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“मेरे अकेलेपन में लता दीदी के गाने मेरे साथ रहते हैं”

लता जी

लता जी

गले में मिठास और स्वरों में जिसके कसक है, आज उस स्वर मल्लिका का 90वां जन्म दिवस है। पूरा देश आज उनके प्रति आदर भाव लिए उन्हें अपने-अपने तरीकों से बधाई देने में जुटा है। सचिन ने वीडियो बनाकर अपना प्यार दर्शाया है, तो विभिन्न फिल्मी हस्तियों ने भी अपने-अपने ट्विटर हैंडल के ज़रिये मिठास भरे शब्दों की इनायत की है। मैं बात कर रही हूं लता मंगेशकर की।

मुझे भी क्लासिकल म्यूज़िक बेहद पसंद है, इसलिए मैं भी अपने तरीके से उन्हें जन्म दिवस की बधाई देना चाहती हूं क्योंकि संगीत जगत में हमारी सबसे लोकप्रिय गायिका लता दीदी की आवाज़ आज भी बुलंद है।

लता मंगेशकर। फोटो साभार- Twitter

लता मंगेशकर को लोग प्यार से दीदी कहकर बुलाते हैं लेकिन मेरे लिए वह ना केवल दीदी, बल्कि प्रेरणास्रोत भी हैं क्योंकि मैंने उनके द्वारा गाये गाने “मेरी आवाज़ ही पहचान है अगर याद रहे” सुनने के बाद ही संगीत क्लास में जाकर क्लासिकल म्यूजिक सीखना शुरू किया था।

फिल्म किनारा का यह गाना ना केवल मेरे, बल्कि लता दीदी के भी दिल के बेहद करीब है, जो गुलज़ार साहब की कलम से अंकुरित हुआ है। दरअसल, यह गाना लता दीदी के लिए ही गुलज़ार साहब ने लिखा था।

थ्री क्लास से ही मैं हारमोनियम और लता दीदी से जुड़ गई थी

मैं जब थ्री क्लास में थी, तब मैंने म्यूज़िक क्लास ज्वाइन किया था और उसके बाद धीरे-धीरे मैं संगीत में रमती चली गई। सच कहूं तो आज जब भी मन किसी बात पर उदास होता है, तब मैं अपने हारमोनियम पर लता दीदी के गाये गाने गुन-गुना लेती हूं। मेरे अकेलेपन में लता दीदी के गाने हमेशा मेरे साथ रहा करते हैं।

पहले मुझे लोगों के सामने गाने या प्रस्तुति देने में बहुत घबराहट और हिचकिचाहट महसूस होती थी लेकिन जब मुझे लता दीदी का वाकया मेरे गुरु जी ने बताया, तब मेरे अंदर की घबराहट खत्म हो गई और मैं बेहद सुरीले तरीके से अपने हारमोनियम के साथ प्रस्तुति देने लगी।

उन्होंने मुझे बताया था कि किस तरह जब लता को मजबूरी में कैमरे के पास जाना पड़ता है, तो वह भी कैमरे की रौशनी से घबरा जाती थीं क्योंकि उन्हें कैमरे की रौशनी पसंद नहीं थी फिर भी वह डटी रहती थीं।

आज भले ही चाहे कितने गाने आ जाएं लेकिन जो बात पुराने गानों में होती थी, वह आज के गानों में नहीं होती है। शायद इसकी वजह गानों के बोल के साथ-साथ उससे जुड़ी आवाज़ से भी है, जिसमें वह खनक और कसक होती है, जो किसी इंसान के दिल पर सीधे लगती है और भावनाओं की बारिश में इस कदर भींग जाता है कि बस उसे संगीत के स्वर सुनाई देते हैं।

पिता से मिली थी संगीत की शिक्षा

लता दीदी को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उनके पिता ने दी थी। बेहद ही कम उम्र में उनके हाथ हारमोनियम पर थिरकने लगे थे। वह बताती हैं कि उन्हें आज भी अपने पिता द्वारा सिखाए गए राग और बंदिशें, जैसे- मालकौस, हिंडोल, जयजयवंती, पूरिया और धनाश्री याद है।

लता मंगेशकर। फोटो साभार- Twitter

वह बताती हैं कि जयजयवंती राग सिखाते वक्त उनके पिता ने उन्हें तान लेना सिखाया था। इसके साथ ही उन्होंने यह भी सीख दी थी कि जिस प्रकार कविताओं के शब्दों के अर्थ होते हैं, उसी प्रकार संगीत के स्वरों में भी अर्थ होते हैं। गाते वक्त दोनों का भाव उभरकर सामने आना चाहिए। पिता द्वारा दी गई इस सीख को इन्होने अपने जीवन में उतार लिया और वह संगीत जगत में आगे बढ़ती चली गईं।

अपनी मृत्यु के समय पिता ने लता दीदी को अपनी नोटेशन की कॉपी और तानपुरा सौंपते हुए कहा था कि वह इसे हमेशा संभालकर रखें, जिसे लता दीदी आज भी धरोहर की तरह संभालकर रखती हैं क्योंकि इसमें उनके पिता का आशीर्वाद समाहित है।

12 वर्ष की उम्र में जीता पहला पुरस्कार

जब वह 12 वर्ष की थीं, तब पूना की एक संगीत प्रतियोगिता में उन्हें अपने ही पिता के हाथों से पहला पुरस्कार वाद्य दिलरुबा मिला था लेकिन वाद्य दिलरुबा का गज लता दीदी के हाथों से टूट गया था, जिसके बाद वह बहुत रोने लगी थीं। जिसपर उनके पिता ने समझाते हुए कहा था, “मेरी लता बाबा, इतना क्यों रोती हो? अभी तो तुम्हें इतने पुरस्कार मिलेंगे कि तुम उनका हिसाब भी नहीं रख पाओगी।” आज लता दीदी के पास पुरस्कारों की झरी हैं, जैसे-

लता दीदी से जुड़े कुछ रोचक किस्से 

लता दीदी के गाने किसी को उसका पहला प्यार याद दिला देते हैं, तो किसी की बेवफाई याद दिला देते हैं। किसी को अपने महबूब से मिला देते हैं तो किसी की हकीकत से रूबरू करवा देते हैं।

लता दीदी अपने गीतों के ज़रिये हर किसी को आकर्षित करती हैं मगर आज भी यह सवाल लोगों के मन में खटकता है कि उनका दिल किसके लिए धड़कता है।

चूंकि, बचपन में ही उनपर ज़िम्मेदारियों का अम्बार आ गया है इसलिए उन्हें छोटी उम्र में ही काम करना पड़ गया और बाबा के जाने के बाद से ही वह अचानक बड़ी हो गईं। छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारियों में वह इस कदर उलझ गईं कि वह अपने बारे में ज़्यादा सोच ही नहीं पाईं।किशोर जी से भी जुड़ा एक वाकया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह लड़का मेरा पीछा करता है।

मेरे साज में है उनकी प्रेरणा

मैं चाहूंगी लता दीदी हमेशा अपने संगीत से लोगों को प्रोत्साहित करती रहें, क्योंकि मेरे साज से निकलने वाली हर एक धुन में उनकी ही प्रेरणा है, जो मेरे संगीत में झलकती है। आज भी जब मैं अपने संगीत क्लास में जाती हूं और तबले की थाप के साथ हारमोनियम की आवाज़ मेरे कानों तक पहुंचती है, तो दिल से केवल एक ही आवाज़ निकलती है, मेरी आवाज़ ही मेरी पहचान है।

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