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चालान बढ़ाने की ज़रूरत नहीं होती अगर पुलिस और जनता अपनी ज़िम्मेदारी निभाती

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस

दिल्ली ट्रैफिक पुलिस

यमुना एक्सप्रेसवे हमेशा चर्चित रहा, कभी हादसों के लिए तो कभी यातायात नियमों का उल्लंघन करते वाहनों के लिए। सम्बन्धित संस्थानों ने तमाम उपाय किए, CCTV कैमरे से लेकर स्पीड चेक मीटर लगाए, यहां तक की ऑटो चालान भी करते रहे लेकिन कोई भी उपाय कभी सफल होते ना दिखा।

यमुना एक्सप्रेसवे में आज भी 125 के आस-पास की रफ़्तार में वाहन दौड़ते हैं। बड़े- बड़े हाईवे पर बिना इंडिकेटर दिए वाहन लेन चेंज करते हैं। चाहे एक्सप्रेसवे हो या कोई आम सड़क, हर जगह वाहन रैश ड्राइविंग करते हुए दिख जाते हैं।

इन सबके अलावा वाहन चलाते हुए सेल्फी लेना तथा शराब को खुद के ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करते हुए वाहन चलाना, तमाम यातायात नियमों को और तमाम किए गए उपायों को मुंह चिढ़ाते हैं।

आखिर यातायात नियमों की आवश्यकता ही क्या है?

ज़हन में एक सवाल अक्सर कौंधता है। एक शहर, एक सभ्यता में आखिर यातायात नियमों की आवश्यकता ही क्या है? जब हम पहाड़ों में गाड़ी चलाते हैं तो आखिर क्यों अपनी लेन से चिपक कर चलते हैं?

समाजशास्त्र कहता है,

नियम बनते ही तब हैं, जब हम दूसरे के मूलभूत अधिकारों का हनन करते हैं।

सभी यदि ईमानदार और संवेंदनशील हों, तो यकीनन नियमों और कानून की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी।

फोटो साभार- Getty Images

एक व्यक्ति के पास 2  ड्राइविंग लाइसेंस

हमारे यहां जो ड्राइविंग लाइसेंस बनते हैं। उसकी परीक्षा से लेकर दीक्षा तक सब सवालिया रहे हैं। यातायात नियमों की पूरी जानकारी के बिना ही लाइसेन्स मिलता है। लाइसेंस बनाना और बनवाना राज्य सरकार के ज़िम्मे है। इस नाते देश में कम से कम 29 तरीके के DL हो सकते हैं।

एक आदमी का 2-3 जगह से DL हो सकता है और होता है। हालांकि इसके लिए सरकार ने कुछ सख्त कदम उठाएं हैं लेकिन जब तक देश से यह Multiple DL की समस्या सिरे से समाप्त नहीं होती तब तक मुश्किलें बढ़ती रहेंगी।

इसकी हानि यह है कि आप DL को पंच करने का सिस्टम दुरुस्त नहीं रख सकते। DL पंच और ज़ब्त होने के मामले यदा-कदा ही होते हैं। अगर किसी का लाइसेंस ज़ब्त हो भी गया, तो उसके पास वाहन चलाने हेतु नया लाइसेन्स उपलब्ध होता है। हमेशा के लिये गाड़ी ना चला पाने का खौफ जाता रहता है। मतलब ना दण्ड है और ना दण्ड का कोई भय है।

हिन्दुस्तान के इतिहास में यातायात के नियमों का धार्मिकता से पालन करने वाले किसी भी व्यक्ति की कोई प्रशंसा शायद ही कभी की गई हो। दोनों ही सीमाओं में हम कमज़ोर साबित हुए हैं।

क्या है क्लेरिकल डॉक्यूमेंट का महत्व?

जब आप सड़क पर गाड़ी लेकर निकलते हैं, तब क्लेरिकल डॉक्यूमेंट का महत्व आखिर क्या है? सिवाय गाड़ी के स्वामित्व और चोरी इत्यादि की वारदातों को वैलिडेट करने के।

DL कैरी करने का महत्व समझ आता है। पर गाड़ी नम्बर और चैसिस नम्बर गाड़ी की वैधता को वैलिडेट करने का प्रथम तरीका होना चाहिए।

दरअसल, मुद्दा चालान का भी है। यदि मंशा सड़क पर सुरक्षा की है, तब चालान ज़रूरी है लेकिन डॉक्युमेंट पर चालान दूसरी प्राथमिकता पर होने चाहिए। इसके इतर अकसर अखबार में छपने वाले चालान के आंकड़े डॉक्युमेंट के बेस पर होते हैं। आपने खुद देखा होगा कि किसी त्योहार के आस-पास ही ड्रिंक एंड ड्राइव के केस लोकेट होते हैं।

मुझे लगता है कि ओवरस्पीडिंग करते वाहन, बिना इंडिकेटर लेन चेंज करते वाहन, ड्रिंक और ड्राइव वाले वाहन, प्रदूषण फैलाते वाहन, लालबत्ती को लांघते वाहन, रैश ड्राइविंग करते वाहन, सड़क पर किसी अन्य की अपेक्षा ज़्यादा खतरा पैदा करते है।

फोटो साभार- Getty Images

क्या सच में भारत डिजिटल हुआ

भारत डिजिटल हुआ ऐसा कहा और सुना जाता है। पर ऐसा हुआ क्या? वर्ष 2012 के आस-पास मैं ऐसी डिवाइस पर काम करता था जो आपकी कार के OBD पोर्ट से पॉवर लेकर यह बता सकती है कि आदमी कितनी ओवेरस्पीडिंग करता है, मोड़ पर कितनी तेज़ ब्रेक लगाता है और कब ज़िग-जैग ड्राइविंग करता है। वह डिवाइस यह बताता है कि कब आदमी की गाड़ी भिड़ गई और कब उसे मदद चाहिए।

अमेरिका में यह डिवाइस अनिवार्य था। इसी डिवाइस से उपलब्ध डेटा गाड़ी के इन्शुरन्स वैल्यू को डिसाइड करता था। यानी जो बेहतर ड्राइवर है उसे पुरस्कार और जो शरारती ड्राइवर है उस पर दण्ड। भविष्य में शरारती ड्राइवर यदि कोई दुर्घटना करता है तो डेटा के अधार पर दण्ड की सम्भावनाएं भी हैं।

क्या डिजिटल इण्डिया में यह डिवाइस गाड़ी में अनिवार्य नहीं होना चाहिए? इसकी कीमत आज के अधिकतम चालान दर की चौथाई से ज़्यादा नहीं होगी। इस डेटा को कानूनी वैधता नहीं मिलनी चाहिये? क्या पूरे देश में एक ही ड्राइविंग लाइसेन्स नहीं होना चाहिए? जो आधार कार्ड से भी लिंक हो और एक क्लिक मात्र पर आपका रिकॉर्ड दिखा सके।

जैसे किसी छोटे बच्चे को आप पैसे का लालच देकर उत्साहित नहीं कर सकते। पर एक टॉफी या कोई मनपसन्द सामान बच्चे के उत्साह को बढ़ा देता है। उसी तरह आदमी पर भारी अर्थ दण्ड लगाकर भी उसे मोटिवेट नहीं किया जा सकता। हां, प्रशंसा करके उत्साहित करना आसान है।

सरकारी फैसले में दूरदर्शिता का अभाव

चालान की दरें बढ़ा कर सड़क सुरक्षा को बढ़ावा दे पाना दूर की कौड़ी है। हां, रिश्वतखोरी बढ़ने की सम्भावना हमेशा प्रबल है। एक दिन किसी एक गलती जैसे क्लेरिकल डॉक्युमेंट ना कैरी करने पर चालान काटना दूरदर्शिता का परिचय नहीं देता। हाल-फिलहाल के सरकारी फैसले में दूरदर्शिता का अभाव स्पष्ट दिखता है।

चण्डीगढ़ दशकों से यातायात के नियमों के पालन का उदाहरण रहा है। आप वहां पुलिस की मुस्तैद नज़रें और ज़रूरत की सभी जगहों पर उनकी उपलब्धता, इस सफलता की खास वजह है।अधिकतर चालान आपको ट्रैफिक नियमों के चलते मिलेंगे।

यह बात आप कोलकाता से भी सीख सकते हैं, पर सीखना नहीं चाहते। बेहतर है सड़क सुरक्षा बढ़ाने पर ध्यान हो ना कि सरकारी खज़ाना और अचानक निरीक्षण बढ़ाकर वसूली और आंकड़ों पर।

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