मेरे व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार आज का समय भागमभाग का है। आजकल लोग एक दूसरे से आगे जाना चाहते हैं मगर इस भागमभाग में वे भूल जाते हैं कि भागने का एक सही तरीका भी होता है। बिना किसी को नुकसान पहुंचाए हुए भी आगे बढ़ा जा सकता है। कुछ लोग दिन प्रतिदिन अमीर होते जा रहे हैं और कुछ लोग गरीब होते जा रहे हैं। इन्हीं दो वर्गों के बीच में कुछ लोग इस आज़ाद भारत में दिन प्रतिदिन गुलाम होते जा रहे हैं।
पहले हम गरीबों की बात कर लेते हैं। यह स्वाभाविक है कि गरीब कभी आज़ाद हो ही नहीं सकता। उसका हर पल किसी-ना-किसी रूप में किसी के अधीन ही होता है। वह इस आज़ाद भारत में भी आर्थिक रूप से कमज़ोर होने के कारण किसी-ना-किसी के उपनिवेशवाद का शिकार होता है। वह स्वतंत्र रूप से कोई निर्णय नहीं ले सकता है, बल्कि किसी के सहारे जीने पर मजबूर है। वह हर समय अपने सपनों को मारता रहता है।
दूसरी ओर अगर हम अमीरों को देखे तो वे अपनी शान और शोहरत को बरकरार रखने के भागम भाग में पड़े हुए हैं। उनके पास खुद के लिए भी समय नहीं है। ऐसा देखने में लगता है कि वे बहुत अमीर हैं तो आज़ाद भी होंगे मगर वे मानसिक रूप से कहीं ज़्यादा फंसे हुए हैं। उनकी सोच एक रिश्ते पर अटक गई है। वे कई बार उससे बाहर निकलने का सोचते हैं मगर चाहकर भी नहीं निकल पाते हैं।
मुझे लगता है कि गरीब और अमीर दो शब्द मात्र हैं। असली संघर्ष हर व्यक्ति का आज़ादी हासिल करने का है, जो उसके हाथ से दूर होती जा रही है। अंतत: हम यह कह सकते हैं कि गरीबी और अमीरी के बीच फंसी आज़ादी एकमात्र सच्चाई है।