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35% पुलिसकर्मी गौहत्या मामले में मॉब लिंचिंग को स्वाभाविक मानते हैं

क्या आपने कभी सोचा है कि अपराधी किस धर्म और मज़हब का होता है और कौन से मज़हब के लोगों का अपराध की तरफ ज़्यादा झुकाव होता है? अगर आपने कभी ऐसा नहीं सोचा है तो हम आपको बताते हैं कि हाल ही में हुए एक सर्वे, स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019 के मुताबिक,

देश में हर दो पुलिसकर्मी में से एक का मानना है कि मुसलमानों का स्वभाविक रूप से अपराध की तरफ ज़्यादा झुकाव होता हैं।

आपको बता दें कि स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019 का सर्वे 21 राज्यों में हुआ था जो कि 12000 पुलिसकर्मियों और उनके परिवार के करीब 11000 सदस्यों के इंटरव्यू पर आधारित है।

यह सर्वे एनजीओ कॉमन कॉज और सीएसडीएस की ओर से किया गया है जो कि यह जानने के लिए किया गया था कि आखिर पुलिसकर्मियों के कामकाज के हालात किस तरह के हैं।

Status of policing in India report 2019

क्या कहना है पुलिसकर्मियों का

इस सर्वे के अंतर्गत पुलिस वालों ने अपनी राय ज़ाहिर की है। साथ ही इस रिपोर्ट में बहुत चौंकाने वाली बातें भी सामने आई हैं। सबसे अहम बात यह रही कि इस रिपोर्ट से यह पता चला है कि हमारे पुलिसकर्मियों की मानसिकता कैसी है।

आईए जानते हैं कि स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रिपोर्ट 2019 में और क्या-क्या बातें सामने आई हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारे पुलिसकर्मियों का देश के अहम मुद्दों पर क्या सोचना है। रिपोर्ट में लिखा है कि

साथ ही 28% पुलिस कर्मियों का मानना ​​है कि राजनेताओं का दबाव किसी भी अपराध की जांच में सबसे बड़ी बाधा है। रिपोर्ट के अनुसार 3 में से 1 पुलिसकर्मी यह बात स्वीकारता है कि किसी भी अपराध के जांच के दौरान पॉलिटिकल प्रेशर झेलना पड़ता है। यह बात अपने आप में एक बड़ा खुलासा है और साथ ही सोचने वाली बात भी है।

उसी तरह और भी कई मामले हैं जहां पुलिसकर्मियों ने अपनी राय साझा की। जैसे-

रिपोर्ट से पता चलता है कि एक पुलिसकर्मी द्वारा हर रोज़ औसतन 14 घंटे काम किया जाता है। इसके अलावा 80% पुलिसकर्मी को 8 घंटे से ज़्यादा ड्यूटी करनी पड़ती है।

फोटो साभार: Status of policing in India report 2019

मूलभूत चीज़ें भी हैं चिंता की विषय

चलिए काम के घंटे और काम के प्रेशर के इतर अगर मूलभूत चीज़ों को देखें तब भी यह रिपोर्ट चौंका देती है। इस रिपोर्ट के अनुसार,

आपको बता दें कि यह रिपोर्ट बीते दिन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जे.चेलामेश्वर द्वारा रिलीज़ की गई थी जिससे ये सारी बातें सामने आई। इस रिपोर्ट के रिलीज़ के दौरान पुलिसकर्मियों और व्यवस्था पर अपनी बात रखते हुए जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा,

एक समर्पित अधिकारी बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। लेकिन ऐसे अफसरों की वहां तैनाती करेगा कौन?

साथ ही  पुलिस के ऊपर राजनैतिक दबावों के बारे में बात करते हुए कहा,

किसी का सज़ा के तौर पर ट्रांसफर करा देना एक समस्या है। यहां तक कि जजों को भी इस समस्या का सामना करना पड़ता है, जबकि वह एक संवैधानिक पद पर हैं लेकिन वह भी ट्रांसफर की इस समस्या से सुरक्षित नहीं हैं।

यही नहीं चेलामेश्वर ने इस दौरान अपना भी कुछ अनुभव साझा किया कि कैसे एक वक्त पर पुलिस ने कानून को किनारे रख दिया था। उन्होंने बताया कि अदालती कार्रवाई के दौरान उन्होंने भी महसूस किया है कि पुलिस द्वारा कई बार नियमों को दरकिनार कर दिया जाता है।

उन्होंने पुलिसकर्मियों को दी जाने वाली ट्रेनिंग पर भी सवाल उठाए और कहा,

हम अपने अधिकारियों को क्या ट्रेनिंग देते हैं? सिविल और क्रिमिनल प्रोसेड्योर कोड्स की छह महीने की ट्रेनिंग, आईपीसी और एविडेंस एक्ट मात्र को ही पर्याप्त नहीं माना जा सकता ।

आप देख ही सकते हैं कि इस रिपोर्ट में बहुत सारी बातों का खुलासा हुआ है लकिन सबसे चौंकाने वाली बात जो सामने आई वह यह कि 50% पुलिसकर्मियों का मानना हैं कि किसी भी अपराध की तरफ सबसे ज़्यादा झुकाव मुसलमानों का होता है।

यह बात हमारे पुलिसकर्मियों की मानसिकता को दिखा रही है और यह बता रही है कि वे मज़हब के आधार पर अपराधी को जज करते हैं।  मुझे नहीं लगता कि एक पढ़े-लिखे समाज और साथ ही भारत जैसे सेक्युलर देश में ऐसी सोच होनी चाहिए ।

यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर पुलिसवकर्मियों के मन में मुसलमानों के प्रति इतनी नफरत क्यों है? साथ ही यह भी सवाल उठता है कि क्यों पुलिस वाले ऐसा सोचते हैं कि किसी भी अपराध में मुस्लिम समुदाय का ज़्यादा हाथ होता है, हिन्दू का नही?

फोटो साभार: Status of policing in India report 2019

क्या अब अपराध मज़हब के नाम पर तय होगा?

सवाल यह भी है कि आखिर हमारे समाज मे जात- पात को लेकर ऐसी धारणा क्यों हैं? क्या देश की रक्षा करने वाले की ऐसी सोच हमारे समाज के लिए सही है?
क्या कोई यह देख कर अपराध करता है कि मैं मुस्लिम हूं तो मैं अब अपराध करूंगा या मैं हिदू हूं तो मैं अपराध नही करूंगा?
मेरे हिसाब से देश के रक्षकों की ऐसी सोच बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। आप जजमेंटल कैसे हो सकते हैं? वह भी किसी के मजहब के प्रति।

यह रिपोर्ट साफ कर रही है कि हम अंदर से अभी भी कितने खोखले हैं। हम बस बाहरी रूप से भेदभाव नहीं करते, पर अंदर से अभी भी हम जात-पात से ही दूसरों को जज करते हैं। जो कि बहुत ही गलत है।

मैं बस इतना ही कहूंगी कि अपराधी किसी भी धर्म या मज़हब का हो सकता है। वह हिंदू भी हो सकता है वह मुस्लिम भी हो सकता है। अपराध करने वाले कभी भी धर्म और मज़हब के बारे में नहीं सोचते।

इसलिए मेरा मानना है कि अपराधी सिर्फ अपराधी होता है। उसका कोई भी धर्म और मज़हब नहीं होता।

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