आपको भी बचपन से घरवाले और रिश्तेदार सरकारी अफसर बनने की सलाह देते होंगे। धीरे-धीरे पता चलता है कि भारत में हर सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करने वाले तो बहुत हैं मगर पदों की संख्या बेहद कम है।
घर की ज़िम्मेदारियों के बोझ तले दबा हुआ एक आम इंसान ऐसी स्थिति में प्राइवेट नौकरी की तरफ ही भागता है। यह आम इंसान वह है जो अभी-अभी कॉलेज की चारदीवारी से बाहर निकलकर मन में कुछ कर गुज़रने की उम्मीद के साथ प्राइवेट कंपनियों में साक्षात्कार के लिए प्रस्तुत होता है।
वहां जाकर उसे पता चलता है कि उसके ही जैसे ना जाने कितने लोग हैं, जो यहां भी लाइन में लगे हुए हैं। अगर यह कहा जाए कि सरकारी नौकरी की तरह ही अच्छी प्राइवेट नौकरी के लिए भी उतनी ही मारामारी है, तो यह गलत नहीं होगा।
अपनी काबिलियत के दम पर जब उसे नौकरी मिल जाती है और वह हाथ में ऑफर लेटर लेकर घर की ओर जाता है, तो उसे ऐसी फीलिंग आती है जैसे कि त्यौहारों के मौसम में ट्रेन में जनरल डब्बे में सीट मिल गई हो।
ऑफिस में जाने के बाद पहले कुछ दिन तो बस उत्साह और उमंग में ही निकल जाते हैं फिर धीरे-धीरे कहानी नया मोड़ लेना शुरू कर देती है। उसे दिए गए टारगेट को पूरा करने के लिए 9 घंटे की जगह 13 घंटे रुकना पड़ता है और कई बार साप्ताहिक छुट्टी के दिन भी ऑफिस आकर काम करना पड़ता है।
कई ऑफिसों में ऐसी स्थिति में ओवरटाइम पेमेंट की सुविधा रहती है मगर शायद मैनेजमेंट यह भूल जाता है कि ओवरटाइम स्वैच्छिक होता है, ना कि ज़बरदस्ती।
मेरे कुछ मित्र जो एयरपोर्ट में एक बड़े ब्रांड के रिटेल स्टोर में कार्य करते हैं, उनसे मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि उन्हें 12.5 घंटे की शिफ्ट खड़े होकर करनी पड़ती है। उन्हें मात्र आधे घंटे का ब्रेक दिया जाता है। यहां तक कि वॉशरूम जाने के लिए भी एक ग्रुप है, जिसमें स्टोर के सीनियर जुड़े हुए हैं, उसमें मैसेज डालना पड़ता है।
ताज्ज़ुब की बात तो यह है कि स्टोर में काम करने वाली लड़कियों को उनकी माहवारी के दौरान भी उसी ग्रुप में ना आने का कारण डालना होता है। कुल मिलाकर श्रम मंत्रालय द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं।
यहां तक कि कई कंपनियों में तो कर्मचारियों को उनके मूल अधिकारों के बारे में पता भी नहीं होता है, जैसे कि एक सप्ताह में अधिकतम कितने घंटे सरकार द्वारा निर्धारित किए गए हैं, ओवरटाइम स्वैच्छिक होता है ना कि आवश्यक आदि।
यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अभी तक मुझे किसी के द्वारा कोई प्रयास नहीं दिखा है। लेबर कानून तो बहुत हैं मगर उनका असल फायदा कर्मचारी तब उठा पाएंगे, जब उनके बीच उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाई जाएगी। इन कानूनों का पालन ना करने वाली कंपनियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए।