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स्कॉलरशिप में कटौती के खिलाफ पटना में सड़को पर उतरे SC-ST स्टूडेंट्स

पटना प्रोटेस्ट

पटना प्रोटेस्ट

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्टूडेंट्स को उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप दी जाती है। इस योजना के काफी अच्छे परिणाम सामने आए हैं। इस योजना के कारण गरीब, दलित और आदिवासी स्टूडेंट्स विश्वविद्यालयों में पहुंचे और उच्च शिक्षा ग्रहण करके समाज के मुख्यधारा में शामिल हुए।

लेकिन नीतीश कुमार की सरकार ने 2016 में पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में कटौती करने का निर्णय लिया, जिससे गरीब दलित स्टूडेंट्स को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसका विरोध करते हुए 19 सितंबर को पटना में बिहार सरकार के खिलाफ दलित स्टूडेंट्स ने विरोध प्रदर्शन किया।

राज्य सरकार के निर्णय के अनुसार तकनीकी, अन्य व्यवसाय तथा अन्य उच्च शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में अध्ययन करने वाले दलित और आदिवासी स्टूडेंट्स को सरकारी कॉलेज के लिए अधिकतम 75,000 तथा प्राइवेट कॉलेज के लिए अधिकतम 15,000 तक ही स्कॉलरशिप की राशि प्रदान की जाएगी।

इस प्रावधान से बड़े पैमाने पर गरीब दलित स्टूडेंट्स प्रभावित हुए, जिससे बिहार में राज्य सरकार द्वारा भारत सरकार की अति महत्वपूर्ण योजना की बलि चढ़ा दी गई।

फरवरी 2019 में भारत सरकार ने सभी राज्यों के संबंधित विभागों के सचिवों के साथ हुई मीटिंग में एक प्रेजे़ेंटेशन प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार देश में शिक्षा प्रदान करने वाली उच्च शैक्षणिक और सरकारी संस्थानों की अधिकतम फीस 500000 और प्राइवेट संस्थानों की अधिकतम फीस 900000 तक तय की गई।

गरीब दलित स्टूडेंट्स अतिरिक्त फीस कैसे भरेंगे?

प्रश्न उठता है कि जब नीतीश सरकार ने दलित स्टूडेंट्स को उच्च शिक्षा के ज़रिये मुख्यधारा में जोड़ने और उनके ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो को बढ़ाने के लिए संचालित पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में छात्रवृत्ति की राशि अधिकतम 75000 सरकारी और प्राइवेट के लिए 15000 तय कर दिया, फिर गरीब दलित स्टूडेंट्स अतिरिक्त फीस कहां से भरेंगे?

फोटो साभार- राजीव कुमार

नीतीश सरकार द्वारा दलित आदिवासी स्टूडेंट्स के पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप में कटौती करने के निर्णय के कुछ दिनों बाद सरकार के ही आंकड़े सामने आए, जिसके अनुसार छात्रवृत्ति पाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में भारी गिरावट आई।

लोकसभा में प्रस्तुत भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार बिहार में पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप प्राप्त करने वाले दलितों और आदिवासी स्टूडेंट्स की संख्या में उक्त निर्णय से पूर्व के वित्तीय वर्ष 2015-16 के मुकाबले 2016-17 में 77.41%, और 2017-18 में 42.57%  की गिरावट आई है।

इस गिरावट के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि सरकार के निर्णय के बाद जब स्टूडेंट्स फीस नहीं चुका पाए, तब उन्हें संस्थानों से बाहर निकाल दिया गया। कई स्टूडेंट्स की पढ़ाई अधूरी रह गई।

नीतीश कुमार आखिर खामोश क्यों हैं?

इतने बड़े पैमाने पर गरीब दलित और आदिवासी स्टूडेंट्स की संख्या में कमी होने के बावजूद सरकार अपने फैसले पर कायम है। इसी संदर्भ में दलित स्टूडेंट्स द्वारा 19 सितंबर को पटना में भारी विरोध प्रदर्शन किया गया, जिसमें कई दलित स्टूडेंट्स को गिरफ्तार भी किया गया।

आंदोलनरत दलित स्टूडेंट्स की मुख्य मांग यह है कि भारत सरकार के दिशा निर्देश के अनुसार, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप बिहार में लागू हो। अनुसूचित जाति व जनजाति से संबंधित योजनाओं के बजट का डायवर्ज़न रोका जाए इत्यादि।

यह सबसे दुखद इसलिए भी है, क्योंकि एक तरफ बिहार के गरीब दलित स्टूडेंट्स हक के लिए आवाज़ उठा रहे हैं और दूसरी तरफ खुद को सामाजिक न्याय के मसीहा कहने वाले नीतीश कुमार खामोश हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चुप्पी उनके कथित सुशासन और सामाजिक न्याय के साथ विकास के एजेंडे की पोल खोलती है।

नीतीश कुमार की चुप्पी और उनके सरकार का यह निर्णय, उनके दलित और आदिवासी विरोधी होने का भी परिचायक है। यह बहुत बड़ा सवाल है, जिसका जवाब बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा देश के सबसे बड़े दलित नेता रामविलास पासवान को भी देना चाहिए।

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