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कश्मीर में ठप पड़ी मोबाइल सेवाओं के बीच कश्मीरी स्टूडेंट्स का दर्द

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Geer Ab Wahid

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Geer Ab Wahid

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के एक महीने से भी ज़्यादा वक्त गुज़र गए हैं। सरकार दावा कर रही है कि अब कश्मीर घाटी में सब कुछ ठीक है। इंटरनेट और फोन सेवाएं सुचारु रूप से काम कर रही हैं मगर घाटी में क्या सचमुच सब कुछ ठीक है? या यह सिर्फ रेल हादसों के बाद यात्रियों की मौत के आंकड़े को कम करके दिखाने सरीखा है।

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद ज़मीनी स्थितियां अब परत दर परत खुल रही हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कश्मीर से दिल्ली और नोएडा आकर पढ़ने वाले स्टूडेंट्स विशेष तौर पर मनी ट्रांजैक्शन की समस्या से जूझ रहे हैं।

कश्मीर के बारामूला से नोएडा आकर पढ़ाई करने वाले शादाब रविवार सुबह फोन पर बात करते हुए कहते हैं कि अभी 10 दिन पहले ही मैं कश्मीर से दिल्ली आया हूं और तब से लेकर अब तक मेरे पेरेन्ट्स से मरी बात नहीं है, क्योंकि कोई कम्युनिकेशन ही नहीं हो पा रहा है।

जंतर-मंतर में आयोजित कार्यक्रम ‘Eid Away From Home’ से ली गई तस्वीर।

यह पूछे जाने पर कि कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 हटाया गया था तब शादाब कहां थे, वह बताते हैं कि उन्हें पहले से ही आभास हो गया था कि सरकार कुछ बड़ा फैसला लेने वाली है, जिससे कश्मीर में रह रही उनकी फैमिली को भी दिक्कत हो सकती है। अमरनाथ यात्रा रद्द करने के फैसले के वक्त ही शादाब अपने घर बारामूला पहुंचकर भोजन सामग्रियां और पेरेन्ट्स व खुद की दवाईयां इकट्ठा करने में जुट गए थे।

शादाब कहते हैं, “मैं अपनी फैमिली के बारे में सोचकर अब भी परेशान हूं, क्योंकि उनसे बात करने का कोई ज़रिया ही नहीं है। मुझे पेरेन्ट्स के बारे में सोचकर रातों को नींद नहीं आती है। जब मैं कॉलेज जाता हूं तो यही चिंता रहती है कि मेरे पेरेन्ट्स किन परिस्थितियों में होंगे।”

वह बताते हैं कि जब उनके पेरेन्ट्स किसी एसटीडी बूथ में जाकर उनसे बात करने की कोशिश भी करते हैं, तो वहां इतनी भीड़ होती है कि उन्हें घर लौट आना पड़ता है। शादाब के घर में एयरटेल पोस्टपेड कनेक्शन नहीं है और सरकार ने सिर्फ कुछ जगहों पर एयरटेल पोस्टपेड की सेवाएं चालू की हैं। शादाब के घरवाले उन्हें पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। शादाब का कहना है कि उनके पास कुछ पैसे हैं, जिनसे वह ज़रूरत की चीज़ें खरीद पा रहे हैं।

क्या सब कुछ अचानक हुआ?

कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के कुछ ही रोज़ हुए थे और श्रीनगर की रहने वाली शाज़िया किसी ज़रूरी काम से बाज़ार जा रही थी। रास्ते में कुछ बिहारी लड़कों ने शाज़िया की तरफ हंसकर इशार करते हुए कहा कि अब तो कश्मीरी लड़कियों से शादी करने में सुहूलियत होगी। गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 के फैसले के बाद से सोशल मीडिया पर तमाम लोग कश्मीर में ज़मीन खरीदने और कश्मीरी लड़कियों से शादी को लेकर तरह-तरह के मीम्स शेयर कर रहे हैं।

जंतर-मंतर में आयोजित कार्यक्रम ‘Eid Away From Home’ से ली गई तस्वीर।

शाज़िया कहती हैं, “पापा मिडिल ईस्ट में रहते हैं और कश्मीर में अब भी इंटरनैशनल कॉल्स बैन हैं। इस वजह से पापा चाहकर भी मम्मी से बात नहीं कर पाते हैं फिर पापा मुझे कॉल करते हैं और मैं कॉन्फ्रेंस कॉल के ज़रिये माँ से उनकी बात कराती हूं।”

कश्मीर के हालातों का ज़िक्र करते हुए शाज़िया बताती हैं, “मैं ठीक से सो भी नहीं पाती हूं, क्योंकि मुझे चिंता होती है कश्मीर में मेरी बहन और माँ की हालत कैसी होगी।”

शाज़िया 21 मई से 01 सितंबर तक कश्मीर में थी। वह बताती हैं, “हमें पहले दिन लगा कि वॉर होने वाला है, फिर जानकारी मिली कि यूनियन टेरिटरी बनाने के लिए सब कुछ हो रहा है, उसके बाद पता चला कि उनको यहां की डेमोग्राफी बदलनी है। इन कयासों के बीच 15 दिनों तक तो हमें पता ही नहीं था कि आखिर चल क्या रहा है? जब इंटरनेट और फोन बंद हो गया, तब टीवी पर हमने देखा कि आर्टिकल 370 हटा दिया गया है।”

मानसिक रूप से कमज़ोर भाई ट्रॉमा में चला गया

शाज़िया कहती हैं, “मेरे एक कज़न भाई, जो काफी वक्त से मानसिक तौर पर परेशान रहते थे, अब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने पर उनकी परेशानी और बढ़ गई। जिस तरीके के खौफ का मज़र वह देख रहे थे, खुद को असहाय महसूस करने लगे थे।”

शाज़िया बताती हैं,

उनकी फैमिली हज यात्रा पर गई थी, इस वजह से भी वह खुद को अकेला महसूस कर रहे थे। उनकी हालत ऐसी थी कि वह किसी से भी लड़ ले रहे थे, हमें डर था कि वह कहीं आर्मी वालों से ना भिड़ जाएं। हम तो यही सुन रहे थे कि जो भी आर्मी वालों से बहस कर रहे थे, उन्हें वे उठा ले रहे थे।

शाज़िया कहती हैं, “2010 के आस-आप जब हालात बहुत खराब थे, तब मेरे यही कज़न 12वीं में पढ़ते थे। वह गाड़ी में पेट्रोल डलवाने के लिए बाहर गए थे और जब वह वापिस घर आते हैं तब हमने देखा कि उनका गाल सूजा हुआ है और आंखों में भी काफी चोटें आई हैं। पूछने पर उन्होंने बताया कि आर्मी वालों ने उनकी इसलिए पिटाई की थी, क्योंकि उन्होंने आर्मी वाली पैंट पहन रखी थी।”

सिविल कर्फ्यू से आ रही परेशानियां

शाज़िया की माँ जब मिडिल ईस्ट से कश्मीर आईं, तब उन्होंने सोचा कि क्यों ना बेटियों को आज बढ़िया सा डिश बनाकर खिलाया जाए और इसी कारण वह अकेले चिकन शॉप चली गईं। चिकन शॉप पहुंचने के बाद शाज़िया की माँ ने देखा कि वहां पर काफी संख्या में सुरक्षाबल मौजूद हैं, जो शॉप के सामने लोगों को इकट्ठा होने नहीं दे रहे हैं। वहां मौजूद लोगों को शॉप वाले ने कहा कि वे गलियों में कहीं पर खड़े हो जाएं और उनकी बारी आने पर उन्हें बुलाया जाएगा।

शाज़िया कहती हैं, “अब कश्मीर में जो भी दुकानें बंद हैं, वे सिविल कर्फ्यू के परिणाम हैं। स्थानीय व्यापारियों का आक्रोश है कि बगैर उनकी अनुमति के इतना बड़ा फैसला क्यों लिया गया और साथ ही साथ नाराज़गी इस बात को लेकर भी है कि उनके व्यापार को काफी नुकसान हुआ है।

स्टोन पेल्टिंग के नाम पर पुरुषों और महिलाओं को पीटा जाता है

शाज़िया जब दवाई लेने बाज़ार गई थी, तब उन्होंने यह मंज़र देखा कि किस तरह से आर्मी के लोग सड़कों से गुज़रने वाले राहगीरों को रोककर पीट रहे हैं। पीटते वक्त वे यह भी नहीं देख रहे थे कि कौन महिला और और कौन पुरुष।

फोटो साभार- सोशल मीडिया

शाज़िया कहती हैं कि हम बाहर जाने से इसलिए डरते हैं कि अगर कोई और कुछ करता है, तो उसकी सज़ा किसी और को दे दी जाती है। पत्थर मारता कोई और है और बदले में बुरी तरह से किसी और की पिटाई हो जाती है। आर्मी वाले रात को उन जगहों पर रेड मारते हैं, जहां उन्हें संदेह होता है और लड़कों के साथ-साथ पेरेन्ट्स की भी पिटाई करने लग जाते हैं।

शाज़िया का कहना है कि जब भी वह कश्मीर में कदम रखती हैं तब उन्हें डर के माहौल में जीना पड़ता है। उन्हें डर होता है कि आर्मी वाले उनकी फैमिली से साथ कुछ गलत ना कर दे। शाज़िया को डर है कि स्टोन पेल्टिंग के नाम पर आर्मी वाले कभी उनके भाई को ना मारने लग जाए।

बकौल शाज़िया, “कश्मीर में सब कुछ है फिर हमें क्या चाहिए 370 से? कश्मीर का वातावरण बहुत नेचुरल है, फिर हम यहां पर इंडस्ट्रीज़ लाकर क्या करेंगे, आप डेयरी फार्म खुलवा दीजिए वह ठीक है, इसके अलावा किस विकास की बात कर रहे हैं आप?

शाज़िया और उनकी कज़न बहनों को जब आर्मी वालों ने बलात्कार की धमकी दी

साल 2010 की ही बात है जब शाज़िया 2 महीने की छुट्टी पर अपने घर श्रीनगर आई थीं। कश्मीर में उस वक्त हालात काफी खराब थे, कर्फ्यू के माहौल के बीच अपनी कज़न बहनों के साथ वह बाज़ार  की तरफ जा रही थीं। 

शाज़िया कहती हैं, “सभी लड़कियों में हमारी उम्र सबसे कम थी। मैं 12 की थी तभी और हमें डर था कि आर्मी वाले हमारे साथ कुछ गलत ना कर दें। इसी बीच  मिलिट्री के बंकर से हमें पूछा गया कि हम कहां जा रहे हैं। हमने उनका जवाब देते हुए कहा कि हम फल लेने जा रहे हैं। उन्होंने हमें कहा कि अभी फल मांग रहे हो और बाकी टाइम तो आज़ादी मांगते हो, बंकर में आओ बताते हैं आज़ादी क्या होता है। उनके कहने का मतलब यह था कि हम वहां जाएं और वे हमारे साथ रेप करें।”

जंतर-मंतर में आयोजित कार्यक्रम ‘Eid Away From Home’ से ली गई तस्वीर।

शाज़िया का कहना है कि आर्मी वाले दिल्ली में किसी को नहीं बोल सकते हैं कि बंकर में आओ बताते हैं। उनका कहना है, “पुलिस को लेकर लोगों में इतना नेगेटिव इम्प्रेशन है कि लोग चोरी की एफआईआर तक नहीं कराते हैं। हमारे घर में जब चोरी हुई थी, तब हमलोगों ने भी पुलिस में शिकायत दर्ज़ नहीं कराई, क्योंकि हमें उन चक्करों में पड़ना ही नहीं था। फ्रीडम नाम की जो चीज़ होती है, वह कश्मीर में नहीं है।”

कश्मीरियों को नोटबंदी की याद आ रही है

वहीं, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के इम्तियाज़ का कहना है कि कश्मीर में उन्हें अनुच्छेद 370 हटने के शुरुआती दिनों में पैसों की दिक्कत का सामना करना पड़ा है। अब स्थितियां पहले से ठीक हैं, क्योंकि तीन-चार बैंक्स आपस में कोलैबोरेट करते हुए एक ही जगह से कार्य कर रही हैं।

इम्तियाज़ कहते हैं कि बैंकों में भीड़ इतनी है कि एक बार फिर लोगों को नोटबंदी की याद आ गई। शुरुआती दिनों में स्थितियां काफी खराब थीं, क्योंकि दुकानों के बंद होने की वजह से लोग ज़रूरी सामान नहीं खरीद पा रहे थे।

लोग कह रहे हैं कि कश्मीर के लोगों को बहुत दिक्कतें हो रही हैं। हां मैं मानता हूं कि उन्हें काफी दिक्कतें हो रही हैं मगर जो लोग गाँवों में रहते हैं, वे कम-से-कम भोजन की सामग्रियों को इकट्ठा करने के लिए जद्दोजहद नहीं कर रहे थे, क्योंकि ज़्यादातर ग्रामीण आबादी के पास खेती है।

फोटो साभार- Getty Images

भारत सरकार के अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले की आलोचना करते हुए इम्तियाज़ कहते हैं कि हम इंसान हैं और अपनों से बात किए बगैर हम भला कैसे रह सकते हैं। सरकार ने जो भी किया, वह पूरी तरह से गलत है।

इम्तियाज़ बताते हैं, “मुझे याद है कि पुलिसवालों ने उन लोगों को भी रोक दिया था, जो मरीज़ को लेकर अस्पताल जा रहे थे। जिन लोगों के पास पैसा है, उन्हें कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने से कोई ज़्यादा तकलीफ नहीं हो रही है मगर जिनके पास पैसे नहीं है, उन्हें काफी परेशानियों का सामन करना पड़ रहा है।”

इम्तियाज़ कहते हैं,

एक गाँव में अगर एक ही लैंडलाइन है फिर तो मुश्किल ही है किसी से बात करना। मैं इसे किसी भी कीमत पर सपोर्ट नहीं करता हूं। कश्मीर से अनुचछेद 370 हटाने का फैसला कोई तुरन्त लिया गया फैसला नहीं, बल्कि एक सोची समझी साज़िश के तहत लिया गया फैसला था। इसकी तुलना हम लूटपाट से कर सकते हैं।

लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन

कश्मीर से नोएडा एनआईएमटी  में पढ़ाई कर रहे कामरान का कहना है कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया जाना कश्मीरियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है। जिस तरीके से पूर्व मुख्यमंत्रियों को नज़रबंद कर दिया गया, वह और भी खतरनाक है। पहले 10 दिन जैसे हालात थे, उससे तो बेहतर हालात हैं अभी मगर फोन के ज़रिये लोगों से बात करने में बहुत दिक्कत हो रही हैं। कहा  गया कि कोपारा में हमने मोबाइल सेवाएं चालू कर दी हैं मगर मैं वहां रहता हूं मुझे पता है कि सिर्फ एयरटेल पोस्टपेड के कनेक्शन चालू किए गए हैं और वह भी सिर्फ 100 लोगों के कनेक्शन।

कश्मीर के अंदर भी लोग खुद से किसी को फोन नहीं कर सकते हैं। मुझे अपने एक पड़ोसी को फोन करना पड़ता है तब जाकर पेरेन्ट्स से मेरी बात होती है। वह दौड़कर जाता है और मेरी बात कराता है।

कामरान कहते हैं कि मुझे याद है जब पहले दिन मैं अपनी स्कूटी से बाज़ार गया, तब वहां मौजूद पुलिसवालों ने मुझे रोक दिया। एक रोज़ वे गैस एजेंसी की गाड़ी भी नहीं जाने दे रहे थे। जब हमने कहा कि सिक्योरिटी फोर्स के लिए गैस ले जा रहे हैं, तब जाकर मुझे छोड़ा गया।

नोट: नाम ना बताने की शर्त पर दिल्ली और नोएडा में पढ़ रहे कश्मीरी स्टूडेेंट्स ने अपने अनुभव साझा किए हैं। इसलिए लेख में काल्पनिक नामों के प्रयोग किए गए हैं।

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