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नेताओं के उटपटांग बयानों पर चुटकी ना लेकर सवाल पूछिए

सीधे शुरु करते हैं। 2013 में राहुल गाँधी का एक बयान आया था,

गरीबी एक मानसिक अवस्था है।

इससे पहले दो और बयान आए थे जिसमें राज बब्बर ने 12 रुपये में भर पेट खाने का दावा किया, तो वहीं एक और काँग्रेसी नेता रशीद मसूद ने कहा था कि दिल्ली में मात्र 5 रुपये में भरपेट खाना मिलता है।

आगे बढ़ते हैं अगले बयानों पर

आगे बढ़ते है, साल 2006 में जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एनडीसी मुसलमानों के सशक्तिकरण के उद्देश्य को दर्शाते हुए कहा कि अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों का देश के संसाधनों पर पहला हक है। ज़ाहिर है कुछ महीनों बाद उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव था तो तुष्टिकरण की परंपरा को आगे बढ़ाना ही था।

नरेन्द्र मोदी और मनमोहन सिंह, फोटो – getty images

खैर, और आगे बढ़ते हैं, यूपीए 2 के अपने कार्यकाल के दौरान डॉ मनमोहन सिंह ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था,

पैसे पेड़ पर नहीं उगते इसलिए डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ाना जरूरी है।

अब थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। अब जब ऑटोमोबाइल सेक्टर मंदी की मार झेल रहा है। ऐसे में देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हमारी सोच के साथ-साथ ओला-ऊबर को भी ज़िम्मेदार ठहरा दिया है। इसी कड़ी में पीयूष गोयल इन सबको पीछे छोड़ते हुए दो कदम आगे निकल गए। उनका कहना है कि नौकरी गंवाना बहुत अच्छा संकेत है। नौकरी की कमी का मतलब है कि ज़्यादा से ज़्यादा युवा कारोबारी बनना चाहते हैं। ऐसी ही दलील भूतकाल में एक अतंरराष्ट्रीय पटल पर ‘सम्मानित’ पत्रकार महोदय भी दे चुके हैं।

खैर, गोयल द्वारा मीडिया से रूबरू होते समय जब उनसे पूछा गया कि मौजूदा दर से भारत 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था कैसे बनेगा तो वे कहते हैं,

गणित के चक्कर में मत पड़िए, बस अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का दृढ़ संकल्प कीजिए।

जिसके बाद के उन्होंने वक्तव्य में अपने परम ज्ञान का भी परिचय दे डाला। उन्होंने कहा,

अगर आइंस्टीन भी गणित के चक्कर में पड़े होते तो शायद वो कभी गुरुत्वाकर्षण की खोज नहीं कर पाते।

उनके कहने का साफ अर्थ था कि गुरुत्वाकर्षण की खोज आइंस्टीन ने की। मगर तथ्य यह है कि गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन ने की और आइंस्टाइन ने थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी या आपेक्षिकता का सिद्धांत दिया।

जब इन बयानों के लिए उनको ट्रोल किया गया तो उसके बाद उन्होंने अपनी सफाई में भी बार-बार उसी अज्ञानता का परिचय दिया। फिर बाद में जब तीसरी चौथी बार इस बात पर सफाई दी गई तब जाकर उन्होंने कबूला कि गलती किसी से भी हो सकती है।

उटपटांग बयानों का दौर जारी है

दिसंबर 2014 में मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने संसद में एक चर्चा में कहा था,

ज्योतिषशास्त्र सबसे बड़ा विज्ञान है। ज्योतिषशास्त्र के सामने विज्ञान बौना है। ज्योतिषशास्त्र विज्ञान से ऊपर की चीज है। हमें इसे प्रोत्साहन देना चाहिए।

इस पर मैं कुछ भी टिपण्णी करने से फिलहाल बचूंगा। ‘शुक्र’ है!

नवंबर 2018 में दिल्ली के जामा मस्जिद को तोड़ने का आह्वान करते हुए उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज ने कहा था,

जामा मस्जिद तोड़ो, सीढ़ियों को तोड़ों और भीतर अगर मूर्तियां न मिलें तो मुझे फांसी पर लटका देना।

इधर कुछ दिनों पहले संतोष गंगवार ने बरेली में एक कार्यक्रम के दौरान कहा,

आज देश में नौकरी की कोई कमी नहीं है, लेकिन उत्तर भारतीयों में अब काबिलियत ही नहीं कि उन्हें रोज़गार मिल सके।

सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकु ने कहा था,

नाथूराम गोडसे देशभक्त थे, हैं और रहेंगे।

इससे पहले त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने महाभारत काल में ही इंटरनेट का अविष्कार किए जाने के दावे के साथ-साथ और भी कई बेतुका बयान देकर इस रेस में जगह बनाने में कामयाब हुए।

विज्ञान से अज्ञान की ओर जाते बयान

फिर उसके बाद केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने डार्विन की थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन को ही गलत करार दे दिया। इसके बाद एक और बयान आया जिसमें कहा गया कि सिर्फ एक ही पशु है जो ऑक्सीजन ना सिर्फ सांस के ज़रिए शरीर के अंदर लेती है बल्कि उसे बाहर भी छोड़ती है और वो है गाय। यह दावा राजस्थान के पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने किया है और यही दावा उत्तराखंड की पशुपालन मंत्री रेखा आर्या ने भी किया।

इधर फरीदाबाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बड़ी ही बेशर्मी के साथ कहते हैं कि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से शादी के लिए अब कश्मीर से लड़कियों को लाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। फोटो साभार: Getty Images

खैर इस कड़ी में पीएम मोदी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी दूसरों को पीछे छोड़ते हुए गजब की बात रख दी। 2014 में चिकित्सकों को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा था कि उस समय ज़रुर कोई ना कोई प्लास्टिक सर्जन रहा होगा जिसने हाथी के सिर को मानव शरीर पर जोड़ दिया और इस तरह प्लास्टिक सर्जरी का श्रीगणेश हुआ।

मोदी के ऐसे कई सारे उटपटांग बयान आपको मिल जाएंगे। मेरे द्वारा प्रधानमंत्री की गरिमा को और अधिक ठेस पहुंचाना उचित नहीं होगा।

देश के प्रधानमंत्री की गरिमा को भी नहीम बख्शा

वहीं हैदराबाद के नजदीक शम्शाबाद में राहुल गांधी की रैली में उन्हीं की मौजूदगी में कांग्रेस नेत्री ने कहा था,

पीएम मोदी किसी आतंकवादी की तरह दिखते हैं।

इससे पहले भी मोदी के लिये नीच, हिंजड़ा, फेकूं, चायवाला जैसे शब्द भी इस्तेमाल किए जा चुके हैं।
वैसे विवादित बयान की बात हो तो ना योगी आदित्यनाथ को भूला जा सकता है और ना ही लालू प्रसाद यादव को। चुनावी रैली के दौरान प्रत्याशियों का एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाना आम बात हो जाती है लेकिन लालू यादव ने रायबरेली में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिजड़ा और भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह को गैंडा बताकर संबोधित किया था। उनके ऐसे कई उट पटांग बयान यूट्यूब पर देखें जा सकते हैं।

सबसे अव्वल योगी जी

जब बात आती है योगी आदित्यनाथ की तो मुझे लगता है कि वे सबको फेल कर जाते हैं। शायद वह 2014 था, जिसमें योगी ने कहा था,

अगर वे एक हिंदू लड़की का धर्म परिवर्तन करेंगे तो हम उनकी 100 मुस्लिम लड़कियों का धर्म परिवर्तन करेंगे।

जून 2016 में कहा था जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने से कोई नहीं रोक सका तो मंदिर बनाने से कौन रोकेगा। इससे पहले जून 2015 में एक और बयान दिया था जिसमें कहा था,

जो लोग योग का विरोध कर रहे हैं उन्‍हें भारत छोड़ देना चाहिए। जो लोग सूर्य नमस्‍कार को नहीं मानते उन्‍हें समुद्र में डूब जाना चाहिए।

योगी आदित्यनाथ, फोटो- MYogiAdityanath फेसबुक पेज

फरवरी 2015 में कहा था कि अगर उन्हें अनुमति मिले तो वे देश के सभी मस्जिदों के अंदर गौरी-गणेश की मूर्ति स्थापित करवा देंगे।
इसके बाद साहब ने गैर हिंदूओं की भारत में एंट्री बैन करने की भी वकालत की थी, जिसके तहत उन्होंने कहा था,

मक्का में गैर मुसलमानों की एंट्री प्रतिबंधित है और वेटिकन सिटी में गैर- ईसाइयों के घुसने पर रोक है तो ऐसे में भारत में भी गैर हिंदूओं के प्रवेश को रोका जाना चाहिए।

इसके अलावा भी उन्होंने रैलियों में सेकुलरिज्म को देश की सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। राजस्थान विधानसभा चुनाव 2018 के चुनावी रैली के दौरान भी हनुमान की कथित जाति भी बता डाली। इसके अलावा भी उनका धर्म विशेष के प्रति घृणित विचार, उनके भाषणों में दिखते रहे हैं।

हम क्या कर रहें हैं?

खैर, इस कड़ी को आगे बढ़ाने में पार्टी के एक से एक धुरंधर एक दूसरे को कड़ा कॉम्पटीशन देते आए हैं। अनन्त उटपटांग बयान आते गए और हम है कि मज़े लेते रहे।

विरोधी सोचते रहे कि इन बयानों का मुद्दा बनाकर हम सरकार गिरवा देंगे और समर्थक दलील देते रहे कि जब वह हो रहा था तब तुम कहां थे? यानी कि अपनी विफलताओं पर मिट्टी डालने के लिये उट पटांग बयान देकर जनता को उलझा देना, पिछले कई सालों से यह बड़ा ही कामयाब तरीका बन चुका है।

हमें सोचना चाहिए कि हम इनके जाल में फंस क्यों जाते हैं? शायद इसलिये कि हमें भी इनकी टांग खिंचाई में मज़ा आता है। जहां हमें इनसे मूलभूत मुद्दों पर सवाल करना चाहिए, वहां हम दिन-दिन भर पानी पी-पीकर इनको गालियां देते नहीं थकते। खैर, आप बताइए कि इस पोस्ट से आपने क्या सीखा और समझा?

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