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दिल्ली के दो सरकारी स्कूलों के ‘ज़ीरो वेस्ट स्कूल’ बनने की कहानी

फोटो साभार- मनीष सिसोदिया फेसबुक

फोटो साभार- मनीष सिसोदिया फेसबुक

दिल्ली के सरकारी स्कूल, शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में एक के बाद एक शानदार उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। बच्चों के व्यवहार में थोड़े-बहुत बदलाव कर शिक्षा व्यवस्था को प्राइवेट स्कूलों से बेहतर बनाया जा रहा है।

शाहदरा और न्यू सीमापूरी के एमसीडी के दो प्राइमरी स्कूल मिसाल बन गए हैं। ये पूरी तरह से ‘ज़ीरो वेस्ट स्कूल’ हैं। यहां पर बच्चों की कमेटी सभी महत्वपूर्ण निर्णय लेती है। निम्न मध्य व मज़दूर वर्ग से आने वाले बच्चे साफ-सफाई से लेकर पढ़ाई तक में अव्वल हैं। स्कूल में हर प्रकार की बेकार चीज़ों का उपयोग किया जाता है।

शहरी गरीबों के बीच काम करने वाली संस्था ‘सेंटर फाॅर अर्बन एंड रीजनल एक्सिलेंसी’ (क्योर) ने उपेक्षित सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए कुछ अनोखे प्रयोग किए, जो काफी सराहनीय हैं।

क्योर ने सरकार के साथ मिलकर सरकारी स्कूलों में बच्चों में गुणवत्तापरक शिक्षा के साथ ही उनके अंदर अच्छी आदतों का विकास और बच्चों के अभिभावकों को स्कूल की गतिविधियों से शामिल कर उनके व्यक्तित्व के विकास पर ज़ोर दिया। इसके लिए उन्होंने दिल्ली के दो बदत्तर सरकारी स्कूलों को चुना।

फोटो साभार- प्रदीप श्रीवास्तव

साउथ शाहदरा के दिलशाद गार्डन के डी ब्लाॅक और नॉर्थ शाहदरा के न्यू सीमापूरी इलाके के बी ब्लाॅक में स्थित एमसीडी के प्राइमरी स्कूल में बच्चों व उनके अभिभावकों के व्यवहार में बदलाव के लिए गैर-शैक्षणिक गतिविधियों की एक श्रंखला तैयार की।

इन दोनों स्कूलों के अभिभावक सामान्यत: निम्न मध्य या मज़दूर वर्ग से आते हैं। बेहतर परिवेश के अभाव में बच्चों में स्वच्छता का अभाव था। स्कूल में इधर-उधर कूड़ा फेंकते और पूरे स्कूल को गंदा कर देते थे। इस मामले में अभिभावक भी ज़्यादा कुछ नहीं करते थे। इससे स्कूल का पूरा माहौल ही अराजक और पठन-पाठन से दूर होने लगा था। बच्चे स्कूल में कम आते और अपना अधिकतर समय गलियों में खेलने-कूदने में बिताते।

स्वच्छता अभियान की शुरुआत

क्योर ने बच्चों की आदतों एवं व्यवहार में बदलाव के लिए साफ-सफाई अभियान शुरू की। समझदार और तेज़-तर्रार बच्चों की कमेटी बनाई गई, जिसने स्कूल में पैदा होने वाले कूड़े व खराब सामानों की ऑडिट शुरू की। स्कूल में पॉलिथीन के प्रयोग पर रोक लगाने के साथ ही परिसर के हर कोने में डस्टबिन रखने की जगह तय की गई।

फोटो साभार- Twitter

सभी बच्चों को जैविक व गैर-जैविक कूड़े की जानकारी दी गई। उन्हें अलग करने की विधि, ज़रूरत और उपयोगिता की जानकारी दी गई। बच्चों को सामान्य और संतुलित भोजन के बारे में विस्तार से बताया गया। स्कूल के वातावरण को पूरी तरह से बदलने के लिए गैर-शैक्षणिक गतिविधियों का आयोजन किया गया, जिसमें प्रश्नोत्तरी, खेल, सेमिनार, नुक्कड़-नाटक और फिल्मों का प्रदर्शन आदि शामिल रहा।

गतिविधियों के ज़रिये विद्यालय में पर्याप्त हुई पानी की उपलब्धता

नई गतिविधि के बाद से स्कूल में पानी की उपलब्धता पर्याप्त हो गई। अब बच्चे पानी को बर्बाद नहीं करते हैं। स्कूल में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग और कंपोस्ट पिट है। कंपोस्ट पिट में कूड़ा डालकर खाद तैयार किया जाता है, जिसे पौधों में डाल दिया जाता है। ‘डेवाट सिस्टम’ से हर प्रकार के पानी को बिना किसी खर्च के साफ किया जाता है।

साफ पानी को पौधों में डाला जाता है। बिना ब्रश किए और ना नहाकर स्कूल आने वाले बच्चों ने स्वच्छता के महत्व को समझा, वे अब प्रतिदिन नहाकर स्कूल आते हैं। बच्चों में खाने के पहले हाथ साफ करने की आदत का विकास हुआ। अब वे हैंडवॉश यूज़ करना ज़रूरी समझते हैं। उनके स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ है।

बच्चों के पेरेन्ट्स को भी रोज़गार से जोड़ा गया

इस प्रक्रिया में क्योर की टीम ने बच्चों के अभिभावकों के साथ भी मुलाकात की। उन्हें भी स्कूल की गतिविधियों की जानकारी दी गई। साथ ही गृहणियों एवं गरीब अभिभावकों को झाड़ू बनाना, साबुन बनाना, फिनायल, मोमबत्ती व अगरबत्ती बनाने जैसे घरेलू और छोटे मोटे स्व-रोजगार के साधनों को सिखाया।

फोटो साभार- मनीष सिसोदिया फेसबुक

इससे अभिभावकों का स्कूल के प्रति लगाव व सम्मान बढ़ता गया। जबकि, पूर्व में यही अभिभावक छोटी-मोटी बातों पर भी शिक्षकों के साथ मारपीट पर उतारू हो जाते थे। स्कूल में वर्षो से ठप्प टीचर पैरेंट मीटिंग की शुरुआत भी हुई, जहां बच्चों की प्रगति व स्कूल के माहौल के बारे में उन्हें विस्तार से बताया जाने लगा।

क्योर से जुड़े सिद्धार्थ पांडेय कहते हैं कि दोनों स्कूल ज़ीरो वेस्ट स्कूल हैं। इन स्कूलों में कुछ भी फेंका नहीं जाता है। बारिश के पानी तक को रिचार्ज करते हैं, जिससे स्कूल को साल भर तक पानी मिलता रहे। इसके कारण बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ ही उनका अटेंडेंस भी काफी बढ़ा। वे अब खेल-कूद में ज़्यादा शामिल हो रहे हैं। बच्चों का ड्रॉप आउट रेट भी कम हुआ है।

नोट: YKA यूज़र प्रदीप श्रीवास्तव, क्योर (सेंटर फाॅर अर्बन एंड रीजनल एक्सिलेंसी) फेलो हैं।

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