भारत में लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराते हुए उनके जीवन को परिवर्तित करने में सरकार की ज़िम्मेदारी ज़रूर है लेकिन सरकार इस काम में घोर लापरवाही दिखा रही है। इसका परिणाम यह है कि हमारे देश के मूक-बधिर लोग मुख्यधारा में आने से वंचित रह जाते हैं। यह रिपोर्ट उन्हीं के अधिकारों और भारत की स्थिति के संबंध में है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोध छात्रा रितिका ने इस विषय पर अभी हाल ही में अपनी पीएचडी सब्मिट की है। उन्होंने हमें बताया कि आज मूक-बधिर लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या उनके कम्युनिकेशन लैंग्वेज का है, जिसे सरकार द्वारा समर्थन नहीं मिल रहा है।
उन्होंने कहा,
मूक-बधिर लोगों को उचित प्रशिक्षण ना मिलने के कारण वे किसी से कम्युनिकेट नहीं कर पाते हैं। इससे वे मूलभूत मानवाधिकारों की सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं।
रितिका का कहना है कि सरकार कुछ हद तक तो काम कर रही है लेकिन उनके कामों में जितनी तीव्रता दिखनी चाहिए, वह नहीं है। जैसे- सर्टिफिकेट प्राप्त करने में तमाम कठिनाइयां, बच्चों की उचित प्रशिक्षण का प्रबंध ना होना और उम्र की शुरुआत में जागरूकता की कमी के कारण मूक-बधिर बच्चों को उचित स्वास्थ्य सुविधा नहीं देना शामिल है।
कम उम्र में ज़रूरी है समस्या की पहचान कर पाना
रितिका कहती हैं, “कम उम्र के बच्चों को आइडेंटिफाई करते हुए यदि उनका इलाज सही वक्त पर शुरू हो जाए, तो अधिकतर बच्चे मशीन की सहायता से सुनने में सफल होते हैं। कई दफा ऐसा देखा जाता है कि जानकारी या पैसों की कमी के कारण खासकर गरीब लोग बचपन में ध्यान नहीं दे पाते हैं और आगे चलकर यह बड़ी समस्या बन जाती है।”
भारत में हियरिंग मशीन की व्यवस्था तो है मगर मरीज़ों के लिए उचित रिहैबिलिटेशन की कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके कारण इस मशीन का प्रयोग सही से नहीं हो पाता है। यहां तक कि कई मरीज़ तो इसका लाभ लेने से भी वंचित रह जाते हैं।
मूक-बधिर लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने के सवाल पर रितिका ने कहा कि उनके जीवन में परिवर्तन लाने के लिए यह बेहद ज़रूरी है। इसके लिए हमें शुरुआती शैक्षणिक व्यवस्था में परिवर्तन लाने की ज़रूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि इन बच्चों के लिए अधिक से अधिक स्पेशल स्कूल की स्थापना करनी होगी ताकि वहां से मुख-बधिर बच्चों को उनके भाषा में प्रशिक्षित करके सफल बनाया जा सके।
गौरतलब है कि विश्व मूक-बधिर दिवस, विश्व के मुख-बधिर समुदाय को समाज के मुख्यधारा में शामिल करते हुए उन्हें मूलभूत मानवाधिकारों की प्राप्ति तथा समाज में उचित सम्मान प्राप्त करने के मकसद से मनाया जाता है।
पुनर्वास क्रेन्द्रों को फिर से शुरू करने की ज़रूरत
मालूम हो कि 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 13 लाख मूक-बधिर लोग निवास करते हैं। आज ज़रूरत है कि हमारी सरकार इस दिशा में सराहनीय कदम उठाए। सिर्फ सोशल मीडिया पर उनके सपोर्ट में लिखने से बहुत कुछ हासिल नहीं होने वाला है, हमें अपनी आवाज़ बुलंद करने के साथ-साथ अपने ज़हन में उनके लिए संवेदनशीलता लाने की ज़रूरत है।
यदि सरकारों को कोई फर्क पड़ता, तब झारखंड के कई ज़िलों में विकलांग पुनर्वास केन्द्रों को बंद नहीं कर दिया जाता और वहां के कर्मचारियों की सैलरी भी नहीं रोकी जाती। एक तरफ सरकार, मूक-बधिर लोगों के लिए तमाम कल्याणकारी योजनाओं की बात करती है और दूसरी ओर पुनर्वास केन्द्रों को बंद कर दिया जाता है। सरकार को इस पर मंथन करने की ज़रूरत है।