सन् 2013 में केदारनाथ में आपदा आई थी, जिसका कारण बताते हुए कई लोगों ने बहुत सारी बातें कहीं। दिलचस्प बात यह है कि इन कारणों में अतिक्रमण, रिवर बेड पर निर्माण कार्य, यहां तक कि धार्मिक कारण भी शामिल थे।
दुख की बात यह है कि आज भी उस आपदा के ठोस कारण पर बात नहीं हो पाती है और वह ठोस कारण है जलवायु परिर्तन। उत्तराखंड की एक वासी होने के नाते बता दूं कि उत्तराखंड में आपदा सिर्फ एक बार नहीं आई है। कहने का मतलब है कि यह राज्य प्राकृतिक आपदाओं का राज्य रहा है।
हर बरसात के मौसम में या यूं कहें कि बरसात से पहले ही वहां पहाड़ के खिसकने और बादल फटने के मामले दिखते रहते हैं लेकिन फिर भी ऑल वेदर रोड के नाम पर पेड़ और पहाड़ काटे जा रहे हैं।
पहले तो मैंने भी कभी जलवायु परिवर्तन को कभी इतनी गंभीरता से नहीं लिया था लेकिन केदारनाथ आपदा के बाद से मेरी एक बात समझ में आ गई कि जलवायु के बारे में नहीं सोचेंगे तो अपनों की ही बलि देंगे। मैंने केदारनाथ आपदा में जिन लोगों को खोया उनकी तो आज तक लाशें भी नहीं मिल पाईं। कुछ लोग अपने थे और कुछ लोग वे थे जिनके मुस्कुराते चेहरे रोज़ देखने को मिलते और ऐसे में वे अपने ना होकर भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा थे।
केदारनाथ से जुड़ा था जीवनयापन
मेरा गाँव गुप्तकाशी से करीब 1 किमी चढ़ाई के बाद पड़ता है। मेरे गाँव के ज़्यादातर लोगों के रोज़गार का ज़रिया केदारनाथ की यात्रा ही है। किसी की गौरीकुंड में, जहां से केदारनाथ की पैदल यात्रा शुरू होती है, वहां लॉज और दुकानें थी, तो किसी की रामबाड़ा (जिसका आपदा में अस्तित्व ही नहीं रहा) और केदारनाथ में। गाँव में जो थोड़े कम संपन्न लोग थे वे खच्चर ले जाने का काम करते थे।
केदारनाथ की यात्रा गर्मियों की छुट्टियों के दौरान चरम सीमा पर होती है। तो गाँव के बच्चे भी यात्रा पर अपने माँ-बाप का हाथ बंटाते हैं। कोई गाँव से सामान ले जाता, तो कोई गाइड बन जाता है लेकिन इन सबसे ऊपर हिमालय के उस छोर में रहने वाले इन बच्चों के लिए शहर से आए लोगों से मिलना रोमांच होता है।
मुझे अच्छे से याद है कि यात्रा के बाद इन बच्चों में अलग तरह का बदलाव होता है। कोई अंग्रेज़ी बोलने लगता है तो कोई बड़े-बड़े फोन और गाड़ियों की बातें करता है।
मिला-जुलाकर ये यात्रा हमारे गाँव वालों के लिए एक अच्छा अनुभव होती थी लेकिन 2013 ने सब बरबाद कर दिया। कई दिनों से लगातार हो रही बारिश ने कई जगह भूस्खलन किए जो कि हमारे पहाड़ों में आम बात है। सरकारी तंत्र कहता है कि रेड अलर्ट जारी हुआ लेकिन समझ नहीं आता यह कैसा अलर्ट था, जिसे हज़ारों की संख्या में आए यात्री सुन नहीं पाए।
आपदा की कहानी
आपदा से रेस्क्यू होकर आया मेरा एक 18 वर्षीय भतीजा जो वहां अपने पिता का पिंड दान करने गया था कहता है,
आपदा से पहले की रात भूकंप के झटके आए थे। बारिश भी लगातार हो रही थी, अंदेशा भी हो गया था कि कुछ गलत होने वाला है। इसलिए मैं और कुछ यात्री मंदिर के अंदर रहे। सुबह बारिश कम हुई तो सब जाने लगे लेकिन तभी ज़ोरदार आवाज़ आई और सेकेंड्स में पानी का सैलाब मंदिर के अंदर आ गया।
उस सुबह को याद करते हुए वह बताता है,
पानी का बहाव इतना तेज़ था कि वह एक साथ कई लोगों को बहाकर ले गया और कई लोग जो मंदिर की दीवार से टकराए वे वहीं ढेर हो गए। यह सब सेकंड भर चला लेकिन सेकेंड्स में ही केदारनाथ की चहल पहल मरघट में बदल गई। विश्वास नहीं हुआ कि यहां हज़ारों लोग थे। सब कुछ शांत था।
रेस्क्यु की बात बताते हुए वह आज भी कांप जाता है और बताता है,
मुझे 10 दिन लगे वापस घर आने में। कई लोग जंगल के रास्ते खुद से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि मैं खुद पहाड़ से हूं तो जानता था कि वह रास्ता भी मौत की तरफ ले जाएगा। ऐसा हुआ भी, खबरें आई कि जंगल से गए लोगों को रेस्क्यू नहीं किया जा सका।
वह आपदा की उस सुबह को अपनी ज़िंदगी की सबसे खौफनाक सुबह कहता है। उसने बताया,
जब आपदा आकर चली गई तो हम जितने भी लोग बचे थे सब भीग गए थे। कुछ लोग ठंड से मरे। फिर हेलीकॉप्टर आया जिसने आसमान से बिस्किट फेंके। उस वक्त उसे खाकर मैं बहुत रोया।
यह तो सिर्फ मेरे भतीजे की बात है जो इस आपदा से बचा लेकिन कई ऐसे हैं जिनकी आज तक लाशें नहीं मिली। वह बात अलग है कि आज तक केदारनाथ से नर कंकाल मिल रहे हैं। खच्चर ले जाते मेरे रिश्तेदार और उनके बच्चों को आपदा ने नहीं हम सब ने मार डाला। हम पढ़े-लिखे लोग जो जलवायु परिवर्तन को भाषण का टॉपिक समझते हैं, हमारी इस नासमझी ने किया है यह।
हर आपदा जलवायु परिवर्तन की वजह से होती है
एक गाँव है जहां उस आपदा ने सारी औरतों को विधवा बना दिया। गाँव के ज़्यादातर पुरुष उस आपदा की भेंट चढ़ गएं। कई लोग हैं जो उस आपदा के बाद फिर कभी यात्रा पर नहीं जाना चाहते। कई लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ा। महामारी जो फैली उस पर किसी ने सुध लेने तक की नहीं सोची।
करीब चार साल पहले एक खबर पढ़ी थी कि राजस्थान की एक महिला जो केदारनाथ आपदा के दौरान लापता थी वह करीब 100 किमी दूर उत्तरकाशी नाम के शहर में मिली। हालांकि जिन हालातों और हालत में यह महिला मिली वह बहुत दयनीय थी। उसका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ चुका था लेकिन आखिरकार वह अपने परिवार के पास है।
केदारनाथ आपदा के लिए कई लोग कई कारकों को ज़िम्मेदार मानते हैं लेकिन सत्य यह है कि यह आपदा और हर आपदा सिर्फ और सिर्फ जलवायु परिवर्तन की वजह से होती है।
केदारनाथ आपदा के दौरान लगातार बारिश होती रही। उस इलाके से ताल्लुक रखने के कारण मैं यह बात कह सकती हूं कि उस तरह की बारिश होना आम नहीं था। उस इलाके में बर्फबारी होती थी लेकिन यह जलवायु परिवर्तन ही है, जिसने सारी संरचना बदल दी।
हमें यह भी समझना होगा कि पहाड़ों की यात्रा करते हुए प्लास्टिक का ना के बराबर उपयोग करें। शहरों में तो हमने कचरे के पहाड़ बना ही दिए हैं लेकिन अब प्राकृतिक पहाड़ों को बचा लें। इस बात को हम कब समझेंगे कि अगर यही हाल रहा तो हिमालय को पिघलने में देर नहीं लगेगी और जो आपदा सिर्फ केदारनाथ में देखने को मिली वह हम पूरे देश में देखेंगे।
जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होना होगा। चाहे सरकार हो या आम इंसान हर किसी को पृथ्वी के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी। मैं चाहती हूं कि हमारे पास कहानियां हो, यात्राएं हो, अनुभव हो लेकिन वह दुख, मृत्यु और अपनों की शोक की ना हो जिसे हम जलवायु को नज़रअंदाज़ करके खुद बुला रहे हैं।