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सुबह 5 बजे वह बच्ची सड़क पर पेट भरने के लिए दुकान लगा रही थी

यूं तो मैं रोज़ाना सुबह की सैर पर जाता हूं, शहर के काफी लोग पहाड़ी के नीचे बने ब्रिटिशकालीन गोल्फ मैदान के इर्द-गिर्द व्यायाम और योग करते मिल जाते हैं, किंतु हालिया दो दिनों से लोगों की संख्या में काफी इज़ाफा हुआ है।

शायद यह भीड़ प्रधानमंत्री के फिट इंडिया मूवमेंट का हिस्सा बनने के लिए है। अब यह भीड़ कितने दिन तक टिकती है, यह तो बाद की बात है। सुबह सैर करके जब मैं अपने घर को लौट रहा था, तो मुख्य सड़क पर गुज़रते वक्त लगभग एक 8 वर्षीय बच्ची दिखी, जो मिट्टी के छोटे-छोटे बर्तनों को बड़े करीने से संभालकर, सड़क किनारे बिछे एक प्लास्टिक पर रख रही थी।

सड़क पर मिट्टी के बर्तन बेचती लड़की

सुबह के उस वक्त साढ़े पांच बजे थे, जब शहर और देश की अधिकतम आबादी निंद्रा के सबसे सुखद पहर में होंगी पर वह बच्ची निर्जन सड़क पर अकेले दुकान सजा रही थी। शायद इतनी सुबह इसलिए भी क्योंकि तीज का पर्व था और अगर वह देर करती तो शायद उसे सड़क पर दुकान लगाने की जगह नहीं मिलती।

मेरे कदम सहसा ठहर गए, मैं उससे पूछना चाहता था कि इतनी सुबह वह अकेले क्यों आ गई? तुम्हारे माता-पिता कहां हैं? वह स्कूल जाती है या नहीं? लेकिन हिम्मत नहीं जुटा सका।

समझ नहीं आ रहा था कि वह लड़की, जो मंदिर की सीढ़ियों के बगल में बैठकर दुकान सजा रही है, उसी मंदिरों के लिए कितने आंदोलन और बहसे होती हैं, किन्तु देश के बच्चे जो देश के भविष्य हैं, उनपर कोई चर्चा नहीं होती है।

हर कोई भागता है, सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं, आम लोग भी, समाज भी। आखिर मैं उस बच्ची से कैसे सवाल करता, क्योंकि मैं भी तो उसी भीड़ का हिस्सा हूं, जो मंदिरों, मस्जिदों, धर्मों और जातीयों के मुद्दों पर बहस करते दिखते हैं लेकिन इस बच्ची की स्थिति पर कोई सवाल नहीं उठाते हैं। उस बच्ची की जाति और धर्म तो फिलहाल मजबूरी ही प्रतीत हो रही थी।

पिछले एक माह से अनुच्छेद 370 पर सबकी नज़रे केंद्रित हैं, इसके बाद धीरे-धीरे गिरती अर्थव्यवस्था की ओर हम केंद्रित हो गए हैं। महीने भर उसकी कहानी, हल्ला और बहसे चलेंगी किन्तु हम अपने भविष्य पर ध्यान नहीं देंगे, क्योंकि पूंजीवादी व्यवस्था का नारा है, जो दिखता है वही बिकता है।

देश की अर्थव्यवस्था क्यों नहीं गिरेगी, जब उसका भविष्य ही अधर में हो? हम देश की तरक्की को बड़े-बड़े मॉल, सिनेमा हॉल मैट्रो आदि से जोड़कर देखते हैं परंतु सच्चाई तो यह है कि हम स्वयं बच्चों के मुद्दों को दरकिनार कर देश का कब्र खोदने में लगे हुए हैं। बच्चे देश के नींव हैं और नींव ही कमज़ोर होगी तो ऊपर कितनी ही अच्छी इमारत क्यों ना बना लो, वह आज ना कल ढह ही जाएगी।

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