जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर की ‘सम्मानित सदस्यता’ जारी रखने के लिए उनसे उनकी सीवी मांगी गई थी। इसे रोमिला थापर ने अपना सुनियोजित अपमान बताते हुए सीवी देने से इंकार कर दिया था। उसके बाद से सोशल मीडिया पर लगातार रोमिला थापर को लेकर चर्चा बनी हुई है।
इन चर्चाओं के बीच 21 सितम्बर को ट्वीटर पर शैफाली वैद्य नाम के हैंडल से एक छोटा वीडियो क्लिप अपलोड हुआ और बड़ी तेज़ी से यह क्लिप वायरल हुआ है।
Coming up next, Krishna came up with the idea of the Bhagwad Geeta after reading Discovery Of India by Lord Nehru – by eminent distortian Romila Thapar pic.twitter.com/gkQrJpL0OI
— Shefali Vaidya. 🇮🇳 (@ShefVaidya) September 21, 2019
वीडियो को पोस्ट करने वाले हैंडल और उसे शेयर करने वाले कई लोगों का विचार है कि यह क्लिप रोमिला थापर के इतिहास ज्ञान पर सवाल उठाता है। उनके अनुसार इस वीडियो में रोमिला थापर ने कहा है कि महाभारत के शांति पर्व में लिखित युधिष्ठिर के राज्य को त्याग करने का उपक्रम सम्राट अशोक से प्रभावित है।
अगर रोमिला थापर युधिष्ठिर को अशोक से प्रभावित बताती हैं तो प्रश्न उठता है कि 400 से 500 BCE में लिखे गए महाभारत के चरित्र युधिष्ठिर पर 300 BCE के बाद हुए अशोक का प्रभाव होना कैसे संभव है?
इसी बात को लेकर कई लोग रोमिला थापर की साख पर प्रश्न उठा रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि रोमिला थापर पर हो रहे ज़्यादातर कटाक्ष या व्यंग्य उनके इतिहासकार होने से ज़्यादा उनके वामपंथी रुझान के लिए हो रहे हैं। यह व्यंग उनकी तथ्यात्मक आलोचना की बजाय उनकी व्यक्तिगत निंदा पर आधारित है।
इसलिए जब हम यह जानने कि कोशिश करते हैं कि दरअसल रोमिला थापर ने कहा क्या है? तो हमें उनकी स्पष्ट और तार्किक बात के पीछे के सत्यापित आधारों को देखने में वैसी कोई मुश्किल नहीं आती जैसी सोशल मीडिया पर उन्मादी हो रहे लोगों को आती है।
वीडियो में दरअसल क्या कहा है रोमिला थापर ने
वीडियो में रोमिला थापर ने पहले कहा है,
युधिष्ठिर के राज्य को त्यागने का सारा उपक्रम बौद्ध परम्पराओं का मूलभूत उपक्रम है।
उसके बाद उन्होंने इस बात की संभावना पर एक वाक्य कहा है,
और सम्भावना है कि युधिष्ठिर के दिमाग में उस वक्त अशोक जैसा चित्र रहा हो।
इस वीडियो क्लिप में रोमिला थापर ने कहीं भी युधिष्ठिर को अशोक से प्रभावित नहीं बताया है, बल्कि युधिष्ठिर के चरित्र को बौद्ध परम्परा से प्रभावित होने की संभावना बताई है। उनका भावार्थ यहां पर है कि बौद्ध परंपरा से जुड़े उपक्रमों से मिलता-जुलता मामला महाभारत के शांति पर्व में तब उपस्थित होता है, जब युधिष्ठिर अपना राजपाठ त्यागने को प्रेरित होते हैं।
काफी संभावना है कि युधिष्ठिर के मस्तिष्क में वैसी ही वैराग्य की भावना हो जैसी सम्राट अशोक के मन में थी, जब उन्होंने युद्ध के पश्चात् अपना राजपाठ त्यागकर सन्यासी जीवन चुना।
इसमें युधिष्ठिर पर अशोक के सीधे प्रभाव की बात नहीं हो रही है बल्कि बौद्ध संस्कृति में ढलने वाली 700 से 800 BCE से चली आ रही श्रमण परंपरा के प्रभाव की बात हो रही है।
गौरतलब है कि महाभारत के लिखे जाने के समय 400 से 500 BCE में बौद्ध परम्परा और प्रभाव अपने उत्कर्ष पर था। अगर कोई व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वास के लिए महाभारत को 2000 या 3000 साल पहले होने वाला ऐतिहासिक सत्य मानता हो और युधिष्ठिर को महाकाव्य से परे एक वास्तविक व्यक्ति मानता हो तो यह उसकी स्वतंत्रता है। उसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधान पर आधारित महाभारत के लेखन काल (400 से 500 BCE) के अनुसार उस काल की संस्कृति और प्रभावों का अध्ययन करने वाली इतिहासकार पर अनर्गल आरोप लगाना कतई उचित नहीं है।
चूंकि वीडियो में कही गई बात को तोड़-मरोड़कर “युधिष्ठिर अशोक से प्रभावित थे” कहकर फैलाना तो विशुद्ध दुष्प्रचार है, जिसके प्रति प्रत्येक व्यक्ति को जागरूक और सतर्क रहना चाहिए।