कॉंग्रेस अपनी स्थापना के बाद से अब तक की सबसे मुश्किल परिस्थिति में है। ना ही उसके पास कोई नीति है और ना ही उसके पास कोई नेता है। लोकसभा चुनाव के बाद तमाम उठापटक के साथ कॉंग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी जहां से चली थी, वहीं पहुंच गई है। मतलब, सोनिया गॉंधी से होते हुए राहुल गॉंधी और अब फिर वापस सोनिया गॉंधी।
जहां एक तरफ तीन तलाक पर कॉंग्रेस ने मामूली विरोध किया, वहीं धारा 370 पर कॉंग्रेस खुद आपस में बंटती दिखी। कुछ कॉंग्रेस नेता इसके साथ थे, तो कुछ कॉंग्रेस नेता इसके प्रखर विरोधी रहें। भारत की GDP गिर रही है, फिर भी कॉंग्रेस वर्तमान सरकार पर दबाव बनाने में नाकामयाब रही। वहीं आम जनता का विश्वास भी इस मुद्दे पर नहीं हासिल कर पाई है।
कॉंग्रेस नेता और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम पर जांच चल रही है और वह अभी जेल में हैं। इनके साथ तो कॉंग्रेस खड़ी दिखी लेकिन बीजेपी नेता और पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली लड़की के साथ और चिन्मयानंद की गिरफ्तारी के लिए कॉंग्रेस ने ज़ोरदार तरीके से मांग नहीं उठाई। NRC के मुद्दे पर भी कॉंग्रेस की तरफ से कोई खास प्रतिक्रिया नहीं आई, कॉंग्रेस से बड़ा विरोध तो ममता बनर्जी कर रही हैं।
कॉंग्रेस ने फुल टॉस आए मुद्दे को भी सुरक्षित तरीके से खेल दिया। अगर यही मुद्दे बीजेपी को मिले होते तो शायद बाउंड्री पार होता। ऐसी स्थिति में तो आने वाले 3 राज्यों की विधानसभा चुनाव में भी कॉंग्रेस विजय से धीरे-धीरे दूर जाती दिख रही है ।