Site icon Youth Ki Awaaz

खूबसूरत दिखने वाले पहाड़ों को पलायन अकेला बना रहा है

खूबसूरत दिखने वाले पहाड़ों को पलायन कहीं-ना-कहीं अकेला बनाता है। बेहतर जीवन और अच्छी शिक्षा के लिए पहाड़ों से युवा हमेशा शहर की तरफ जाते रहे हैं। पहाड़ों की बहुत प्रचलित कहावत है, “पहाड़ की जवानी और पहाड़ों का पानी कभी पहाड़ के काम नहीं आता”, जो कि कहीं-ना-कहीं हकीकत भी है।

 पहाड़ों से पलायन करता युवा अपनी सभ्यता और बोली से भी करता है पलायन

खंडहर में तब्दील हो चुका उत्तराखंड के गॉंव का एक घर। फोटो सोर्स- प्रियंका गोस्वामी

जब पहाड़ों से गॉंव का युवा शहर की तरफ पलायन कर जाता है, तो अपनी सभ्यता, बोली-भाषा, लोक-परम्परा और देवों के आशीर्वाद से भी पलायन कर जाता है। देव भूमि को छोड़ते ही वह इन सभी चीज़ों से पलायन कर जाता है।

नतीजा यह होता है कि पहाड़ कहीं-ना-कहीं सुने हो जाते हैं। गॉंव के गॉंव, कस्बे के कस्बे खाली हो जाते हैं और पहाड़ों की सभ्यता अकेली रह जाती है और अकेले रह जाते हैं कुछ बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद, जो परदेश से लौटकर वापस घर आने का इंतज़ार करते हैं, अपने (स्थानीय भाषा में बेटा-ब्वारी) बहु और बेटे का।

आज के समय में पलायन के चलते उत्तराखंड से कई लोक-गीत विलुप्त हो चुके हैं, जिनको किसी ज़माने में स्थानीय लोगों द्वारा गाया जाता था, फागुन, बसंत के महीने में, शादी-ब्याह में और स्थानीय लोक-परम्पराओ में। परन्तु सुविधा और बहेतर भविष्य के लिए युवा शहरों में जा बसे और कभी लौटकर पहाड़ों में नहीं आए। जो लोग पहाड़ों में रह रहे हैं, वे भी शहर की तरफ जाने को ही बहेतर कल समझते हैं। अच्छी शिक्षा और एक अच्छे कल के लिए तो सभी को शहर ही भाता है।

आखिर क्या रखा है, इन पहाड़ों में?

उत्तराखंड के गॉंव का एक घर। फोटो सोर्स- प्रियंका गोस्वामी

हर वर्ष इलाज ना मिलने पर प्रसव के दौरान शिशु और माँ दोनों की जान चली जाती है। या फिर समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते हैं। वहीं अगर सबकुछ सही सलामत रहा तो आकास्मिक आपदाएं हमेशा उत्तराखंड और यहां के जन जीवन को प्रभावित करती रही हैं, जिसका नतीजा एक मात्र पलायन ही नज़र आता है। पहाड़ों में इंसान को भी पहाड़ होना पड़ता है, सिर्फ सुन्दरता और आकर्षण मात्र से जीवन की रेखा आगे नहीं बढ़ती है।

Exit mobile version