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किसानों की आय बढ़ाने और हमें बीमारियों से बचाने का एकमात्र रास्ता है जैविक खेती

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में व्यक्ति के खानपान में बदलाव आया है और पर्यावरण में तब्दीली हो रही है, उसे देखते हुए जैविक खेती ही एकमात्र रास्ता बचता है जो मनुष्य के स्वास्थ्य और ज़िंदगी का ख्याल रख सकती है।

पर्यावरण के नज़रिए से भी जैविक कृषि बहुत ही उपयुक्त है। जैविक कृषि के माध्यम से जो भी जैविक कचरे होते हैं उनका उपयोग कर कंपोस्ट बनाया जाता है। यह कंपोस्ट खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जो कि खेती-बाड़ी के लिए बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होता है।

जैविक कृषि और स्वास्थ

कंपोस्ट के उपयोग के कारण खेतों के जल धारण क्षमता में सुधार होता है और फसलों में किसी भी प्रकार के अलाभदायक रसायन की मात्रा नहीं पाई जाती है।

वहीं जब कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, तो फसलों में नुकसानदायक रसायन पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होता है। उससे विविध प्रकार की बीमारियां होती हैं जिनमें कुछ तात्कालिक और कुछ दूरगामी रूप से होती हैं। जैविक कृषि से इन चीज़ों से छुटकारा मिल जाता है।

जैविक कृषि और कृषि लागत

जैविक कृषि में कृषि लागत कम हो जाती है जिससे किसान कर्ज़दार होने से बच जाते हैं। शुरुआती एक-दो वर्षों में उन खेतों में जैविक कृषि करने से उत्पादन में थोड़ी बहुत कमी आने की संभावना बनी रहती है लेकिन लगातार जैविक कृषि करने से एक-दो वर्षों बाद इस तरह की कोई भी संभावना समाप्त हो जाती है।

एक भूगोलविद शिक्षक होने के नाते मेरा मानना है कि आने वाले दिनों में जिस तरह से जनसंख्या मे तेज़ी से बढ़ोतरी हो रही है और जोत का आकार शुन्य की तरफ आ रहा है, उससे निपटने के लिए कृषि में विविधता लाना अति आवश्यक है।

बदलते पर्यावरण का स्वरूप और मानव के रहन-सहन से आए बदलाव के कारण जिस प्रकार मानव युवावस्था में ही विभिन्न प्रकार के बीमारियों से घिर गया है। उसको देखते हुए हमें नए विकल्प तलाशने होंगे। इसका एक विकल्प जैविक कृषि हो सकता है।

जैविक ढंग से की गई कृषि से जो उपज मिलती है उसकी कीमत रसायनिक तरीके से उपजाए गए कृषि उत्पाद की कीमत से अधिक होती है। इससे किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी तथा उन्हें कम मेहनत भी करनी पड़ेगी। इसमें सबसे अहम बात यह है कि किसान को कर्ज़ के मकड़जाल में नहीं फंसना पड़ेगा।

जैविक कृषि किसानों को हर तरीके से आत्मनिर्भर बनाती है और उन्हें चैन पूर्वक जीने का मौका उपलब्ध कराता है। उन्हें कृषि के मौसम में रसायनिक उर्वरकों कीटनाशकों के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ता। वे खुद के बनाए जैव उर्वरक और जैविक कीटनाशक का प्रयोग कर अपने खेतों से अच्छी फसल प्राप्त करने में सफल होते हैं।  इसके साथ- साथ हमें स्वास्थ्यवर्धक फल सब्जी अनाज और दूध प्राप्त होता है।

पारंपरिक कृषि के तरीकों को बदलना होगा

किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए पारंपरिक कृषि के तरीकों को बदलना होगा। उन्हें अपने उपभोग भर अनाज का उत्पादन करना चाहिए तथा शेष खेतों में नगदी फसल लगानी चाहिए। नगदी फसल के तहत बागवानी, सुगंधित पौधों और फूलों की खेती, आयुर्वेदिक औषधि से संबंधित पौधों की खेती, सब्जी उत्पादन, फल उत्पादन, गन्ना उत्पादन, रेशेदार फसलों की खेती तथा दलहन और तिलहन फसलों की खेती पर ज़ोर देना चाहिए।

खेती के अंतर्गत उन्हें फसल चक्र पर ज़रूर ध्यान देना चाहिए। एक ही खेत में प्रत्येक वर्ष एक ही फसल ना लगाएं। इसके बदले फसल को बदल-बदल कर लाभ लें। इससे खेत की उर्वरा शक्ति कायम रहती है।

किसानों को मिश्रित कृषि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे उन्हें आय के अतिरिक्त विकल्प मिलेंगे। इसके अंतर्गत गौ पालन, बकरी पालन, भेड़ पालन, सुअर पालन, मुर्गी पालन और बटेर पालन आदि का चुनाव कर सकते हैं। इसके लिए बहुत अधिक जगह और पूंजी की भी आवश्यकता नहीं है बस थोड़ी सी जगह और कम पूंजी में इस कार्य को किया जा सकता है।

इसके लिए सरकारी स्तर पर सब्सिडी भी उपलब्ध करवाई जा रही है। यह रोज़गार का अतिरिक्त साधन भी उपलब्ध करवाता है।

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