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“माना कि अंग्रेज़ी ज़रूरी है मगर क्या हम हिंदी को भूल जाएं?”

फोटो साभार- Getty Images

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मेरा नाम प्रिंस कुमार है। ज़्यादातर लोग मुझे अन्ना राय के नाम से जानते हैं। मैं बिहार के अररिया ज़िले के फारबिसगंज शहर से आता हूं। फिलहाल मैं दक्षिण भारत के बैंगलोर शहर में डेलीहंट कंपनी में कार्यरत हूं।

हिंदी दिवस तो गुज़र गया मगर मैं आज ही आपको हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं देता हूं। आज में हिंदी पर चंद बातें लिखने जा रहा हूं और मुझे आशा है कि आप ज़रूर पढ़िएगा उसे।

आज मुझे हिंदुस्तान में ही हिंदी खोती नज़र आ रही है। हिंदी का प्रयोग दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। इस कलयुग में हिंदी लिखना तो दूर की बात है, लोगों को बोलना भी रास नहीं आता है।

मातृभाषा के तौर पर हिंदी विलुप्त होती जा रही है। इसका एक सीधा सा कारण मुझे लगता है कि हम खुद ही हिंदी में बात करना नहीं चाहते हैं। इसका दूसरा कारण प्रतिस्पर्धा भी हो सकता है।

आज कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है। आगे बढ़ने के लिए हो सकता है वह मजबूरन अंग्रेज़ी का सहारा ले रहा हो, जिससे हिंदी पीछे छूटती जा रही है। माना कि अंग्रेज़ी ज़रूरी है मगर क्या हम हिंदी को भूल जाएं? जहां हम हिंदी का प्रयोग कर सकते है, हम तो वहां भी अंग्रेज़ी का प्रयोग कर रहे हैं।

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बहुत से लोगों के मन में हिंदी के बारे में हीन भावना भी पनपती जा रही है, जो कि एक चिंता का विषय है। हमारे जो युवा हैं, उनमें से कुछ को तो हिंदी लिखनी भी नहीं आती और कुछ युवा ऐसे भी हैं, जिन्हें बोलनी भी नहीं आती है।

यह तो बात हो गई युवा पढ़ी की मगर आने वाली युवा पढ़ी पर नज़र डालने पर उनका हाल आज की युवा पढ़ी से भी ज़्यादा बुरा है, जहां स्कूलों में उन पर हिंदी बोलने पर टैक्स लगाए जाते हैं।

अपने बच्चों को अंग्रेज़ी सिखाना अच्छी बात है मगर हिंदी पर उनकी पकड़ भी बहुत आवश्यक है। कहीं ऐसा ना हो कि वन्य जीव-जंतु और पक्षियों की तरह हिंदी भाषी भी धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएं। शायद इन्ही कारणों से हिंदी अपने ही देश में विलुप्त होती जा रही है।

क्या हिंदी केवल अखबारों और न्यूज़ चैनलों तक ही सिमटी रह जाएगी?

आज देश में हिंदी की जो हालत हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में हिंदी केवल समाचार पत्रों और समाचार चैनलों तक ही सिमटकर रह जाएगी। ऐसे में इन समाचार के माध्यमों का भी आस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

कुछ लोग हिंदी को गवार भाषा सोचते हैं और हिंदी बोलने वाले को गवार कहते हैं। अगर वे शुद्ध हिंदी का प्रयोग करते तो निश्चित ही उनकी भाषा अभद्र नहीं रहेगी। हिंदी तो हमेशा से ही स्वच्छ है, गवार तो इसका बिगड़ा हुआ स्वरूप है जिसे कुछ लोगों ने खुद बनाया है।

इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि मानव गलत चीज़ जितनी जल्दी सीखता है, उतनी जल्दी अच्छी चीज़ नहीं सीख पाता या सीखने की कोशिश नहीं करता है।

आज सवाल यह भी है कि देश किस ओर बढ़ रहा है? इसका सही जवाब तलाशने पर भी नहीं मिल पाता है, क्योंकि देश ना तो पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता की और बढ़ रहा है और ना ही पूरी तरह अपनी संस्कृति की ओर। आज देश हिनेंग्लिश बन कर रह गया है।

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