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शरीर का 90% हिस्सा लकवाग्रस्त लेकिन IIT में हासिल की 176 रैंक

विकलांगता, लाचारी, शारीरिक पीड़ा ये तीन अहम तत्व इंसान को उसके जज़्बे से एवं उसके मकसद से दूर ले जाते हैं परंतु जो इंसान इन तीनों तत्वों को झेलकर अपनी उम्मीदों के ज़रिये मंज़िल को पाने के लिए अग्रसर होते हैं, वे एक सफल व्यक्तित्व के रूप में समाज में जाने जाते हैं। जो कि किसी परिचय के मोहताज नहीं रहते।

इसी जज़्बे को आगे बढ़ाते हुए मैंने एक बिहार के भोजपुर ज़िले से एक सफर तय किया और कई लोगों के लिए आशा की किरण बनकर सामने आया। जिस कामयाबी को हासिल करने के लिए कई लोग थोड़ा हिचकिचा जाते हैं उसी कामयाबी को मैंने कई चुनौतियों के साथ हासिल किया है।

शंकर कुमार सिंह, फोटो- शंकर कुमार सिंह आईआईटीयन फेसबुक अकाउंट

मेरी यानी की शंकर की कहानी

मेरे शरीर का 90% हिस्सा पोलियो के चलते काम नहीं करता है, इसके बावजूद मैंने एक समाजसेवी, शिक्षाविद, मोटिवेशनल स्पीकर एवं RTI एक्टिविस्ट की भूमिका निभाई है। मैंने कोशिश की है कि मैं समाज के लोगो में, खासकर पिछड़े एवं दिव्यांगों के बीच प्रेरणा स्रोत के नज़रिये से जाना जाऊं।

मेरा जन्म बिहार के भोजपुर ज़िले के मुख्यालय आरा के एक छोटे से गाँव में हुआ था। कुदरत की रीति के उपरांत ही जन्म के कुछ दिन बाद मेरे शरीर का 90% हिस्सा पोलियो से लकवाग्रस्त हो गया था। पढ़ाई के प्रति दृढ़ विश्वास एवं लगन के बदौलत मैंने अपनी शिक्षा गतिविधि को विधिगत आगे बढ़ाया जिसमें मेरे सबसे बड़े भाई रंजीत सिंंह का बहुत सहयोग रहा।

मेरे भाई बचपन में मुझे अपनी पीठ पर लादकर गाँव के सरकारी स्कूल ले जाया करते थे। पांचवी कक्षा के बाद मेरा चयन जवाहर नवोदय विद्यालय में हुआ लेकिन मेरी शारीरिक अक्षमता के कारण मुझे विद्यालय में प्रवेश ना मिल सका।

इसके उपरांत मैंने अपने ही गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ाई जारी रखी। असफलताओं को ज़िंदगी की सीख मानते हुए एवं पढ़ाई के प्रति दृढ़ विश्वास रखते हुए मैंने वर्ष 2008 में नेशनल टैलेंट सर्च एग्ज़ाम (NTSE) की परीक्षा में सफलता प्राप्त की एवं वर्ष 2010 में अजब दयाल सिंह शिक्षा अवार्ड भी प्राप्त किया।

इसके बाद मैंने वर्ष 2013 में देश की कठिन परीक्षाओं में से एक आईआईटी (IIT) परीक्षा में पूरे देश मे 176 वां रैंक प्राप्त किया, मगर बोर्ड की परीक्षा में केवल 2 अंक की कमी की वजह से मेरा आईआईटी में दाखिला ना हो सका।

इसके बावजूद मैंने हार नहीं मानी एवं मुस्कुराकर परिस्थितियों को देखते हुए स्नातक पाठ्यक्रम (विज्ञान) में आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में अपना नामांकन किया। मैं सर स्टीफेन हॉकिंग को अपना आदर्श मानता हूं और उनकी राह पर ही अग्रसर होने की कोशिश करता हूं। उनका अनुसरण करते हुए मैंने अपनी मेहनत जारी रखी।

सामाजिक कार्यों में पहल

मैंने हमेंशा इस बात को माना है कि शारीरिक शक्ति ही इंसान का मनोबल नहीं होती बल्कि मानसिक शक्ति के अनरूप भी हर कार्य हो सकता है। समाज में फैले भेदभाव, किस्मत एवं असफलताओं को नज़रअंदाज़ करते हुए मैंने आगे बढ़ना चुना। कितनी परेशानियां आई लेकिन मैंने कभी किसी भी हार नहीं मानी।

मैं अपनी कॉलेज लाइफ के समय से ही राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं जन कल्याण जैसे कार्यो में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था। मैंने इसी मुहिम में गाँव के गरीब बच्चों को फ्री एजुकेशन देने का बीड़ा अपने कंधों पर उठाया। शुरुआती दौर में मैंने अपने आवास के पास ही कंप्यूटर सहित एक पुस्तकालय बनवाया जिसमें गरीब बच्चों को उच्च दर्जे की शिक्षा प्राप्त हो सके।

मैंने हमेशा से यही चाहा कि जो पीड़ा और संघर्ष मुझे झेलना पड़ा है, वह पीड़ा किसी और को ना झेलनी पड़े।

इसी सोच एवं विचारधारा के बलबूते आज मेरे स्टूडेंट्स एनटीएसई एवं आईआईटी जैसी कठिन परीक्षाओं में बाज़ी मार रहे हैं। इसके अलावा मैंने बड़हरा प्रखंड ज़िला भोजपुर में अपना एक विद्यालय भी खोला है जिसका नाम आरके इंटरनेशनल स्कूल है। यहां मैं गरीब बच्चों को फ्री एजुकेशन एवं उच्चतः शिक्षा प्रदान करता हूं।

शंकर कुमार सिंह, फोटो- शंकर कुमार सिंह आईआईटीयन फेसबुक अकाउंट

कभी हार नहीं मानी

ज़िंदगी के तमाम संघर्षों को झेलते हुए एवं कभी हार ना मानने की विचारधारा के साथ अब मैं निरंतर आगे बढ़ रहा हूं और इसी दिशा में मैं अपने सामाजिक कार्यों की वजह से भी ज़िले एवं आसपास के क्षेत्रों में अपना योगदान दे रहा हूं।

गत वर्षों में भोजपुर ज़िले एवं उसके आसपास गाँवो में आए बाढ़ में मैंने एवं मेरे संगठन ने राहत बचाओ में विशेष योगदान किया एवं बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत बचाओ सामग्री एवं भोजन सामग्री की व्यवस्था की।

यही नहीं मैंने राजनीतिक दौरे में भी अपनी पकड़ बनाई है। बीते विधानसभा चुनावों में बड़हरा विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने सभी दल के उम्मीदवारों को एक मंच पर लाकर, एकता की एक मिसाल पूरे जनता में पेश करने की कोशिश की है। मैंने कभी अपनी असफलताओं पर उदास ना होकर परिस्थितियों से लड़ना सीखा है।

मेरे द्वारा बहुत सारे एकेडमिक क्रियाकलाप (Academic Activities) भी चलाई जाती है जिसमे से एक है मिग-२०(MIG-20) जिसमें गरीब बच्चों को इंजिनीरिंग, मेडिकल की उच्च शिक्षा दी जाती है ।

मेरी कड़ी मेहनत एवं विचारधारा ने कई लोगों को प्रभावित करने का काम भी किया है। बिहार अस्मिता अवार्ड एवं नागालैंड के गवर्नर द्वारा सम्मान मेरी उपलब्धियां रही है। अभी आगामी 12 अक्टूबर को मुझे  यूनाइटेड नेशन एसोसिएशन से आईआईटी दिल्ली में कर्मवीर चक्र सम्मान से सम्मानित किया जाएगा।

मैं एक बात पर यकीन करता हूं कि दिमाग शरीर का गुलाम नहीं हो सकता। मरे आदर्श स्टीफन हॉकिंग हैं और मैंने भी उन्हीं की तरह इस समाज के लिए एक प्रेणास्रोत बनने की ठानी है।

 

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