प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में अनुच्छेद 370 हटाकर जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कर दिया है। मीडिया के हर तबके में पिछले 1 महीने से सिर्फ जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर ही बात हो रही है और इसी बीच रुपया अपने ऐतिहासिक गिरावट के दौर में है। यह भी कहना गलत नहीं होगा कि अनुच्छेद 370 की आड़ में भारत की अर्थव्यवस्था नज़रअंदाज़ हो रही है।
5 ट्रिलियन इकोनॉमी या 5% ऐतिहासिक गिरावट
रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर है और 1 रुपया प्रति डॉलर 72 को पार कर चुका है। जीडीपी ने भी 5% के साथ ऐतिहासिक गिरावट दर्ज़ की है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि वित्त मंत्री ने बजट में जो 5 ट्रिलियन इकोनॉमी का लक्ष्य रखा है, वह कैसे हासिल होगा?
मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए यह प्रस्ताव सिर्फ दूर का धुंधला दर्शन ही लग रहा है। ऐसे में वर्तमान सरकार से यह सवाल वाजिब है कि जब विपक्ष में रहकर उन्हें अर्थव्यवस्था और गिरते रुपये की इतनी चिंता थी, तो अब वह इस पर क्यों कुछ नहीं कर रहे हैं? ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का वह दौर याद आता है, जब पूरे विश्व में मंदी थी मगर भारत पर उसका कोई असर देखने को नहीं मिला था।
नोटबंदी और जीएसटी जैसे निर्णय अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक साबित हुए
आज मौजूदा दौर में बेरोज़गारी भी चरम सीमा पर है। सरकार की ही रिपोर्ट बताती है कि देश में बेरोज़गारी का आंकड़ा 6.1% है, जो पिछले 4 दशकों में सबसे ज़्यादा है। नोटबंदी और जीएसटी जैसे फैसलों के बाद कहा गया था कि इससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलेगी मगर ताज़ा रिपोर्ट यह बताती है कि जीडीपी अब 5% पर आ गई है।
हालांकि सरकार देश में मंदी की बात से इंकार कर रही है लेकिन सच यह है कि प्रत्येक सेक्टर में नौकरियां जा रही हैं और व्यापार ठप पड़े रहें हैं। मीडिया में भी गिरते रुपये और अर्थव्यवस्था से ज़्यादा जम्मू-कश्मीर पर प्राइम टाइम चल रहा है और शाम 6 बजे वाली बहस में भी ज़मीनी मुद्दे गायब हैं।
एक-दूसरे पर दोष मढ़ने का सिलसिला कब तक?
भाजपा ने तो गिरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए काँग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया है। आम नागरिक इसी असमंजस में है कि सत्ता में कौन है, भाजपा या काँग्रेस? अगर भाजपा है फिर यह काँग्रेस के मत्थे दोष मढ़ने का सिलसिला कब तक चलेगा?
सरकार कब अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कदम उठाएगी? काँग्रेस को गिरती अर्थव्यवस्था के लिए दोषी ठहराने से पहले भाजपा को इस बात का ध्यान कर लेना चाहिए कि काँग्रेस के कार्यकाल में जीडीपी 10.08% तक पहुंची थी।
हर नागरिक करे सरकार से सवाल कि आखिर जवाबदेही किसकी?
बजट पेश होने के बाद से ही देश में 5 ट्रिलियन इकॉनमी की ज़ोर-शोर से चर्चा हो रही थी मगर अब मौजूदा स्थिति को लेकर किए जा रहे सवालों को स्वयं वित्तमंत्री ही टाल रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि गिरती हुई अर्थव्यवस्था, कमज़ोर होता रुपया, बेरोज़गारी और मंदी जैसे मसलों पर जवाबदेही किसकी तय होगी?
कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे या नहीं और यदि हां तो कब क्योंकि मंदी और गिरती हुई अर्थव्यवस्था मोदी समर्थक और मोदी विरोधी दोनों को ही अपनी चपेट में लेंगे इसलिए पार्टी लाइन से उठकर हर नागरिक को इस पर सरकार से सवाल करना चाहिए और साथ ही सरकार को भी यह समझना होगा कि 6 साल सत्ता में रहने के बाद आप हर चीज़ के लिए काँग्रेस या नेहरू को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते।