1 सितंबर से मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019, लागू हो गया है, जिसमें ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों को भारी जुर्माना भुगतना पड़ेगा। इस ऐक्ट को बीते महीने ही संसद से मंजू़री मिली है। इसका उद्देश्य लोगों में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने पर भय भरना है, क्योंकि अभी तक जुर्माने की राशि बहुत कम होती थी, जिसकी वजह से लोग 100-50 रुपये थमाकर ट्रैफिक के नियमों को तोड़ना अपनी शान समझते थे।
लागू हुए इन नए नियमों के खिलाफ सोशल मीडिया पर ढेरों मीम्स बने हैं। चुटकुलों एवं मज़ाक के साथ-साथ यहां तक भी कहा गया कि नए नियमों में फांसी की सज़ा छोड़कर सब कुछ शामिल है।
जब कुछ दिन पहले मैंने नए मोटर व्हीकल ऐक्ट 2019 के बारे में सुना, तब मुझे लगा कि आम भारतीय इसका तहे दिल से स्वागत करेंगे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। यह मुद्दा मज़ाक का नहीं, बल्कि बेहद गंभीरता का है जो यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि आखिर ट्रैफिक पुलिस को यह कानून क्यों लाने पड़े?
हम हर रोज़ ट्रैफिक से बचने की दुआ करते हैं
आज अधिकांश लोग सोशल मीडिया पर उन्हीं खबरों को पढ़ते हैं, जो पढ़ाई जाती हैं। मसलन, हिन्दू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान और इसके अलावा दर्द भरी शायरी जैसे पोस्ट्स भी पढ़ने को मिलती हैं, जिस कारण हमारे लिए ये खबरें कोई खास मायने नहीं रखती और ना ही हम तक पहुंच पाती हैं।
आप अगर दिल्ली से बाहर रहते हैं और किसी भी सीमा क्षेत्र से आप रोज़ क्रॉस करके अपनी ड्यूटी पर पहुंचते हैं, तो दिल पर हाथ रखकर कितने लोग सच बता सकते हैं कि घर से निकलते ही पहला ख्याल यह ना आता हो कि हे भगवान, बस कहीं ट्रैफिक जाम ना मिले मगर कभी सोचा है, इस ट्रैफिक जाम के पीछे की वजह क्या है? वाहन ज़्यादा हो गए या सड़कें पतली रह गईं?
यदि आप ऐसा सोचते हैं, तो आप अभी कुछ दिन और पबजी खेल सकते हैं क्योंकि अधिकांश जाम ट्रैफिक नियम तोड़कर पहले निकलने के चक्कर और आपाधापी में लगते हैं।
दूसरा, आप रेड लाइट पर खड़े होकर देखिए कि कितने लोग ऐसे हैं, जो ज़ेब्रा क्रॉसिंग से पीछे खड़े होते हैं? कई बार मैंने देखा है कि किसी बाइक वाले को ज़रा-सा रास्ता दिख जाए, तो वह सारे नियम ताक पर रखकर सबसे आगे निकलकर खड़े होते हैं।
जर्मनी के मेरे दोस्त को नहीं मिला लाइसेंस
मेरा एक मित्र है, जो जर्मनी में ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए तीन बार परिवहन विभाग में गया लेकिन हर बार फेल हुआ, जबकि वह गाड़ी अच्छे से चलाता है। आखिरी चांस में उसने वहां के परिवहन अधिकारी से पूछा किआखिर उसकी गलती क्या रह जाती है जो उसे फैल कर दिया जाता है? तो उसे बताया गया, “आप हर बार जे़ब्रा क्रॉसिंग पर बिना ब्रेक लिए और दोनों तरफ देखे सीधे स्पीड से निकल जाते हैं।”
उसे उस दिन जे़ब्रा क्रॉसिंग की एहमियत का पता चला। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है, क्योंकि अपने यहां वाहन चालकों को जे़ब्रा क्रॉसिंग से कोई मतलब है ही नहीं। शायद यह सोचकर निकल जाते हैं कि सरकार के पास सफेदी ज़्यादा थी तो सड़क पोत दी।
लोग स्वयं करते हैं लापरवाही
इसके अलावा भी दिल्ली से लगती सीमाओं पर ऑटो में पीछे तीन की सीट पर चार और आगे ड्राइवर सीट पर भी दो-तीन लोग बैठा लेते हैं।छोटे-छोटे नाबालिग बच्चे बाइक लिए आसानी से दिख जाते हैं। बाइक पर तीन बैठाना आम बात है और हेलमेट तो कोई ही विरले ऐसा है, जो किसी अच्छी कंपनी का खरीदता हो।
बस 100-200 रुपये देकर हेलमेट लिया और चल दिए, क्योंकि हम एक धारणा में जीते हैं कि यदि किसी कारण पुलिस ने हमें रोका भी तो 100-50 रुपये देकर निकल जाएंगे। हालांकि इसमें काफी हद तक सत्यता भी है।
सड़क पर आप देखेंगे ज़्यादातर लोग यही कहेंगे कि चालान कटने के डर से हेलमेट लगाया है। सीट बेल्ट से लेकर हमारे जीवन उपयोगी तमाम नियमों का पालन हम भारतीय सिर्फ और सिर्फ चालान कटने के डर से करते हैं।
क्या कहते हैं आंकड़े
- यदि हम सड़क दुर्घटना के आंकड़ों पर नज़र डालें, तो देश में हर मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है और हर चार मिनट में एक मौत हो जाती है।
- सालाना करीब 1.35 लाख लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं।
- सड़क दुर्घटनाओं का यह आंकड़ा दुनिया में सबसे बड़ा है और अधिकांश दुर्घटना लापरवाही में होती हैं।
इसलिए सभी गलतियां यातायात पुलिस की मत निकालिए और अपनी भी ज़िम्मेदारी समझिए। ज़िम्मेदार नागरिक बनिए वरना कोसते रहिए पुलिस को, बनवाते रहिए नए-नए नियम-कानून और भुगतते रहिए चालान। देश की पुलिस आपकी सेवा में तत्पर रहेगी। चाहे चालान के पैसे दीजिए या अपनी ज़िम्मेदारी समझिए। आपकी सोशल मीडिया वाली मज़ाक से पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।