस बात की उम्मीद तो है कि शायद कंपनी उनके लिए कुछ करेगी लेकिन इसकी कोई सूचना उन्हें अब तक नहीं मिली है। गार्ड्स ने अपनी निराशा व्यक्त करते हुए बताया कि अगर एक महीना और होता तो उन्हें दिवाली का बोनस भी मिलता लेकिन यहां से जाने के बाद वे बेरोज़गार हो जाएंगे।

कई स्टूडेंट्स ने अपने अनुभव साझा किए

जेएनयू में समाजशास्त्र से MA की पढ़ाई कर रहीं मान्या दीक्षित कहती हैं, “हमारे प्रधानमंत्री अपने ट्विटर अकाउंट पर ‘मैं भी चौकीदार ‘लिखते हैं और जब यहां ऐसे मुद्दे आते हैं, तब उनके लिए एक शब्द तक नहीं लिखा जाता।”

मान्या ने बताया कि जब उनकी बातचीत उनके हॉस्टल में तैनात रहीं महिला गार्ड्स से हुई, तब उन्होंने बताया कि अब तक दूसरे जगह उनके शिफ्ट होने की कोई खबर नहीं है और यहां से जाने के बाद वे बेरोज़गार ही हो जाएंगी।

मान्या दीक्षित।

आपको बता दें कि टेंडर पर भी सवालिया निशान उठने शुरू हो गए हैं क्योंकि मान्या ने जब महिला गार्ड्स से बात की, तब उन्होंने बताया कि जब वे आई थीं, तब उनका इंटरव्यू लिया गया था और एक पूरी प्रक्रिया के तहत उनका चयन हुआ था लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। मान्या आगे कहती हैं कि वह समाजशास्त्र में समाज में घट रही चीज़ों के बारे में पढ़ती हैं और यहां सब जानकर भी बेबस महसूस कर रही हैं कि वह उनके लिए कुछ नहीं कर पा रही हैं।

पुराने गार्ड्स से स्टूडेंट्स का काफी लगाव था

जेएनयू के ही एक और स्टूडेंट शशि भूषण पांडे कहते हैं कि G4S के गार्ड्स से उनके अलग ही संबंध थे। पुराने लोग यहां के कल्चर और स्टूडेंट्स की परेशानियों को समझते थे। अब गार्ड्स की संख्या कम कर यूनिवर्सिटी को मिलिट्री कैंटोनमेंट बनाया जा रहा है, जिसका असर यहां की शिक्षा पर पड़ सकता है।

शशि कहते हैं, “अब फैकल्टी के रीडिंग रूम्स यह कहकर नहीं खोले जाएंगे कि हमारे पास इतने गार्ड्स नहीं हैं। जिन लोगों को पैसे की ज़रूरत थी, उन्हें नौकरी से निकालकर पेंशन और ज़्यादा सुविधाएं पा रहे रिटायर्ड आर्मी मैन को लाकर यह साबित किया जा रहा है कि यहां के स्टूडेंट देशद्रोही हैं, जो वे अक्सर कहते रहते हैं। JNU देशभर में जिस पहचान के लिए मशहूर है और यहां की जो रेजिस्टेंस है, उसे कन्ट्रोल करके यहां के सामान्य जीवन से लेकर शिक्षा तक को प्रभावित करने की कोशिश जारी है।”

छात्र संघ चुनाव में उठा था यह मुद्दा, चुनाव खत्म होते ही हुआ खत्म

जेएनयू छात्र संघ चुनाव में G4S गार्ड्स का मुद्दा सभी छात्र संगठनों ने जमकर उठाया था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अध्यक्ष पद के उम्मीदवार रहे मनीष जांगिड़ ने कई बार कहा था कि अगर वह यूनियन में चुनकर आते हैं तो उनके लिए लड़ाई लड़ेंगे। अब जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि प्रशासन से उनकी इस मामले में बातचीत चल रही है। साथ ही उन्होंने पूरा आरोप छात्र संघ पर लगाया कि स्टूडेंट्स रिप्रेजेंटेटिव्स ने G4S गार्ड्स के मुद्दे को कभी अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा और यही कारण है कि आज वे  इस कैंपस में नहीं हैं।

फोटो साभार- ऋषिकेश शर्मा

वामपंथी संगठनों और बापसा राजद ने भी इसे अपने एजेंडे में शामिल तो किया था लेकिन एक मंच पर आकर उनका कोई ऐसा प्रतिरोध नहीं दिखा, जो जेएनयू के भीतर आमतौर पर देखा जाता है। प्रतिरोध की आवाज़ें तो उठी लेकिन वे इतने मज़बूत नहीं रहे कि प्रशासन को चीज़ें लागू करने में थोड़ी भी रूकावटें आई हो।

पूर्व छात्र संघ ने डाल रखा है आरटीआई, जानकारी आने के बाद लड़ी जाएगी आगे की लड़ाई

नई कंपनी को बिना किसी पारदर्शिता के टेंडर मिलना सवाल तो खड़ा करता है लेकिन कई सवालों के जवाब अभी भी स्टूडेंट्स के पास नहीं हैं। जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष सारिका चौधरी कहती हैं कि G4S गार्ड्स के यहां होने पर मज़दूर और स्टूडेंट वाली एकता दिखती थी, जो कुलपति को रास नहीं आ रहा था।

सारिका आगे कहती हैं, “G4S गार्ड्स ने कभी भी प्रशासन के दबाव में आकर काम नहीं किया इसलिए बिना कोई अग्रिम नोटिस के उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया। सारिका ने आगे कहा कि जिस एक्स सर्विसमैन को उन्होंने कैंपस के अंदर लाया है, आज भी वन पेंशन की उनकी मांग को सरकार ने लटकाकर रखा है।”

सिक्योरिटी गार्ड्स की तस्वीर। फोटो साभार- ऋषिकेश शर्मा

सारिका का कहना है कि यह सरकार बस एंटी स्टूडेंट ही नहीं, एंटी वर्कर भी है। इसलिए जिस मंशा से इन चीज़ों को लागू किया जा रहा है , वे कभी सफल नहीं हो पाएंगे। सारिका ने यह भी बताया कि इस पूरी प्रक्रिया में एक बड़ी धांधली हुई है, जिसको लेकर पुराने छात्र संघ ने एक आरटीआई लगाया है और जानकारी आने के बाद नया छात्र संघ और जेएनयू के स्टूडेंट्स उस पर आगे अपना एक्शन लेंगे।

जेएनयू छात्र संघ उपाध्यक्ष साकेत मून ने कहा कि सरकारी संस्था में टेंडर मिलने की एक प्रक्रिया होती है, जो पूरी तरह से पारदर्शी होती है लेकिन यहां टेंडर सार्वजनिक रूप से निकाला ही नहीं गया और अंदर ही अंदर किसी एक पार्टी को दे दी गई, जो अपने आप में एक बड़ा स्कैम है।

उन्होंने आरोप लगाया कि नए टेंडर में पैसे ज़्यादा दिए जा रहे हैं और गार्ड्स की संख्या पहले के मुकाबले बहुत कम है। नया और इतना महंगा टेंडर लेने से पहले इस बारे में थोड़ा भी नहीं सोचा गया कि 450 लोग, जिनके पास और कोई विकल्प नहीं है उनका क्या होगा।

साकेत से जब पूछा गया कि अब जा छात्र संघ अस्तित्व में आ चुका है, तब आगे इस पर वे क्या कदम उठाएंगे, साकेत कहते हैं कि उनकी पहली कोशिश यह होगी कि इस टेंडर से जुड़ी हर एक सटीक जानकारी देश के लोगों के सामने लाना है। कहीं ज़्यादा पैसे देकर कम गार्ड्स लाने की बात अगर सही पाई गई और पता चला कि इस पूरी प्रक्रिया में एक बड़ा घोटाला हुआ है, तो इसकी लड़ाई छात्र संघ और जेएनयू के स्टूडेंट्स हर मोर्चे पर हर तरीके से लड़ेंगे।

नई कंपनी के आते ही जारी हुआ नया सर्कुलर

नई कंपनी CSS के आते ही सिक्योरिटी डिपार्टमेंट ने जेएनयू के स्टूडेंट्स के लिए नया सर्कुलर जारी कर दिया है। चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर के इस सर्कुलर में साफतौर पर लिखा गया कि जब कभी भी गार्ड्स स्टूडेंट्स और उनके वाहनों की जांच करना चाहें तो स्टूडेंट्स इसमें उनका सहयोग करें।

स्टूडेंट्स को कैंपस में हमेशा आइडेंटिटी कार्ड साथ रखने का भी निर्देश दिया गया है। सर्कुलर के आते ही छात्र संघ ने इसका विरोध किया है। छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि कैंपस को सुरक्षित बनाने के नाम पर इसे जेल में बदलने की कोशिश की जा रही है।

इस सर्कुलर की निंदा करते हुए छात्र संघ की तरफ कहा गया है कि हम चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर को चेतावनी देते हैं कि स्टूडेंट्स की हरकत पर निगरानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने स्टूडेंट्स से यह भी अपील की है कि अगर कोई भी स्टूडेंट इस तरह की दिक्कतों का सामना करता है, तो वह छात्र संघ पदाधिकारियों से इसकी शिकायत कर सकता है।

नई सिक्योरिटी कंपनी, एक्स सर्विसमैन और ऊपर से जारी किया गया नया सर्कुलर कैंपस के अंदर स्टूडेंट्स और गार्ड्स दोनों के लिए चुनौतियां पेश कर सकता है। फिलहाल नज़र उस आरटीआई पर रहेगी, जिससे परत दर परत कई चीज़ें खुलकर सामने आएंगी फिर स्टूडेंट्स का प्रतिरोध विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए चुनौती बन सकती है।

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