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हैदराबाद: संत फ्रांसिस कॉलेज में लड़कियों को लंबी कुर्ती पहनने का फरमान जारी

फोटो साभार- Twitter

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नारी सशक्तिकरण आज भी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है। भला नारी कैसे सशक्त हो जाएगी, जब वह अपने मन मुताबिक वस्त्र ही ना धारण कर सके। पुरुषों को तो बचपन से आज़ादी मिली हुई है कि वे अपने मन मुताबिक कपड़े पहन सकते हैं, सड़कों पर निकल सकते हैं, जमकर अंग प्रदर्शन कर सकते हैं। पुरुष भले ही बनियान पहनकर घूमें लेकिन महिलाओं की ब्रा स्ट्रिप भी नज़र नहीं आनी चाहिए।

यह तुगलकी फरमान नहीं तो और क्या?

हैदराबाद के संत फ्रांसिस कॉलेज के नियम के अनुसार लड़कियों को प्रवेश तभी मिलेगा जब वे घुटने तक की कुर्ती पहनकर आएंगी। इससे बड़ा तुगलकी फरमान क्या हो सकता है? बाकायदा कॉलेज के गेट पर कर्मचारी भी तैनात किए गए हैं, जो कपड़े की लंबाई जांचते हैं। छात्राओं को यह आदेश भी दिया गया है कि वे शार्ट्‌स, स्लीवलेस और इसी तरह के अन्य कपड़े भी ना पहनें।

भले ही बेहतर शिक्षा के अभाव में देश में कर्मचारियों की कमी हो लेकिन लड़कियों के कपड़े देखने के लिए कर्मचारी मौजूद हैं। अभी हाल ही में ग्लोबल रैंकिंग 2020 जारी हुई, जिसमें दुनिया भर के टॉप विश्वविद्यालयों की सूची में 300 स्थान तक भारत का कोई विश्वविद्यालय शामिल नहीं है।

अब शामिल भी कैसे हो? हमें शिक्षा थोड़े ही बेहतर करनी है, हमें तो कॉलेज में लड़कियों के कपड़े नापने हैं। क्या ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी लड़कियों के कपड़े नापकर कॉलेज में प्रवेश मिलता है?

लड़कियों के कपड़े तय करने का हक किसी कॉलेज को नहीं

कपड़ों की लंबाई तय करने वाला कॉलेज प्रशासन कौन होता है? एक कॉलेज का कार्य होता है गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना, ना कि लड़कियों के कपड़े नापना। यह तो हर लड़की का अधिकार है कि उसे स्कर्ट पहनना है या कुर्ती। अगर आप यह तर्क देते हैं कि छोटे कपड़ों की वजह से महिलाओं के साथ शोषण होता है, तो उस नन्ही सी मासूम का क्या कसूर जिसका बलात्कार होता है?

फोटो साभार- ANI Twitter

मन अगर लोमड़ी होगा तब मांस के लोथड़े को देखकर भूख जबरन लग ही जाएगी। मतलब यह है कि अगर दिमाग में गंदगी होगी, तब आप साड़ी पहनी हुई महिला के वस्त्रों को भी आंखों से स्कैन करके निहार लेंगे और उसके बदन का विवरण दे देंगे।

लड़कियां आज भी गुलाम

उस वक्त पुरुष की वासना कहां थी, जब मनुष्य आदि मानव था? क्या उस वक्त भी कोई कुर्ती मिलती थी? उस समय तो जानवरों के खाल और पत्तों से लोग शरीर ढक लिया करते थे लेकिन आज कपड़े आने के बाद शिकायत हो रही है कि यह छोटा कपड़ा है और इसे पहनना सुरक्षित नहीं है। पुरुष वर्ग वासना में इस तरह से लिप्त हो चुका है कि मादा के ब्रेस्ट और योनि को ही पूरी दुनिया समझता है, जबकि दुनिया इससे कहीं बड़ी है।

वैसे तो नारी को हम शुरू से ही दबाते रहे हैं। समाज ने हमेशा अपने मन मुताबिक नारी को ढालने की कोशिश की है, इसलिए तो आज़ादी के इतने सालों बाद भी नारी आज़ाद नहीं है। उसके पैरों को हमने बेड़ियों से बांध रखा है। क्या यह समझना इतना मुश्किल है कि एक महिला क्या पहनेगी, कब घर से बाहर निकलेगी और क्या करेगी? मेरी नज़रों में स्कर्ट पहनने वाली लड़कियां साहसी हैं, जो आज के समाज में अपनी इच्छा शक्ति के अनुसार कपड़े पहनती हैं।

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